नई दिल्ली: चुनावी और दलीय राजनीति की दर्दनाक सीमायें बार-बार स्पष्ट हो रहीं हैं। चिंता की बात यह है कि देश का बौद्धिक तबका भी इस तरह राजनीति का हिस्सा बनता हुआ दिख रहा हैस जिसमें बार-बार देश पीछे छूट जाता है। भारत इस मायने में निस्संदेह दुर्भाग्यशाली देश है। हाल में ऐसी कुछ घटनायें हुईं हैं जिनने फिर एक बार हम सबको अपनी भूमिका पर नए सिरे से विचार करने को प्रेरित किया है। यहां दो घटनाओं को हम आधार बना सकते हैं। सम्पूर्ण मीडिया में यह खबर अचानक सुर्खियां बन गईं कि अमेरिका के रक्षा विभाग ने पाकिस्तान में एफ 16 विमानों की गिनती की हैं और वो संख्या में पूरी पाई गईं हैं। 

इसके एक दिन पहले अमेरिका से ही आई यह खबर हमारे यहां सर्वाधिक महत्व की थी कि नासा ने भारत के इस दावे को खारिज किया है कि अंतरिक्ष में उपग्रह विरोधी मिसाइल के परीक्षण से पर्यावरण को कोई खतरा नहीं पहुंचा। उसके अनुसार भारत द्वारा ध्वस्त किए गए उपग्रह के टुकड़े अंतरिक्ष में कायम रहेंगे जो भविष्य के लिए खतरनाक हो सकते हैं। 

इन दो खबरों को इस तरह प्रस्तुत किया गया एवं इन पर इतनी सघन चर्चा हुई कि लगा मानो भारत एक झूठा दावा करने वाला देश है। यहां की सरकार, सेना, रक्षा संस्थान, अंतरिक्ष संस्थान ....सब झूठे दावे करते हैं। 

ये दोनों समाचार ऐसे थे जिनसे पूरी दुनिया में भारत की एक विकृत छवि निर्मित हो रही थी। बाद में दोनों समाचारों की अमेरिका से ही धज्जियां उड़ गईं। किंतु तब तक इस समाचार से देश में एक अजीब माहौल निर्मित किया जा चुका था। 

इस प्रकरण पर गहराई से विचार करना जरुरी है। आखिर अमेरिका की फॉरेन पॉलिसी नामक पत्रिका ने अमेरिकी रक्षा विभाग के सूत्रों के हवाले से खबर दे दिया और हमने उसे ब्रह्मवाक्य मान लिया। यह भी नहीं सोचा कि हमारी वायुसेना ने बाजाब्ता पत्रकार वार्ता करके कहा था कि पाकिस्तान द्वारा एफ 16 विमान के उपयोग तथा उनको गिराए जाने के सबूत हमारे पास हैं। 

यह भी ध्यान रखिए कि इस समाचार को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने ट्वीट कर दिया था। इमरान खान के ट्वीट को देखिए- सच की हमेशा जीत होती है और यही श्रेष्ठ नीति है। युद्ध का उन्माद फैला कर चुनाव जीतने का भाजपा का प्रयास और पाक एफ-16 को मार गिराने के झूठे दावे उलटे पड़ गए हैं। अमेरिकी रक्षा अधिकारियों ने भी पुष्टि कर दी है कि पाकिस्तानी बेड़े से कोई एफ-16 गायब नहीं है। 

हमारी पत्रकार बिरादरी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के ट्वीट को तो फॉलो करती ही है। बस, धड़ाधड़ समाचार फ्लैश कर दिया गया। हमने यह भी नहीं सोचा कि यह पाकिस्तान की कुटिल नीति हो सकती है। 

भारतीय वायुसेना ने 28 फरवरी को पाकिस्तानी एफ-16 से दागी गई मिसाइल के टुकड़े साक्ष्य के तौर पर दिखाए थे जो निर्णायक रूप से इस बात की पुष्टि करते थे कि पाकिस्तान ने कश्मीर में भारतीय सैन्य प्रतिष्ठानों को निशाना बनाने के लिए एफ-16 लड़ाकू विमान का इस्तेमाल किया था। हमारे लिए अमेरिकी पत्रिका, इमरान खान सच और अपनी वायुसेना झूठी हो गई। 

हमने तनिक भी सोचने की जहमत नहीं उठाई कि एफ 16 का प्रयोग कर पाकिस्तान फंस गया है, क्योंकि अमेरिका ने उसे विमान देते समय शर्त रखी थी कि इसका उपयोग केवल आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में होगा। भारत उसकी असलियत सामने लाने की रणनीति पर काम कर रहा है। इसमें यह पूरा प्रकरण उसके द्वारा पैदा किया गया हो सकता है। अगर इन सबको ध्यान में रखा जाता तो समाचार की पूरी तस्वीर ही अलग होती। 

हमें अमेरिकी अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन का शुक्रिया कहना चाहिए जिसने बिना लाग-लपेट के कह दिया कि हमारे पास ऐसी किसी जांच के बारे में कोई जानकारी नहीं, जिसमें पाकिस्तान के एफ-16 विमानों की गिनती की गई हो। जिस विभाग को जांच करनी है जब वही कह रहा है कि हमारे पास ऐसी कोई जानकारी नहीं है यानी हमने गिनती की ही नहीं है तो साफ है कि जानबूझकर भारत को नीचा दिखाने, सेना के साथ आम भारतीय का मनोबल गिराने के लिए समाचार के रुप में यह झूठ गढ़ा गया था।  

अब यह जरुरी हो गया कि भारत फॉरन पॉलिसी पत्रिका से औपचारिक रुप से कहे कि आप अपने समाचार को साबित करिए जिसमें आपने कहा कि अमेरिकी कर्मियों ने हाल ही में पाकिस्तानी वायुसेना के एफ-16 विमानों की गणना की थी और कोई भी विमान गायब नहीं है। 

पत्रिका ने दावा किया था कि स्थिति की सीधी जानकारी रखने वाले दो वरिष्ठ अमेरिकी रक्षा अधिकारियों ने यह जानकारी दी है। भारत में इसे इतना महत्व दिया गया कि भारतीय वायुसेना को फिर से सामने आकर स्पष्ट करना पड़ा कि उसके पास पाकिस्तानी वायुसेना के एफ-16 विमान को 27 फरवरी को मार गिराए जाने के ठोस साक्ष्य हैं। कल्पना करिए, यदि पेंटागन सामने नहीं आता तो भारत में ये लोग कैसा माहौल बनाते? 

अब आइए दूसरे समाचार पर। नासा ने मिशन शक्ति को बेहद खतरनाक बताते हुए कहा था कि इसकी वजह से अंतरिक्ष की कक्षा में करीब 400 मलबे के टुकड़े फैल गए हैं, जो कि आने वाले दिनों में अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में मौजूद स्पेस असेट्स के लिए नया खतरा उत्पन्न कर सकता है। 

दनादन भारत में समाचार फ्लैश और बयान पर बयान आने लगे। किसी ने नहीं सोचा कि यह आरोप हमारे देश पर है। हमें अपने वैज्ञानिकों के साथ खड़ा होना चाहिए न कि नासा के साथ। कम से कम ऐसे आरोपों पर रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान या डीआरडीओ की प्रतिक्रिया का तो इंतजार किया ही जा सकता था। 

खैर, रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान के अध्यक्ष जी सतीश रेड्डी ने स्वयं सामने आकर नासा के वक्तव्य को तथ्यों के साथ खारिज कर दिया। शक्ति मिशन की सफलता के बाद भी संस्थान ने यही कहा था कि हमने पृथ्वी की कक्षा के सबसे नीचे के स्तर को चुना ताकि इसके मलबे आराम से धरती पर गिर जाएं। रेड्डी ने अपने बयान में यही कहा कि हमने 300 किलोमीटर से भी कम दूरी के लोअर ऑर्बिट को चुना जिससे दुनियाभर के अन्य देशों के स्पेस असेट्स को मलबे से कोई नुकसान न हो। यह सारा मलबा 45 दिन के अंदर नष्ट हो जाएगा। 

रेड्डी के सामने आने से कई आरोपों की धज्जियां उड़ीं और भारत की क्षमता का दुनिया को नए सिरे से पता चला। रेड्डी ने स्पष्ट कर दिया कि भारतीय इंटरसेप्टर की क्षमता 1000 किलोमीटर के ऑर्बिट में सैटेलाइट को गिराने की थी लेकिन हमने अंतरिक्ष के भविष्य का ध्यान रखते हुए ही 300 किलोमीटर का चयन किया था। यह अंतरिक्ष में किसी दूसरे उपग्रह के लिए समस्या का कारण नहीं बनेगा। वास्तव में परीक्षण के तुरंत बाद से ही मलबे के टुकड़े हमारे रडारों की नजर में आ गए थे। इन टुकड़ों पर नजर रखने के लिए और भी तकनीकें मौजूद हैं जिनसे उनको गिरते देखा जा सकता है। 

हमारा देश ऐसा है जो शायद रेड्डी को भी आरोपों के घेरे में ला देता। पर यहां भी अमेरिकी रक्षा विभाग आ गया। उसने साफ कह दिया कि उनकी जानकारी में मलबे भारतीय दावों के अनुसार 45 दिनों में धरती पर गिर जाएंगे और इस कारण यह चिंता का विषय है ही नहीं। 

जरा देखिए, अमेरिका का रक्षा विभाग भारत के साथ खड़ा होता है, पर हम भारतीय अपने देश की क्षमता और दावों पर विश्वास करने तथा इसके साथ खड़े होने को तैयार नहीं है। यह कैसा आचरण है? अंतरिक्ष युद्ध की दृष्टि से इतनी बड़ी सफलता पर दूसरा देश होता तो झूम उठता। 

लेकिन यहां तो पी. चिदम्बरम जैसे वरिष्ठ नेता कहने लगे कि मूर्ख सरकार ही अपनी शक्ति को उजागर करती है बुद्धिमान सरकार कभी ऐसा नहीं करती। 

खैर, रेड्डी ने इसका भी जवाब दे दिया। उन्होंने कहा कि मिशन शक्ति की प्रकृति ऐसी है कि इसे किसी भी सूरत में गोपनीय नहीं रखा जा सकता है। उपग्रह को दुनिया भर के कई स्टेशनों द्वारा ट्रैक किया जाता है। 

वास्तव में रेड्डी का यह कहना भी सही है कि अमेरिका, रुस और चीन ने भी परीक्षण के बाद दुनिया को जानकारी दी। रेड्डी की ये पंक्तियां देखिए- अंतरिक्ष को सैन्य क्षेत्र में भी महत्व मिला है। जब भारत जैसे देश ने इस तरह का अभ्यास किया और अंतरिक्ष में लक्ष्य की पहचान करके उसे मार गिराया तो इससे प्रदर्शित हुआ कि आप इस तरह के ऑपरेशनों को अंजाम देने में सक्षम हैं। इसकी जानकारी दुनिया को होनी चाहिए। बचाव का सबसे बेहतर तरीका प्रतिरोध है। 

लेकिन इस प्रकरण का इतना लाभ हुआ कि देश ने डीआरडीओ के अध्यक्ष के मुंह से ऐसी बातें भी सुन लीं जिनकी अधिकृत जानकारी हमारे पास नहीं थी। रेड्डी ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि चुनावी मौसम से इसका लेना-देना नहीं है और हड़बड़ी में ऐसा प्रदर्शन संभव भी नहीं। 

मिशन शक्ति को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2016 में मंजूरी दी थी। रिकॉर्ड 2 साल में करीब 150 वैज्ञानिकों की मेहनत से इस परियोजना को सफलतापूर्वक पूरा किया गया। सिस्टम और अन्य उपकरणों के लिए कई भारतीय कंपनियों ने सहयोग किया। जनवरी 2019 में रडार, कम्यूनिकेशन नेटवर्क आदि स्थापित किए गए और अततः 27 मार्च को सुबह मिसाइल लांच की गई और उसने पूरी सटीकता के साथ टारगेट को हिट किया।

खैर, हम मूल विषय की ओर लौटें। ये दोनों प्रकरण हमें एक भारतीय के नाते आत्मचिंतन को प्रवृत करते हैं या नहीं? एफ 16 मामले में साफ दिखाई दे रहा है कि अमेरिका में सक्रिय पाकिस्तानी लॉबिस्टों ने इस तरह का समाचार प्लांट कराया और इमरान खान ने उसे फैलाने वाले एजेंट की भूमिका निभाई। 

लेकिन हम अब भी अपना नजरिया बदलने को तैयार हैं या नहीं? कुलभूषण जाधव के मामले में हमारे पत्रकारों ने जो लेख लिखे उनको ही पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में भारत के दावों के विरुद्ध उसे रॉ का जासूस साबित करने के लिए प्रस्तुत कर दिया। 

यह साफ था कि पाकिस्तान ने रणनीति के तहत वो जानकारियां फैलाईं थीं और हम उसके जाल में फंस गए। पाकिस्तान के अलावा दुनिया में ऐसे भी देश व समूह हैं जो एक प्रमुख शक्ति के रुप में भारत के उभार को सहन नहीं कर पा रहे। ऐसे लोग सीधे विरोध नहीं कर सकते तो परोक्ष रुप से आपको झूठा बनाएंगे, दुनिया में आपके विरुद्ध वातावरण निर्मित करने की कोशिश करेंगे। 

आखिर नासा ने इस तरह का गैर जिम्मेवार बयान क्यों दिया? वहां भी तो भारत विरोधी होंगे जिनको हमारी सफलता से ईर्ष्या होगी। भारत में अपने देश को झूठा तथा पाकिस्तान एवं भारत विरोधियों को सच मानने वाले नेताओं, पत्रकारों, बुद्धिजीवियों के लिए तो यह करारा तमाचा भी है अगर वे समझें तब। 

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वस्तुतः यह तो हमारी विदेश नीति और कूटनीति की सफलता है कि अमेरिका और कई देश साथ खड़े हो जाते हैं या कम से कम सार्वजनिक तौर पर विरोध करने या प्रश्न उठाने क सीमा तक नहीं जाते। कहने का तात्पर्य यह कि भारत आज ऐसी जगह है जहां हमें अत्यंत ही सतर्क रहने की आवश्यकता है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो ये हमारे आंतरिक मतभेदों का लाभ उठाकर हमें यथासंभव नुकसान पहुंचा सकते हैं। 

नरेन्द्र मोदी और भाजपा के विरोध में इस सीमा तक जाना आत्मघाती है। पता नहीं इससे मोदी का कितना वोट कटेगा, पर देश को तो क्षति पहुंचेगी। दुर्भाग्य से अभी भी हम इस स्थिति को समझने के लिए तैयार नहीं दिखते। पेंटागन के साथ भारतीय वायुसेना एवं डीआरडीओ के स्पष्टीकरण के बावजूद मीडिया एवं राजनीति का स्वर देख लीजिए। शर्मनाक है। 

अवधेश कुमार
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक हैं। )