भाजपा अध्यक्ष मौजूदा भारतीय राजनीति की दूसरी सबसे ताकतवर शख्सियत हैं। कई लोगों का मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद शाह एनएसए अजीत डोभाल से भी ज्यादा ताकतवर हैं।
सोहराबुद्दीन शेख कथित फर्जी एनकाउंटर का जिन्न अचानक बोतल से बाहर आ गया है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को इस एनकाउंटर का कथित मास्टरमाइंड बताया जाता है। एक बार फिर देश के राजनीतिक गलियारों में होने वाली चर्चाओं में यह मामला शामिल हो गया है। एक पत्रकार होने के नाते समझना बहुत जरूरी है कि क्यों अमित शाह के ऊपर लगे इतने गंभीर आरोपों को हवा दी जा रही है? यह संभवतः इसलिए है क्योंकि अमित शाह मौजूदा भारतीय राजनीति की दूसरी सबसे ताकतवर शख्सियत हैं। कई लोगों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद अमित शाह राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से ज्यादा ताकतवर हैं।
इसलिए किसी पक्षपातपूर्ण रिपोर्ट के आधार पर कोई निष्कर्ष निकालने के बजाय, जरूरी यह है कि मामले की बारीकियों में जाया जाए और कहानी के दोनों पहलुओं को सामने रखा जाए।
ऐसे तथ्य जो कांग्रेस भी करेगी स्वीकार
कुछ ऐसे तथ्य हैं, जिन पर कोई विवाद नहीं हैं। पहला, सोहराबुद्दीन शेख एक आतंकी था। उसके पास 80 एके-47 राइफलें थीं। ये सब सुरक्षा बलों के खिलाफ इस्तेमाल की जानी थीं। उसके पास एक-47 की कई गोलियां और ग्रेनेड थे। उसे टाडा अदालत द्वारा दोषी ठहराया गया था। हथियारों का ये जखीरा उसके मध्य प्रदेश स्थित फॉर्म में मिला था। उस समय राज्य में कांग्रेस की सरकार थी।
जब सीबीआई नहीं थी 'पिंजरे में बंद तोता'
सोहराबुद्दीन शेख के एनकाउंटर के तुरंत बाद सीबीआई को इसकी जांच सौंप दी गई। हालांकि तब तक यह निर्धारित नहीं हो पाया था कि यह असली एनकाउंटर था या राज्य सरकार की इसमें कोई भूमिका थी।
अगर इस मामले में कोर्ट के दस्तावेज देखे जाएं तो साफ हो जाता है कि जांच के दौरान सीबीआई ने कभी भी एनकाउंटर के असली अथवा नकली होने की पड़ताल नहीं की, जबकि केंद्रीय एजेंसी को यही पता लगाने के लिए मामले की जांच सौंपी गई थी। ये सभी दस्तावेज आज आसानी से उपलब्ध हैं। एनकाउंटर की सत्यता जानने से ज्यादा सीबीआई की दिलचस्पी इसका लिंक गुजरात भाजपा से जोड़ने में थी। एजेंसी ने शायद पहले से ही यह मान लिया था कि यह फर्जी मुठभेड़ थी।
शाह की गिरफ्तारी तो हुई लेकिन पूछताछ नहीं
सीबीआई ने इस मामले में गुजरात के तत्कालीन गृहमंत्री अमित शाह को गिरफ्तार किया। भाजपा ने इसे राजनीतिक प्रतिशोध बताया। वहीं कांग्रेस का कहना था कि जांच के लिए ऐसा करना जरूरी था। कई ऐसे मामले होते हैं जिनमें सच का पता लगाने के लिए महत्वपूर्ण राजनीतिक हस्ती से पूछताछ करनी होती है। अब सवाल यह है कि यह पूछताछ किसलिए थी? शायद, किसी के लिए भी नहीं। अमित शाह को संभवतः इसलिए गिरफ्तार किया गया था कि वे खुद ही कुछ बता देंगे। क्योंकि उन्हें तो बिना किसी पूछताछ के ही 13 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। सीबीआई ने उनकी पुलिस रिमांड तक नहीं मांगी। यहां तक कि जब उन्हें गुजरात हाईकोर्ट ने नियमित जमानत पर रिहा किया तब भी उनके खिलाफ कुछ नहीं मिला था। सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में इसे चुनौती दी लेकिन असफल रही।
गुजरात से महाराष्ट्र पहुंचा मामला
सुप्रीम कोर्ट ने मामले को गुजरात से महाराष्ट्र स्थानांतरित करने का आदेश दिया। साथ ही ट्रायल चलाने वाले जज का चुनाव बॉम्बे हाईकोर्ट की प्रबंधन समिति द्वारा करने का आदेश दिया गया। इस समिति में चीफ जस्टिस के साथ-साथ चार अन्य जज शामिल थे।
मामला अमित शाह के गृहराज्य से बाहर चलने और सत्र न्यायाधीश के चयन में हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की अगुवाई वाले बोर्ड द्वारा किए जाने से यह तो कहा जा सकता है कि मामले की कार्यवाही स्वतंत्र और किसी दबाव के बिना हुई होगी। महाराष्ट्र में चुने गए सत्र न्यायाधीश ने आरोपी को सभी आरोपों से मुक्त कर दिया। गुजरात के तत्कालीन गृहमंत्री आज भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। इस फैसले को एक पक्ष द्वारा सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई लेकिन नाकामी हाथ लगी।
अब यह मामला क्यों?
अमित शाह पर लगे आरोप भले ही गंभीर रहे हों लेकिन अगर कानून पर भरोसा किया जाए तो उन्हें अदालत द्वारा सभी आरोपों से मुक्त कर दिया गया है। अब सवाल यह है कि अचानक यह मामला क्यों उठ रहा है? जब इस रिपोर्टर ने सच का पता लगाने के लिए रिकॉर्ड और दस्तावेज खंगाले तो सामने आया कि इसका कारण सीबीआई के दो अधिकारी हैं। ये हैं संदीप तामगड़े और अमिताभ ठाकुर। दोनों ने इन आरोपों को लेकर अमित शाह की जांच की थी। बाद में शाह को दोषी बताया। हालांकि कोर्ट पहले ही इनके कई आरोपों को खारिज कर चुका है। अब इन दोनों ने ट्रायल कोर्ट में ये आरोप दोहराए हैं, जहां सोहराबुद्दीन मामले की सुनवाई चल रही है।
सच यह है कि ठाकुर को कई बार सस्पेंड किया जा चुका है। तामगड़े को 2013 में सीबीआई की विशेष अदालत की कड़ी फटकार पड़ चुकी है। पूर्व में भी अलग-अलग अदालतों ने दोनों के दावों को स्वीकार नहीं किया। हालांकि तामगड़े और ठाकुर दोनों ने ही पूर्व में अस्वीकार किए जा चुके अपने दावों को ट्रायल कोर्ट में दोहराया है।
अब उनके इन्हीं दावों को लेकर हल्ला मचाया जा रहा है। हकीकत यह है कि इन आरोपों को अलग-अलग अदालतें पहले ही खारिज कर चुकी हैं।
Last Updated Nov 23, 2018, 6:27 PM IST