पेरिस पैरालंपिक 2024 में शरद कुमार ने पोलियो को हराकर हाई जंप में सिल्वर मेडल जीतकर सबको इंस्पायर किया। जानें उनकी बचपन से लेकर पेरिस तक के सफर की कहानी।
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2 साल की उम्र में पोलियो
बिहार के मोतीपुर गांव में जन्मे शरद कुमार जब दो साल के थे, उन्हें पोलियो का सामना करना पड़ा। उनके माता-पिता ने शरद का इलाज कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
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रेगुलर व्यायाम
बाद में पैरेंट्स ने इसे भगवान की इच्छा स्वीकार कर रेगुलर व्यायाम के द्वारा उनका इलाज शुरू कर दिया। वह अक्सर गंभीर रूप से बीमार हो जाते थे।
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एजूेकशन और एथलेटिक्स में परेशानी
शरद को 4 साल की उम्र में बोर्डिंग स्कूल में भेजा गया, लेकिन वहां एथलेटिक्स में भाग लेने की अनुमति नहीं मिली। उनकी इच्छा ने उन्हें ऊंची कूद में भाग लेने के लिए प्रेरित किया।
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नतीजों की परवाह किए बगैर खेल में हुए शामिल
स्कूल में वह खेल के समय बेंच पर बैठे रहते थे। पर उनकी खेलने की इच्छा इतनी प्रबल थी कि नतीजों की परवाह किए बिना ही हाई जंप खेल में शामिल होने का फैसला लिया।
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भाई से मिली प्रेरणा
शरद की ऊंची कूद में रुचि उनके भाई से मिली, जो स्कूल में रिकॉर्ड धारक थे। 2009 में, शरद ने जूनियर नेशनल पैरा-एथलेटिक्स चैंपियनशिप में गोल्ड जीता।
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पेरिस पैरालंपिक में शानदार प्रदर्शन
पेरिस पैरालंपिक 2024 में, शरद कुमार ने ऊंची कूद में 1.88 मीटर की छलांग लगाकर रजत पदक जीता। उनका यह प्रदर्शन भारत के सबसे अच्छे पैरालंपिक खेलों में से एक है।