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एक समय ऐसा था कि अशोक खाड़े को भूखे पेट सोना पड़ता था। सड़कों पर रात गुजारनी पड़ती थी। पर उन्होंने हार नहीं मानी।
महाराष्ट्र के सांगली जिले के निवासी अशोक खाड़े के परिवार ने गरीबी देखी। घर में दो वक्त की रोटी के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती थी।
परिवार की आर्थिक हालत इतनी खराब थी कि अशोक खाड़े के पिता पैसा कमाने के लिए मुंबई चले गए। पर उनकी कमाई परिवार के लिए नाकाफी थी।
आर्थिक तंगी के बाद भी अशोक खाड़े ने पढ़ाई जारी रखी। वह मानते थे कि शिक्षा के जरिए ही गरीबी से बाहर निकला जा सकता है।
अशोक खाड़े के भाई को मझगांव डॉकयार्ड पर ट्रेनी वेल्डर की नौकरी मिली तो उसने अशोक से कॉलेज में दाखिला लेने को कहा।
अशोक खाड़े डिप्लोमा करने के बाद परिवार के भरण पोषण के लिए ट्रेनी के तौर पर 90 रुपये मासिक वेतन पर नौकरी करने लगे, हालांकि वह आगे पढ़ना चाहते थे।
अशोक खाड़े कुछ साल बाद परमानेंट ड्राफ्टसमैन बने। मासिक सैलरी बढ़कर 300 रुपये हुई। पढ़ाई पर ध्यान दिया, ग्रेजुएशन किया।
अशोक खाड़े कुछ समय बाद कंपनी के क्वालिटी कंट्रोल विभाग में काम करने लगे। एक बार कम्पनी की ओर से जर्मनी गए और नई टेक्नोलॉजी सीखी।
विदेश से वापसी पर अशोक खाड़े ने खुद का एम्पायर खड़ा किया। भाई के साथ मिलकर दास ऑफशोर इंजीनियरिंग प्राइवेट लिमिटेड शुरू कर दी।
अशोक खाड़े की कम्पनी 100 प्रोजेक्ट पर काम कर चुकी है। उनका सालाना टर्नओवर करीबन 500 करोड़ रुपये है।