प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि आत्मा को कभी कष्ट नहीं होता। उसको मृत्यु पर दुख नहीं होता है, तो फिर दुख किसको होता है।
वह कहते हैं कि यदि हाथ को शून्य करके काट दिया जाए तो कष्ट नहीं होता, क्योंकि यह जड़ शरीर है। फिर कष्ट किसको होता है। वह कष्ट स्वीकृति की वजह से होता है।
उन्होंने कहा कि जिस तरह सूरज को जल के गरम या ठंडा होने का कोई फर्क नहीं पड़ता। वैसे ही आत्मा पर कोई फर्क नहीं पड़ता कि शरीर का मान या अपमान हो रहा है।
वह कहते हैं कि यदि कोई कहे कि फलां जगह एक्सीडेंट हो गया है। आप दुखी नहीं होंगे। पर यदि वही कहे कि उसमें आपके अमुक व्यक्ति थे तो आपको दुख होने लगेगा, क्योंकि उसमें आपका संबंध था।
उन्होंने कहा कि इसी तरह शरीर से संबंध स्वीकार करने के कारण मान-अपमान, लाभ-हानि, दुख-सुख, जन्म-मत्यु पर दुखी हो रहे हैं। स्वीकृति का सारा खेल है।
वृंदावन के प्रसिद्ध संत प्रेमानंद महाराज के सत्संग में दूर-दूर से लोग आते हैं और अपनी जिज्ञासा का समाधान पाते हैं। वह राधा रानी के अनन्य भक्त हैं।