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एक भक्त ने प्रेमानंद महाराज से पूछा कि महाराज जी मुझे वह सीमा समझ में नहीं आती कि कहां तक माफी देनी चाहिए और कहां तक नहीं?
उन्होंने कहा कि स्त्री के साथ गलती पर हम क्षमा की कम सीमा रखते हैं। इसमें क्षमा शब्द नहीं।
वह कहते हैं कि यदि एक बार कोई गलती करने की कोशिश करे। दोबारा हरकत करने का चांस न दिया जाए।
उनका कहना है कि उसे कानून या समाज के द्वारा दंड दिया जाए। एक बार क्षमा कर दिया तो आजकल ऐसे राक्षस है कि दोबारा क्षमा करने का मौका भी नहीं देंगे।
वह कहते हैं कि आसुरी प्रवृत्ति को दंड विधान द्वारा ही शासित किया जाता है विनय के द्वारा नहीं।
एक भक्त ने पूछा कि यदि घर परिवार के में ही ऐसे लोग हैं जो बार बार शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित कर रहे हों तो क्या किया जाए?
उन्होंने कहा-कानून की शरण लेनी चाहिए। पिता, भाई या चाचा कोई भी हो। यदि कोई राक्षसी स्वभाव का है तो कानून या समाज का सहारा लें, आगे से उसकी अपराध प्रवृत्ति रूकने की गुंजाइश होती है।