अब तक लैंडस्लाईड में जा चुकी है 148 लोगों की जान
नई दिल्ली। जलवायु परिवर्तन, नाजुक भूभाग और वन क्षेत्र के नुकसान ने केरल के वायनाड जिले में विनाशकारी भूस्खलन की वजह बना। जिसमें पिछले कुछ वर्षों में किए गए अध्ययनों के अनुसार अब 148 लोगों की जान जा चुकी है। मंगलवार की सुबह अत्यधिक भारी बारिश के कारण वायनाड के पहाड़ी इलाकों में लैंडस्लाईड की एक सिरीज शुरू हो गई। मौत के अलावा इस हादसे में 128 से ज्यादा लोग घायल हैं, कई लोगों के मलबे के नीचे दबे होने की आशंका है।
देश के 30 सबसे ज्यादा लैंडस्लाईड वाले जिलों में केरल के अकेले है 10 डिस्ट्रिक
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के नेशनल रिमोट सेंसिंग सेटर द्वारा पिछले साल जारी किए गए लैंडस्लाईड एटलस के अनुसार भारत के 30 सबसे अधिक भूस्खलन वाले जिलों में से 10 केरल में थे, जिसमें वायनाड 13वें स्थान पर था। जिसमें कहा गया था कि पश्चिमी घाट और कोंकण पहाड़ियों (तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, गोवा और महाराष्ट्र) में 0.09 मिलियन वर्ग किमी लैंडस्लाईड की आशंका है।
3 साल पहले भूस्खलन के हॉटस्पॉट वाले क्षेत्र में था वायनाड
रिपोर्ट में कहा गया है कि पश्चिमी घाट में निवासियों और परिवारों की भेद्यता (Vulnerability) बहुत अधिक है, क्योंकि यहां जनसंख्या और घरेलू घनत्व बहुत अधिक है, खासकर केरल में। स्प्रिंगर द्वारा 2021 में प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया है कि केरल में सभी भूस्खलन हॉटस्पॉट पश्चिमी घाट क्षेत्र में थे और इडुक्की, एर्नाकुलम, कोट्टायम, वायनाड, कोझीकोड और मलप्पुरम जिलों में केंद्रित थे। इसमें कहा गया है कि केरल में कुल लैंडस्लाईड का लगभग 59% वृक्षारोपण क्षेत्रों में हुआ।
68 साल में गायब हो गए 62% वन क्षेत्र
वायनाड में घटते वन क्षेत्र पर 2022 के एक अध्ययन से पता चला है कि 1950 और 2018 के बीच जिले में 62% वन गायब हो गए, जबकि वृक्षारोपण क्षेत्र में लगभग 1,800% की वृद्धि हुई। इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एनवायरनमेंटल रिसर्च एंड पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि 1950 के दशक तक वायनाड के कुल क्षेत्रफल का लगभग 85% भाग वन क्षेत्र में था।
जलवायु परिवर्तन की वजह से बढ़ा लैंडस्लाईड का खतरा
वैज्ञानिकों के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण पश्चिमी घाट में लैंडस्लाईड की संभावना बढ़ रही है, जो दुनिया में जैविक विविधता के 8 "सबसे गर्म स्थानों" में से एक है। कोचीन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (CUSAT) में एडवांस्ड सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक रडार रिसर्च के निदेशक एस अभिलाष ने पीटीआई को बताया कि अरब सागर के गर्म होने से गहरे बादल बन रहे हैं, जिससे केरल में थोड़े समय में ही अत्यधिक भारी वर्षा हो रही है और लैंडस्लाईड की संभावना बढ़ रही है। अभिलाष ने कहा कि हमारे रिसर्च में पाया गया है कि दक्षिण-पूर्व अरब सागर गर्म हो रहा है, जिससे केरल सहित इस क्षेत्र के ऊपर का वायुमंडल थर्मोडायनामिक रूप से अस्थिर हो रहा है।
भारत के पश्चिमी तट पर अधिक सस्टनेबल होती जा रही वर्षा
उन्होंने कहा कि यह वायुमंडलीय अस्थिरता, जिससे गहरे बादलों का निर्माण होता है, जलवायु परिवर्तन से जुड़ा है। पहले, इस तरह की वर्षा मैंगलोर के उत्तर में उत्तरी कोंकण बेल्ट में अधिक होती थी। अभिलाष और अन्य वैज्ञानिकों द्वारा 2022 में NPJ क्लाइमेट एंड एटमॉस्फेरिक साइंस जर्नल में प्रकाशित रिसर्च में पाया गया कि भारत के पश्चिमी तट पर वर्षा अधिक सस्टनेबल होती जा रही है। सस्टनेबल वर्षा अक्सर एक छोटे से क्षेत्र में तीव्र, अल्पकालिक वर्षा या गरज के साथ होती है।
भारी बारिश वाले हॉटस्पॉट दक्षिण की ओर हो रहे ट्रांसफर
अभिलाष और भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (Indian Institute of Tropical Meteorology) तथा भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (Indian Meteorological Department) के साइंटिस्टों द्वारा 2021 में एल्सेवियर में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि कोंकण क्षेत्र (14 डिग्री उत्तर और 16 डिग्री उत्तर के बीच) में भारी वर्षा के हॉटस्पॉट में से एक दक्षिण की ओर ट्रांसफर हो गया है, जिसके घातक रिजल्ट हो सकते हैं।
वेस्टर्न घाट एकोलॉजी एक्स्पर्ट पैनल की चेतावनी को किया गया अनसुना
अध्ययन में कहा गया है कि वर्षा की तीव्रता में वृद्धि मानसून के मौसम के दौरान पूर्वी केरल में पश्चिमी घाट के हाई से मिडिल-भूमि ढलानों में भूस्खलन की बढ़ती संभावना का संकेत दे सकती है। भूस्खलन ने लैंडस्लाईड इकोलाजिस्ट माधव गाडगिल के नेतृत्व में सरकार द्वारा स्थापित "वेस्टर्न घाट एकोलॉजी एक्स्पर्ट पैनल" की अनसुनी चेतावनियों को भी सामने ला दिया।
पहाड़ी इलाके को सेंसटिव एरिया घोषित करने की हुई थी सिफारिश
पैनल ने 2011 में केंद्र को अपनी रिपोर्ट सौंपी, जिसमें सिफारिश की गई कि पूरी पहाड़ी सिरीज को इकोलॉजिकल से सेंसटिव एरिया घोषित किया जाए और उनकी इकोलॉजिकल सेंसटीविटी के आधार पर इकोलॉजिकल रूप से सेंसटिव एरियास में डिवाईड किया जाए। इसने इकोलाॅजिकली सेंसटिव जोन 1 में खनन, उत्खनन, न्यू थर्मल पावर प्लांट, हाईड्रो पावर प्रोजेक्ट और बड़े पैमाने पर विंड पावर प्रोजेक्टस् पर बैन लगाने की सिफारिश की। राज्य सरकारों, इंडस्ट्रीज और लोकल कम्युनिटीज के विरोज की वजह से 14 साल बाद भी सिफारिशें लागू नहीं की गई हैं।