दिल में कुछ करने की लगन हो तो कोई भी मुसीबत रास्ते में रुकावट नहीं बन सकती, देवरिया की रचना गुप्ता ने ठान लिया था की उन्हें अपने पिता के परिश्रम का फल पढ़ाई में टॉप करके देना है, और जब दीक्षांत समरोह में रचना को सर्वाधिक 9 गोल्ड मेडल मिले तो माँ बाप की आँखों से आंसू छलक पड़े।
गोरखपुर. वो हर रोज़ 60 किलोमीटर का सफर तय करके पढ़ने जाती थी, आंधी, तूफ़ान गर्मी बारिश कोई भी मौसम हो रचना गुप्ता ने कभी अपनी क्लासेज़ बंक नहीं की। अत्यंत गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाली रचना ने गोरखपुर यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समरोह में सर्वाधिक 9 मेडल हासिल कर देवरिया का नाम रोशन किया
माँ हैं पांचवी पास
रचना देवरिया शहर के गरुड़पार स्थित धोबी टोला में रहती हैं, उनके पिता मिठाई का ठेला लगाते हैं,पिता इंटर पास हैं जबकि रचना की माँ गायत्री देवी पांचवी पास है, इसलिए वो बच्चो की पढाई पर हमेश ज़ोर देती हैं, रचना दो बहन एक भाई में सबसे छोटी हैं। 12वीं तक की पढाई रचना ने देवरिया के मॉडर्न सिटी मोंटेसरी स्कूल से किया, बारहवीं के बाद गोरखपुर विश्विद्यालय में एडमिशन लिया। एमएससी मैथ्स में रचना ने 93.05 अंक हासिल किया।
हर रोज़ 60 किलोमीटर का सफर
रचना के घर से विश्विद्यालय 60 किलोमीटर दूर था लिहाज़ा वो हर रोज़ सुबह 7 बजे घर से निकलती थीं और एमएसटी के ज़रिये ट्रेन से गोरखपुर जाती और वहां से पैदल यूनिवर्सिटी पहुँच जाती थीं। घर से यूनिवर्सिटी तक का रास्ता तय करने में करीब एक घंटे लगते थे। कितनी भी मुश्किल क्यों न आए रचना ने कभी क्लासेज़ नहीं बंक किया, उन्हें इस बात का पूरा एहसास था की उनंके पिता बहुत मेहनत से अपने बच्चो को पढ़ा रहे हैं।
पिता करते हैं जी तोड़ मेहनत
रचना के पिता राज कुमार गुप्ता घर की ऊपर छत पर सुबह 4 बजे से मिठाई बनाना शुरू कर देते हैं, 7 बजे वो अपना ठेला लेकर कोतवाली चौराहे पर पहुँच जाते हैं, और रात 11 बजे तक दुकान लगाए रहते हैं। एक दिन में 500 रूपये तक की कमाई हो जाती है, पिछले 25 वर्षों से ये उनका रोज़ाना का रूटीन है, अपने बच्चों के भविष्य को बेहतर बनाने के लिए राज कुमार जी तोड़ मेहनत करते हैं।
9 गोल्ड मेडल देख कर रोने लगे माँ बाप
दीक्षांत समारोह में रचना को गोल्ड मेडल मिला, एक नहीं दो नहीं बल्कि पूरे 9 मेडल देखकर परिवार के लोग ख़ुशी से रोने लगे ,माय नेशन से बात करते हुए रचना कहती हैं मेरे पिता ने न तो अपने पास मोबाइल रखा न बाइक, वो कहते थे, मोबाइल रखूँगा तो बेवजह 200 रूपये महीना खर्च होगा, उन्होंने खर्चा काटकर हमे पढ़ाया है, रचना कहती हैं अब कोई एकेडमिक्स कोर्स नहीं करना अब सिविल सर्विसेज़ की तैयारी करुँगी।
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