देवशयनी एकादशी: 4 महीने इनके पास रहेगा सृष्टि का भार, नहीं होंगे ये शुभ संस्कार

First Published | Jul 17, 2024, 12:13 PM IST

चातुर्मास 2024 की शुरुआत 17 जुलाई को देवशयनी एकादशी से हो रही है। इन चार महीनों में विवाह, सगाई और अन्य मांगलिक कार्य वर्जित हैं। जानें चातुर्मास के नियम और महत्व।

क्यों मनाई जाती है देवशयनी एकादशी?

Chaturmas 2024 Starts: हिंदू पंचांग गणना के अनुसार आज 17 जुलाई 2024 को आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि है। जिसे देवशयनी एकादशी भी कहा जाता है। यूं तो हर एक एकादशी का अपना महत्व है, लेकिन देवशयनी एकदशी का महत्व कुछ ज्यादा ही है। ज्योतिषीय कैलकुलेशन के मुताबिक इस संसार के पालनहार देवता भगवान विष्णु आज के दिन से चार माह के लिए शयन के लिए चले जाते हैं। इस एकादशी का व्रत सभी सुखों को देने वाला माना जाता है। 

कब से लगता है चातुर्मास, क्या है वर्जित?

साल के 12 महीनों में चार महीने ऐसे होते हैं, जिसमें सनातन धर्मावलंबियों के 16 संस्कार करने-कराने के विधान पर रोक लग जाती है। इन  चातुर्मास में सावन, भाद्रपद, अश्विन और कार्तिक माह शामिल हैं। चातुर्मास में सगाई, शादी-विवाह, यज्ञोपवीत संस्कार, तिलकोत्सव, मुंडन संस्कार, कर्णवेध संस्कार, गृहप्रवेश जैसे शुभ एवं मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। 

क्यो लगता है चातुर्मास?

हमारे धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक इन चातुर्मास में भगवान श्री हरि  विष्णु माता लक्ष्मी के साथ क्षीर सागर में योग निद्रा में चले जाते हैं। कार्तिक माह में पड़ने वाली देवउठनी एकादशी पर भगवान श्री हरि विष्णु जब योग निद्रा से जागृत होते हैं तो उस दिन देवउठनी एकादशी होती है। उसी के बाद सारे मांगलिक कृत्य फिर से शुरू हो जाते हैं। 

कब खत्म होगा चातुर्मास?

इन चातुर्मास में चार महीने तक सृष्टि संचालन  भगवान भोलेनाथ के हाथों में आ जाता है। इन्हीं चातुर्मास में श्रावण मास में एक महीने तक सिर्फ भगवान शिव की पूजा, अर्चना, रुद्राभिषेक आदि धार्मिक कृत्य किए जाते हैं।  इस बार 12 नवंबर को देवउठनी एकादशी होगी।  उसी श्रीहरि विष्णु योग निद्रा से बाहर आएंगे, जिसके बाद चातुर्मास पूर्ण हो जाएगा। उनके योग निद्रा से जगने के बाद सभी मांगलिक कृत्य शुरू हो जाएंगे। 

चातुर्मास में क्या करना होता है शास्त्र सम्मत?

सनातन धर्म में प्रत्येक माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष में एकादशी पड़ती है। इस दिन श्री हरि विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा और व्रत करने का नियम है। सभी एकादशियों का विशेष महत्व है।आषाढ़ माह की देवशयनी एकादशी इसलिए महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योकि इस दिन से चातुर्मास की शुरुआत होती है। इन चार महीनों को व्रत और तपस्या के महीने माने जाते हैं। इस समयावधि में साधु संत यात्राएं बंद करके मंदिर या अपने मूल स्थान पर रहकर ही व्रत एवं साधना में लीन हो जाते हैं। चातुर्मास में केवल ब्रज धाम की यात्रा की जाती है। 

चातुर्मास में खान-पान से लेकर शयन तक के लिए फाॅलों करे ये नियम

वैदिक शास्त्रों के अनुसार चातुर्मास में इंसान को अपने खान-पान पर विशेष ध्यान देना चाहिए। जैसे चातुर्मास शुरू होने के  बाद पूरे श्रावण मास तक हरी पत्तेदार साब्जियों का सेवन कतई नहीं करना चाहिए। दूसरे महीने भाद्रपद में दहीं नहीं खाना चाहिए। आश्विन महीने में दूध से परहेज करना चाहिए और कार्तिक मास में लहसुन प्याज के सेवन को वर्जित माना गया है। चातुर्मास में बैगन, परवन, मूली और शहद के सेवन की भी मनाही है। इय दौरान पूरी तरह से सात्विक भोजन करना चाहिए। मान्यता के अनुसार पलंग पर सोने से परहेज करना चाहिए क्योकि ऐसा करने पर देवी-देवता नाखुश हो जाते हैं। 

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