मिलें भारत के 'सीड लाइब्रेरियन' से, 500 देसी वैरायटी की संरक्षित, किसानों को फ्री बीज-सिखाते हैं फॉर्मिंग

By Rajkumar Upadhyaya  |  First Published Apr 6, 2024, 5:59 PM IST

महान चंद्र बोरा ने अपने पिता की याद में 'सीड लाइब्रेरी' स्थापित की है। 500 से ज्यादा किस्मों के देसी बीज संरक्षित किए हैं। उनका मानना है कि इससे बीज और अनाज के मामले में देश आत्मनिर्भर होगा।

असम के रहने वाले महान चंद्र बोरा स्वदेशी बीजों की ​लुप्त हो रही किस्मों को संरक्षित कर रहे हैं।  'सीड लाइब्रेरी' स्थापित की है, जिसमें 500 से ज्यादा वैरायटी के देसी बीज हैं। किसानों को दुर्लभ किस्मों के बीज फ्री में देते हैं। स्टूडेंट्स को फॉर्मिंग सिखाते हैं। माय नेशन हिंदी से बात करते हुए वह कहते हैं कि यह काम करते हुए लगभग 20 साल हो गए। पिताजी से खेती सिखी। वह बताते थे कि खेतों में केमिकल का यूज कम किया करो। समय के साथ हमारा पुराना सीड धीरे-धीरे गायब होने लगा था। इंटरनेट पर रिसर्च किया तो देखा कि वर्ल्ड वाइड सीड कंजर्वेशन का मूवमेंट चल रहा है। हालांकि हमारे यहां बीजों के बारे में लोग ज्यादा बात नहीं करते। यह सब देखकर देसी बीजों के संरक्षण का निर्णय लिया।

15वीं सदी के बीज भी सहेजे

महान चंद्र बोरा की जीविका का एकमात्र साधन कृषि है। पिता की मृत्यु के बाद परिवार की जिम्मेदारी सिर पर आ गई तो उन्होंने लुप्त हो रही फसलों की खेती शुरू कर दी। देसी बीजों का गायब होना उन्हें अखर रहा था। इसलिए अपने पिता की याद में जोरहाट जिले के काठगांव में 'अन्नपूर्णा सीड लाइब्रेरी' स्थापित की और उसमें देसी बीजों को सहेजना शुरू कर दिया। वह कहते हैं कि यह हमारे पूर्वजों की विरासत है। उनके पास 15वीं सदी के अनाज के बीज भी हैं। वह कहते हैं कि बीज की कीमत नहीं वैल्यू होती है।

 

नई पीढ़ी को पूर्वजों की विरासत की जानकारी

बोरा कहते हैं कि पहले के समय में बैंक नहीं हुआ करते थे। पूर्वज हमारे लिए संपत्ति नहीं बल्कि बीज और खेती से जुड़ी ऐसी विरासत छोड़ कर जाते थे। जिन पर वह लंबे समय से काम कर रहे थे। ताकि अनाज की कमी न हो। हमने उन बीज की तमाम किस्मों को खो दिया। कम से कम अब सीड्स की जो वैराइटी बची हैं। उन्हें ही बचाने का प्रयास करना चाहिए। नई पीढ़ी को इसके बारे में जानकारी होनी चाहिए।

'सीड बैंक' की जगह 'सीड लाइब्रेरी' क्यों?

धीरे-धीरे उन्होंने अपने दोस्त की मदद से 500 से ज्यादा वैरायटी के बीज इकट्ठा किए। उनमें सब्जियों के दुर्लभ बीज भी शामिल हैं। ऐसे बीज किसानों तक पहुंच सकें, इसलिए लोगों को जागरूक करना शुरू किया। वह कहते हैं कि पहले स्थानीय स्तर पर लोग मेरे काम से ज्यादा प्रभावित नहीं थे। लोगों के बीच जागरूकता के लिए कुछ एनजीओ से भी बात हुई तो उन्होंने पैसों की कमी का हवाला दिया। यह सब देखकर ही मैंने अपने स्तर पर बीज संरक्षण का काम करने का फैसला लिया। 'सीड बैंक' की जगह 'सीड लाइब्रेरी' नाम रखने के पीछे की वजह बताते हुए कहते हैं कि लाइब्रेरी शब्द पुराना है। इसका पैसे से नहीं बल्कि ज्ञान से वास्ता है। वही काम हम कर रहे हैं, लोगों को इसके बारे में बता रहे हैं।

 

सीड स्कूल खोलने की है योजना

वह कहते हैं कि यह एक लाइव हेरिटेज है। इसको संरक्षित करने के लिए एक सीड स्कूल खोलना चाहता हूॅं। ताकि यह विरासत पीढ़ी दर पीढ़ी जीवित रहे। इस मुद्दे पर यदि कोई मेरे साथ काम करना चाहता है तो मैं तैयार हूॅं। स्कूलों में भी बच्चों को इस बारे में बताता हॅूं। अलग-अलग जगहों पर तमाम एनजीओ के प्रोग्राम में जाता हॅूं। मंच से लोगों को स्वदेशी बीजों का महत्व बताता हूॅं। यदि हम नयी पीढ़ी से पूर्वजों की यह विरासत साझा करेंगे तो आने वाले समय में बीज और अनाज के मामले में किसी पर निर्भर नहीं रहेंगे।

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