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97 साल की उम्र में कवि और कलाकार इमरोज ने दुनिया को अलविद कह दिया। उनके निधन के साथ एक बार फिर अमृता प्रीतम और इमरोज की प्रेम कहानी चर्चा में है।
इश्क क्या होता ये कोई इमरोज से सीखें। वह ताउम्र ऐसे प्रेमी बने रहे जो इस बात से वाफिक थे जिसे वह चाहते हैं वो किसी और चाहती है लेकिन इमरोज ने यही मुनासिब समझा।
अमृता साहिर से मोहब्बत करती थी लेकिन फासलों और उनके जाने से वह बिखर गई। उन्हें नई किताब के लिए कवर डिजाइन कराना था,तभी उनकी मुलाकात हुई इमरोज से।
साहिर के जाने से अमृता टूट चुकी थीं, उन्हें न दिन की परवाह था न रात की लेकिन इस दौरान इमरोज ही ऐसे थे जिन्होंने अमृता को दोबारा जीना सिखाया और उनके और करीब आ गए।
इमरोज ने इंटरव्यू में बताया था कि अमृता को कुछ न कुछ लिखने की आदत थी। वह एक बार उन्होंने मेरी पीठ में साहिर का नाम लिखा लेकिन इससे मुझे फर्क नहीं पड़ा। वो उन्हें चाहती और मैं उसको।
अमृता प्रीतम ने अपनी किताब रसीदी टिकट में साहिर लुधियानवी और इमरोज का जिक्र किया है। इस किताब के जरिए अमृता ने जिंदगी में रिश्तों के धागों की कई परत खोलने की कोशिश की।
इमरोज आखिरी सांस तक अमृता प्रीतम को याद करते रहे। वह हमेशा कहते थे उसने जिस्म छोड़ा है साथ नहीं। वो यहीं कमरे में है।