साल 2019 के शुरुआत में भारत और मध्य एशिया के बीच पहला संवाद उज़्बेकिस्तान के शहर समरकंद में हुआ था जिसकी सह-अध्यक्षता भारत के विदेश मंत्रालय ने की थी। इस संवाद में मध्य-एशिया के सभी  देशों के विदेश मंत्रालयों ने हिस्सा लिया था जिनमें अफगानिस्तान (काबुल), किर्गीज़ रिपब्लिक (बिश्केक) , ताजीकिस्तान (दुशान्बे), तुर्कमेनिस्तान (अश्गाबात) और कज़ाख़िस्तान (नूर-सुल्तान ) शामिल हैं। इस संवाद के दौरान भारत ने कई मुख्य बिंदुओं के तहत अपनी रणनीति और अपेक्षाएं  इन देशों से सांझा की। भारत ने मध्य-एशिया के देशों को चाबहार बंदरगाह परियोजना में शामिल होने के लिए आमंत्रण भी दिया। चाबहार बंदरगाह परियोजना में भारत और ईरान की साझेदारी है जिसके जरिये भारत भूमिबद्ध अफगानिस्तान से आयात और निर्यात समुद्री मार्ग से कर पायेगा। अभी भारत अफगानिस्तान से आयात-निर्यात थल मार्ग से करता है जो अमृतसर के वागाह-अटारी बॉर्डर से होता हुआ पाकिस्तान के रास्ते अफगानिस्तान जाता है।

भारत ने इस संवाद के दौरान सुझाव दिया था कि सबको मिलकर एक क्षेत्रीय विकास समूह बनाना चाहिए (रीजनल डेवेलोमेंट ग्रुप) जिससे आपसी आर्थिक साझेदारी को मजबूती मिलेगी। भारत ने साथ ही साथ हवाई गलियारा यानि की एयर कॉरिडोर की भी बात कही थी जो मूलतः मध्य-एशिया के उन देशों के लिए है जो भूमिबद्ध  हैं। हालाँकि भारत पहले से ही एयर कोर्रिडोर्स विकारी (पेरिशेबल) खाद्य के आयत-निर्यात के लिए खोल चुका है और ये सुविधा भारत ने अधिकांश अफगानिस्तान के शहरों के लिए चालू की है जिससे पाकिस्तान से होकर गुजरने वाले थल मार्गो पर निर्भरता कम की जा सके।

भारत उन देशों में से है जिन्होंने सबसे पहले मध्य-एशिया के देशों के अस्तित्व को स्वीकारा था और भारत के  इन सभी मध्य-एशिया के देशों के साथ राजनयिक संबंध तभी से स्थापित हैं जब 90 के दशक में इन देशों को स्वतन्त्र राष्ट्र का दर्जा प्राप्त हुआ।

भारत अब सभी मध्य-एशिया के देशों को "एक्सटेंडेड एंड स्ट्रेटेजिक नेबरहुड" नीति  का हिस्सा मानता  है। व्यापर की दृष्टि से देखा जाये तो भारत और मध्य-एशिया के देशों के बीच वर्तमान में दो बिलियन अमेरिकन डॉलर का व्यापार होता है। वहीं चीन इन देशों के साथ 50 बिलियन डॉलर का व्यापार  करता है और यही एक मुख्य बिंदु भी है चीन की सिल्क रोड नीति का। वही भारत की भी यह कोशिश है की वो इन् सभी देशों के साथ व्यापर बढ़ा सके। इसलिए भारत छाबार बंदगाह परियोजना से इन सभी देशों को जोड़ना चाहता है जिससे समुद्र मार्ग से इन सभी देशों से भी व्यापार और मजबूत हो सके।

अगर भारत की कूटनीति को ध्यान से समझा जाए तो भारत-ईरान का चाबहार बंदरगाह चीन-पाकिस्तान के ग्वादार बंदरगाह के विरुद्ध एक ठोस कदम है जिसतरह चीन "वन रोड वन बेल्ट" के जरिये अपनी विदेशी और आर्थिक नीति को मजबूत बनाना चाहता है साथ ही साथ वो अंतरराष्ट्रीय व्यापार के जल और थल मार्गो में अपनी पकड़ बनाना चाहता है। क्यूंकि चीन को यह समझ है कि अभी उसके पास अरब सागर तक जाने का रास्ता मल्लूका स्ट्रेट से होकर जाता है जिसके इर्द-गिर्द देश अमेरिका के सहयोगी हैं और इसलिए चीन ने पाकिस्तान को मोहरा बनाकर काश्गर से ग्वादार तक का अपना रास्ता साफ़ कर लिया जिससे अब वह अरब सागर तक आसानी से पहुँच सकता है।


भारत के लिए मध्य-एशिया का महत्त्व 

१) भौगोलिक स्थिति 

भौगोलिक स्थिति के हिसाब से यह देश एशिया के कई देशों को यूरोप से जोड़ने वाली कड़ी है। अर्थात थल मार्गो से यूरोप तक पहुँचने के लिए भारत को मध्य-एशिया के देशों से होकर गुजरना होगा। इसलिए भारत ने छाबार बंदरगाह योजना से इस जल और इन थल मार्गों को जोड़ने का काम किया है।

भारत का एकमात्र मिलिट्री एयरबेस जो भारत की सीमा के बाहर है, ताजीकिस्तान के फारखोर प्रान्त में है। जिससे भारत और ताजीकिस्तान की वायुसेना एक साथ मिलकर चलाते है। मध्य-एशिया के देशों की सीमा चीन,अफगानिस्तान,रूस और ईरान से सटी हुई है और ताजीकिस्तान भौगोलिक स्थिति से पाक अधिकृत कश्मीर के बेहद करीब है। अब इस बात से अंदाज़ा लगया जा सकता है कि भारत के लिए व्यापारिक और सुरक्षा मामलो को देखते हुए मध्य-एशिया से बेहतर रिश्तो का होना कितना जरूरी है जिसपर मोदी सरकार ने बखूबी काम किया है और मोदी की कूटनीति के चलते ये देश भारत से अपने सम्बन्ध और भी बेहतर करना चाहते है।

२) ऊर्जा सुरक्षा

मध्य-एशिया ऊर्जा के दृष्टि से संसाधनों का भंडार है। हाइड्रोकार्बन जैसे खनिज संसांधन का सूत्र है। जैसे-
कज़ाकिस्तान  यूरेनियम, नेचुरल गैस और कच्चा तेल का सबसे बड़ा उत्पादक है।
उज़्बेकिस्तान सोने धातु का उत्पादक है जैसे की किर्ग़िज़स्तान भी।
ताजीकिस्तान  के पास हाइड्रोपावर के भंडार है, साथ ही साथ कच्चे तेल के भी सोत्र है।
तुर्कमेनिस्तान विश्व का चौथा सबसे बड़ा गैस का भंडार है ।
और यही नहीं विश्व में तेजी से बढ़ रही एनर्जी का नया स्तोत्र है लिट्टोरलस और कजाखस्तान और तुर्कमेनिस्तान कैस्पियन लिटोराल्स के स्तोत्र है।
अब भारत के लिए ऐसे संसाधनों वाले देशों से भविष्य की ऊर्जा पूर्ति के लिए आपसी रिश्तों का मजबूत होना जरूरी है।

३) सुरक्षा नीति

अमेरिका जैसे-जैसे अपनी सेना की तादाद अफगानिस्तान से कम करता जा रहा है  उसका असर सुरक्षा के लिहाज से एशिया के इस खंड में काफी गहरा पड़ रहा है। सबसे बड़ी चुनौतिओं में गैरकानूनी ड्रग्स का व्यापार है। क्योंकि यह  इलाका "गोल्डन क्रिसेंट " कहलाता है जहाँ पर अफ़ीम  की खेती की जाती है। "गोल्डन क्रिसेंट " नाम ईरान-पाक-अफगान के उन इलाकों को दिया गया है जहाँ  अफ़ीम की खेती होती है। साथ ही साथ गैरकानूनी हथियारों का भी व्यापार यहाँ होता है जिसकी वजह से इन इलाकों में अस्थिरता बनी रहती है और जिसका व्यापार पाक अधिकृत कश्मीर तक जुड़ा हुआ है यही नहीं, धार्मिक 
कट्टरपंथ और आतंकवाद की गुटों से भी मध्य-एशिया जूझ रहा है जिसका असर पी ओ के में आतंकवाद को बढ़ावा देता है। तो भारत के लिए कश्मीर मसले में बेहतरी के तार इन देशों से भी जुड़े है  जिससे ये बात साफ़ है की मध्य एशिया में शांति का बना रहना भारत के लिए बेहद जरूरी है।

४) व्यापार नीति

मध्य-एशिया के देशों का आर्थिक विकास होना यहाँ पर रोजगार, व्यापार और सेवा संस्थानों की बहाली करेगा और ऐसे में भारत के लिए निर्यात में बढ़ोतरी करेगा। सेवा क्षेत्रों में आई टी, फ़ॉर्मसूटिकल और पर्यटन विशेष है और भारत इन क्षेत्रों में माहिर है। रिश्तों में बेहतरी से भारत को इन देशों में अपनी सेवाओं का निर्यात करने में बढ़ौतरी मिलेगी। क्योंकि इन देशों में फ़ॉर्मसूटिकल की बहुत ज़्यादा मांग है जो भारत के निर्यात के लिया एक नया बाजार साबित हो सकता है।

भारत की मध्य-एशिया नीति

१) 2012 में भारत ने "कनेक्ट सेंट्रल एशिया" विदेश नीति की शुरुआत की थी  जिसमें आर्थिक सुरक्षा, सैनिक प्रशिक्षण, इंटेलिजेंस सहभाजन, आतंकवाद से मुकाबला, क्षेत्र कनेक्टिविटी, जैसे कई नीतिओ पर बल दिया गया था।

२) "शंघाई कोऑपरेशन आर्गेनाईजेशन" की पूर्ण सदस्य्ता के बाद भारत मध्य-एशिया देशों के साथ कई सम्मेलन स्तर पर नीतियाँ और अपेक्षाएं साँझा कर सकता है।

३) अंतराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण यातायात गलियारा (INSTC ) भारत जिसका सह-संस्थापक देश है, इस परियोजना से ईरान और फिर ईरान से कैस्पियन सागर तक का रास्ता विकसित कर सकता है। जो भारत की विदेश नीति में शामिल भी है।

४) चाबहार बंदरगाह से भारत भूमिबद्ध मध्य-एशिया देश जैसे अफगानिस्तान से ऊर्जा संसाधनों का आयत जल मार्ग के रस्ते जवाहरलाल नेहरू बंदरगाह और कांदला बंदरगाह से कर सकता है।

५) अश्गाबाद समझौता- जिसके तहत भारत और मध्य-एशिया ने अपने आयात और निर्यात के लिए यातायात और यातायात के मार्गों पर नीति हस्ताक्षरबद्ध कर ली है।

६) तापी पाइपलाइन परियोजना - इस परियोजना के चलते तुर्कमेनिस्तान से चलकर अफगानिस्तान और पाकिस्तान के रास्ते भारत तक एक पाइपलाइन बिछाई जा रही है जिसके जरिये भारत नेचुरल गैस का आयात करेगा जो इस क्षेत्र में शांति और सुरक्षा को भी सुदृढ़ करेगी।

७) इंडियन टेक्निकल एंड इकोनॉमी कोऑपरेशन प्रोग्राम - जिससे इन देशों युवाओं को प्रशिक्षण दिया जायेगा जिनसे उनकी श्रम शक्ति को बल मिलेगा।