भारत में लाखों युवा UPSC परीक्षा पास करने का सपना देखते हैं, लेकिन हर किसी के पास संसाधन, कोचिंग या आर्थिक स्थिरता नहीं होती। कुलदीप द्विवेदी की सफलता की कहानी इस बात का प्रमाण है कि दृढ़ निश्चय और कड़ी मेहनत से किसी भी चुनौती को पार किया जा सकता है।
एक छोटे से गांव के से शिखर तक पहुंचने का सफर
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ अंतर्गत शेखपुर गांव में जन्मे कुलदीप के पिता सूर्यकांत एक सुरक्षा गार्ड थे, जिनका वेतन मात्र ₹6,000 था। उनकी माँ गृहिणी थीं। एक छोटे से कमरे में रहने वाले इस परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी, लेकिन शिक्षा के प्रति उनके माता-पिता का समर्पण अटूट था।
हिंदी मीडियम के स्टूडेंट ने कर दिखाया कमाल
कुलदीप ने हिंदी माध्यम से पढ़ाई की, जो बाद में उनके लिए एक चुनौती बनी। जबकि उनके चचेरे भाई अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ते थे, कुलदीप को संसाधनों की कमी के साथ आगे बढ़ना पड़ा।
किराये के कमरे में बिना कोचिंग और महंगी किताबों के शुरू की तैयारी
पोस्ट ग्रेजुएट की डिग्री के बाद कुलदीप ने UPSC की तैयारी के लिए दिल्ली का रुख किया। मुखर्जी नगर में किराए के एक छोटे से कमरे में रहकर उन्होंने आत्मनिर्भरता के साथ पढ़ाई की। उनके पास न कोचिंग का पैसा था, न लैपटॉप और न ही महंगी किताबें खरीदने का साधन। हालांकि, उन्होंने इन कठिनाइयों को अपनी सफलता की राह में रोड़ा नहीं बनने दिया। दोस्तों से किताबें उधार लेकर, इंटरनेट कैफे में पढ़ाई करके और खुद पर विश्वास रखकर उन्होंने अपनी तैयारी जारी रखी।
2 बार असफल होने के बाद भी नहीं मानी हार
अक्सर 2 बार असफल होने के बाद लोग हार मान लेते हैं, लेकिन कुलदीप ने अपने सपनों को टूटने नहीं दिया। उनके पिता ने बिना UPSC को समझे भी अपने बेटे पर विश्वास बनाए रखा और उन्हें फिर से प्रयास करने के लिए प्रेरित किया।
कुलदीप द्विवेदी ने तीसरे प्रयास में मिली सफलता
तीसरी बार में कुलदीप ने अखिल भारतीय रैंक 242 हासिल कर भारतीय राजस्व सेवा (IRS) में अपनी जगह बनाई। यह सिर्फ़ उनकी सफलता नहीं थी, बल्कि उनके परिवार, दोस्तों और समर्थकों के त्याग का भी फल था।