गुरु पूर्णिमा  हमारे महान गुरुओं, शिक्षकों, मार्गदर्शन देने वालों को सम्मान देने का अवसर होता है। इसलिए इस मौके पर यह सवाल भी पूछा जाना चाहिए, कि हम जिन बातों पर अपने दैनिक जीवन में अमल कर रहे हैं उसके लिए मार्गदर्शन कहां से हासिल कर रहे हैं।

गुरु परंपरा भारत की मुख्य देन है, जिसकी छाप पूरे संसार में दिखाई देती है। भारत के गुरुओं के करोड़ो शिष्य दुनिया के लगभग सभी देश और जीवन के हर क्षेत्रों में मौजूद हैं । गुरु शब्द दुनिया की कई भाषाओं की शब्दावली में अपनी जगह बना चुका है। गुरु शब्द के साथ विशेषज्ञता, गरिमा और प्रतिष्ठा के उच्चतम मानदंड जुड़े हुए हैं। बहुत से लोग अपने अपने क्षेत्रों में गुरु बनने की इच्छा रखते हैं।

 हिंदू परंपरा में गुरु से मिला हुआ ज्ञान किसी भी किताब से ज्यादा अहमियत रखता है, हालांकि उनका अपना अलग महत्व है। किसी भी काल में गुरु से मिली हुई दृष्टि प्राचीन ज्ञान को समझने में मदद करता है, जो कि एक सामान्य मस्तिष्क वाले आदमी  के लिए मुश्किल होता है, खास तौर पर हमारी आजकल की अलग तरह की सांस्कृतिक परिस्थितियों में।

भारत के पास महान गुरुओं, योगियों और ऋषियों की विशाल और स्थायी परंपरा है, जिन्होंने उच्चतम ज्ञान की साक्षात प्राप्ति करके दिखाई, ना कि सिर्फ एक मत या सिद्धांत तक सीमित रहे। 

आधुनिक भारत ने स्वामी विवेकानंद जैसे असाधारण गुरुओं की यात्रा के जरिए दुनिया में अपनी क्षमता की घोषणा सौ साल से भी पहले कर दी थी।  जिनकी दी हुई आध्यात्मिक दृष्टि दुनिया को अपने धर्मों में नहीं दिखाई देती थी।

एक सच्चा गुरु अपनी शिक्षा, अभ्यास और साधनाओं के द्वारा हमें अपने अंदर के सूक्ष्म दैवीय तत्व को समझने का रास्ता बताता है, जिससे कि हम उच्चतर लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रवृत्त हो सकें। इसके लिए हमें सिर्फ गुरु की पूजा या ध्यान तक सीमित रहने की बजाए उनकी दी हुई शिक्षाओं का अभ्यास करने की बेहद जरुरत होती है।

गुरु हमें उच्च स्तर का ज्ञान प्रदान करते हैं, जिससे कि हम शाश्वत सत्य को समझ सकें। लेकिन गुरु हमें ये भी दिखाते हैं, कि हम कैसे स्थितिप्रज्ञ होकर यानी दुनिया की सारी मुश्किलों के बीच रहकर भी अपने अंतर्जगत से खुद को जोड़े रख  सकते हैं।  

आज के गुरु कौन हैं?

एक बड़ा प्रश्न यह खड़ा होता है, कि एक व्यक्ति के रुप में हमें  आज मार्गदर्शन कौन दे रहा है, भले ही हम औपचारिक रुप से किसी गुरु परंपरा से संबद्ध हों।  सच्चे गुरु की प्रकृति हमें अपने दैनिक जीवन के उन मूल्यों में दिखाई देती है, जिनका हम सम्मान करते हैं और उनका पालन करते हैं, या फिर उन ज्ञान के शब्दों में जो हमारे विचारों  को आकार देते हैं।

मिला जुलाकर सवाल ये है कि हमारे समाज का मार्गदर्शन कौन कर रहा है, हमारे उन मूल्यों पर किसका असर दिख रहा है, जिन्हें हम अपने समाज के लिए जरुरी समझते हैं। यह मूल्य हमें दिखाते हैं, कि हम देश के लिए कहां से गुरु या मार्गदर्शन प्राप्त करेंगे।

वर्तमान सूचना क्रांति ने हमारे सत्य की खोज के रास्ते में बहुत सी जटिलताएं पैदा कर दी हैं, क्योंकि यहां सूचना, विचार और अटकलों की  भरमार है। हमारे पास संचार माध्यमों की संख्या बहुत ज्यादा होने की वजह से मार्गदर्शन के कई विकल्प सामने आते हैं।

क्या मीडिया संस्थान और उनके प्रस्तोता हमारे आज के नए गुरु बन गए हैं? उनकी दी हुई राय को स्वीकार करने का चलन बढ़ता जा रहा है, भले की किसी खास क्षेत्र में उनकी निजी विशेषज्ञता या सहानुभूति नहीं हो फिर भी। क्या हमारे पत्रकार किसी महान गुरु या धार्मिक परंपरा का पालन करते हैं या फिर वह अपनी बौद्धिक राय के आधार पर  ही सत्य या असत्य का निर्धारण करके खुश हो जाते हैं।

क्या राजनेता अपने व्यवहार या चरित्र में किसी महान गुरु की शिक्षाओं का वास्तविक रुप से पालन  करते हुए दिखाई देते हैं? चुनाव के समय में उनके मंदिरों के दौरे और स्वयं के प्रचार की कोशिशों को इसके तहत नहीं देखा जाना चाहिए।

क्या भारत का शैक्षणिक जगत महान ऋषियों, धर्माचार्यों और उनकी  महान शिक्षाओं का सम्मान  करता है? या फिर उसे मानवता के भविष्य को गढ़ने के लिए आंतरिक चेतना से विहीन वामपंथी बुद्धिजीवियों और तकनीकी विशेषज्ञों की राय पर अमल करके ही खुशी मिलती है।  

यह सच है ,कि इन दिनों भारत में बहुत से गुरु, चाहे वो पारंपरिक हों या फिर अभिनव विचारों वाले, उनका अपना मीडिया हाउस है और उनके पास यह क्षमता  है कि उन्हें गिनती से बाहर नहीं किया जा सकता। निश्चित रुप से भारत की सशक्त गुरु परंपरा  दुनिया में हमेशा उसका प्रतिनिधित्व करेगी।

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देशों के बीच में गुरु के रुप में भारत

श्री अरबिंदों ने लिखा था, कि भारत विश्वगुरु यानि दुनिया के देशों के बीच गुरु की भूमिका निभाने के लिये निर्मित हुआ था। लेकिन अभी भी भारत अपने वास्तविक लक्ष्य से बेहद दूर है। यह सच है कि भारत के गुरु और योग परंपरा का सम्मान किया जा रहा है, लेकिन एक देश के रुप में भारत को वह स्थान मिलना  बाकी है, हालांकि भारत की  प्रतिष्ठा पिछले चार सालों में बढ़ी है, जिसका कारण ये है कि भारतीय संस्कृति का प्रसार पूरे विश्व में बढ़ा है।  लेकिन  वह आकांक्षा और क्षमता अब तक पूरी होनी बाकी है। जिसे पूरे होने में कुछ दशकों का समय लग सकता है अगर भारत ने अपने बाहरी सामाजिक तथा आर्थिक विकास दोनो को जारी रखा और अपने धार्मिक परंपराओं में आंतरिक परिवर्तन  करते रहे।

गुरु पूर्णिमा, यानी गुरु को समर्पित पूर्ण चंद्र, यह हमारे महान गुरुओं, शिक्षकों और मार्गदर्शन देने वालों को सम्मान देने का अवसर है, जिनकी संख्या बेहद ज्यादा है। यह मौका हमारे लिए प्रश्न उठाने का भी है, कि हम कहां से वह मार्गदर्शन हासिल कर रहे हैं जिसे हम अपने अभ्यास में ला रहे हैं। भारतीयों के लिए अब वक्त आ गया है , जब वह देश की भूमिका पर विचार करें और महर्षि व्यास जैसे महान ऋषियों वाली दृष्टि का जागृत करें,जिनके नाम पर गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है।   

(डेविड फ्रॉले प्रख्यात इतिहासकार और भारतीय मामलों  के विद्वान हैं, उन्हें वामदेव के नाम से भी जाना  जाता है)