इंजिनयरिंग की नौकरी छोड़ कर कुसुम कंडवाल भट्ट ने गुमशुदा बच्चो की तलाश के लिए एक अभियान चलाना शुरू किया। उन्होंने सर्च माय चाइल्ड के नाम से एक संस्था बनाई और गुमशुदा बच्चों का आंकड़ा निकालना शुरू किया। कुसुम की बात उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने सदन में उठाई। पिछले 7 साल में कुसुम 5 लाख लोगों को इस कैम्पेन के लिए जागरूक कर चुकी हैं।
दिल्ली। कभी उन मां-बाप का दर्द महसूस किया है जिन के बच्चे खो जाते हैं, अपने बच्चों की तलाश में वह मां-बाप थाने पुलिस के चक्कर काटते हैं और फिर जब बच्चे नहीं मिलते हैं तो कलेजे पर पत्थर रखकर पूरी जिंदगी गुजारते हैं। ऐसे मां-बाप का दर्द महसूस किया कुसुम कंडवाल भट्ट ने जिन्होंने इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़कर गुमशुदा बच्चों को उनके बिछड़े मां-बाप से मिलाने की मुहिम शुरू कर दी। मायनेशन हिंदी से कुसुम ने अपने विचार साझा किये।
कौन हैं कुसुम
कुसुम कंडवाल का जन्म नासिक में हुआ, उन्होंने कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी से इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी में एमएससी किया है, शादी के बाद दिल्ली आ गई । उनके पति विनोद भट्ट आईटी में फैमिली बिजनेस संभालते हैं, उनके दो बेटे हैं। कुसुम की एक संस्था है जिसका नाम है 'सर्च माय चाइल्ड ' इस संस्था को बनाने के पीछे नोएडा की एक घटना है।
एक घटना ने इंजीनयरिंग की नौकरी छोड़ने पर मजबूर कर दिया
साल 2016 में उत्तराखंड की एक बच्ची नोएडा में गायब हो गई थी। पुलिस ने उसे तलाश किया लेकिन वह बच्ची नहीं मिली। उसी दौरान एक महिला आई और उसने कहा मेरा बेटा गायब हो गया है। कुसुम ने जवाब दिया सिर्फ यह बच्ची ढूंढ रही हूं बच्चा ढूंढना मेरा काम नहीं है, महिला की आंखों में आंसू भर आए और उसने कहा पुलिस वाले हमारी बात नहीं सुन रहे हैं मेरा बच्चा गायब हो गया है आप कहेंगी तो वह आपकी बात मान लेंगे। उसके बाद वह महिला कुसुम के पैरों में गिर गई।उस रात कुसुम सो ना सकीं, बार-बार उस महिला का चेहरा सामने आता जो अपने बच्चे के बिछड़ने के गम में पागलों की तरह रो रही थी। उस दिन कुसुम ने फैसला किया अब वह अपना पूरा वक्त गुमशुदा बच्चों को ढूंढने में लगाएंगी। दूसरे दिन कुसुम ने उस महिला से संपर्क किया और उसके बच्चे को ढूंढने की कोशिश किया, बच्चा मिला भी लेकिन उसका सर धड़ से अलग था।
कुसुम की बात उठी सदन में
कुसुम ने अपनी इस मुहिम के लिए प्रॉपर तैयारी करना शुरू किया हालांकि उन्होंने एमएससी किया था, लेकिन अपने अभियान के लिए उन्हें ज़्यादा से ज़्यादा इन्फॉर्मेशन की ज़रूरत थी, रिसर्च में बहुत सूक्ष्म जानकारी जुटानी पड़ती थी तो उन्होंने सोशल सोशल वर्क में मास्टर्स कर लिया। गुमशुदा बच्चों पर कुसुम ने रिसर्च करना शुरू किया। कुसुम ने सरकार से मांग किया कि गुमशुदा बच्चों के लिए किसी फोर्स का गठन होना चाहिए। कुसुम की इस मांग का समर्थन संसद में हुआ और पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने लोकसभा में इस बात को रखा।
अगवा किये बच्चो से भीख मंगवाया जाता है
कुसुम कहती हैं जो बच्चे अगवा होते हैं वो दरअसल इसी दुनिया में रहते हैं। अपने फायदे के लिए इन मासूम बच्चों का इस्तेमाल किया जाता है उनसे भीख मंगाया जाता है उनके अंगों की तस्करी की जाती है, उन से देह व्यापार कराया जाता है । किसी ना किसी तरह इन बच्चों के जरिए पैसा कमाते हैं वह लोग जो इन्हें अगवा करते हैं। ये बच्चे उनके बिज़नेस का जरिया बन जाते हैं। ह्यूमन ट्रैफिकिंग का बिज़नेस इन्ही बच्चो के दम पर खूब फल फूल रहा है, किसी की औलाद को बेच कर कुछ लोग अपना कारोबार चलाते हैं।
स्कूलों में अवेयरनेस कैम्पेन
केंद्रीय मंत्रालय के हिसाब से देश में हर साल एक लाख बच्चे गायब होते हैं। पिछले सात सालों में कुसुम ने दिल्ली के 350 से ज़्यादा स्कूलों में अवेयरनेस कैम्प चलाया है जिसमे 3 लाख से ज़्यादा बच्चे और पेरेंट्स को जागरूक किया है। कुसुम अपने इस अभियान में अकेले ही जुडी हुई हैं। वो कहती हैं मेरे पास ज़्यादा फंड नहीं की लोगों को दे सकूं इसलिए खुद से सब कर रही हूँ। अपनी इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ने का मलाल भी नहीं है क्यूंकि जब एक बिछड़ा बच्चा अपने माँ बाप से मिलता है उस वक़्त जो ख़ुशी मुझे होती है उसके लिए शब्द कम पड़ जाते हैं।
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