लखनऊ। अयोध्या से रामेश्वर तक 4000 किमी की पदयात्रा कर चर्चा में आई शिप्रा पाठक वर्षों से नदी-जल संरक्षण के लिए काम कर रही हैं। ताकि भविष्य में भारत में जल संकट न हो। माय नेशन हिंदी से बात करते हुए वह कहती हैं कि मम्मी-पापा बताते हैं कि मुझे बचपन से ही पानी बहने की आवाज परेशान करती थी। साल 2016 तक बिजनेस करती थी। शिक्षण संस्थान और इवेंट कम्पनी थी। उसके साथ जल संरक्षण का काम करते हुए महसूस हुआ कि अपना पूरा समय इसी काम को देना पड़ेगा। तभी कुछ क्रांतिकारी बदलाव आएंगे। इसी सोच के साथ सब काम छोड़कर साल 2017 में कार्य योजना बनाई। 

8 राज्यों में नदी-जल संरक्षण का काम

शिप्रा कहती हैं कि काम की शुरूआत की तो लोग जुड़ते गए और वहीं से आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती रही। मनोबल भी बढ़ा। यह भी पता चला कि मेरे जैसे तमाम लोग चाहते हैं कि नदियां संरक्षित हों। पर उनको एक दिशा निर्देश नहीं मिल पा रहा है। वर्तमान में मेरी संस्था पंचतत्‍व से 10 लाख लोग जुड़े हैं। पहले तीन राज्यों में काम चल रहा था। अब चार राज्य और जुड़े हैं। उनकी संस्था उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र आदि राज्यों में काम कर रही है।

 

इन नदियों की भी कर चुकी हैं पद यात्रा

जल संरक्षण का लक्ष्य लेकर उन्होंने बीते 27 नवम्बर से अयोध्या से रामेश्वरम तक पद यात्रा शुरू की थी। 105 दिनों तक चली यात्रा का मकसद रास्ते में पड़ने वाली नदियों का संरक्षण था। पहले भी वह मॉं नर्मदा, शिप्रा, सरयू, ब्रज चौरासी कोसी पद यात्रा कर नदियों के संरक्षण के लिए आवाज उठा चुकी हैं। वह कहती हैं कि भगवान राम के समय जंगल व नदियां जिस दशा में थीं। फिर एक बार उनका वैभव उसी तरह लौट आए। जंगल भी विकसित हों। 

एक करोड़ पौधे लगाने का लक्ष्य

शिप्रा पाठक अब तक 15 लाख पौधे लगा चुकी हैं। उनका संकल्प एक करोड़ पौधे लगाने का है। भगवान राम जिन रास्तों से होकर रामेश्वरम तक गए थे। उन पर जगह-जगह राम-जानकी वन वाटिका लगाने का भी लक्ष्य तय किया है। वह जहां भी जाती हैं, लोगों से जल संरक्षण का आग्रह करती हैं। उनकी संस्था से देश भर के लोग जुड़ रहे हैं। वालंटियर लोगों को जागरूक करने का काम करते हैं। उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित भी किया जा चुका है। 

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