लखनऊ शहर भाई बहन के प्यार का साक्षी बना। फुटबाल प्लेयर अंशिका कैथवास ने अपने बड़े भाई शैलेन्द्र को लीवर डोनेट किया, उनके भाई को सिरोसिस था, लिवर ट्रांसप्लांट एक मात्र विकल्प था। घर में सबसे छोटी 28 साल की अंशिका ने भाई को लीवर डोनेट कर जीवन दान दिया। 3 महीने के रेस्ट के बाद अंशिका फिर से मैदान में उतरेंगी फुटबाल खेलने।
लखनऊ. राखी बांधते समय एक भाई अपनी बहन को रक्षा का वचन देता है लेकिन प्रयागराज की एक बहन ने अपने भाई को जीवनदान दिया, नेशनल फुटबॉल प्लेयर अंशिका कैथवास ने अपने भाई को लखनऊ के अपोलो अस्पताल में लिवर डोनेट किया। उनके भाई सिरोसिस की समस्या से परेशान थे। लिवर ट्रांसप्लांट ही अंतिम विकल्प था। चार भाई-बहनों के बीच में सबसे छोटी बहन अंशिका ने भाई को लिवर डोनेट किया। माय नेशन हिंदी से अंशिका की एक्सक्लूसिव बातचीत के अंश..
पासपोर्ट की त्रुटि से फ्रांस नहीं जा पाईं अंशिका
अंशिका प्रयागराज की रहने वाली हैं उनके पिता कमलेश चंद्र टॉफी बिस्कुट की एक छोटी सी गुमटी चलाते हैं, मां लीलावती हाउसवाइफ है अंशिका चार भाई बहन में सबसे छोटी हैं। प्रयाग महिला विद्यापीठ गर्ल्स इंटर कॉलेज इलाहाबाद से अंशिका ने इंटर किया है। साल 2012-13 में इसी कॉलेज से अंशिका ने स्कूल गेम के दो नेशनल फुटबॉल मैच खेलें हैं।कानपुर यूनिवर्सिटी से अंशिका ने ग्रेजुएशन किया जहां से उन्होंने यूनिवर्सिटी गेम के तहत फुटबॉल खेला। पटियाला यूनिवर्सिटी से अंशिका ने बीपीएड किया, यहां से अंशिका ने साल 2018 -19 में ऑल इंडिया फुटबॉल मैच खेला और संतोष ट्रॉफी मैच खेला। स्कूल गेम में इंडिया टीम में अंशिका का सिलेक्शन हुआ था लेकिन पासपोर्ट में गलती की वजह से वह फ्रांस फुटबॉल खेलने नहीं जा सकीं। पुणे में उन्होंने कैंप किया था जिसका उन्हें सर्टिफिकेट मिला।
पिता की छोटी सी गुमटी से 6 लोगों का जीवन चल रहा था
अंशिका कहती हैं हम दो बहन, दो भाई, सबको पापा ने बहुत मुश्किल से पढ़ाया है। सुबह 6 बजे पापा की गुमटी खुल जाती थी और रात के 9 बजे तक वो दुकान पर रहते थे, घर में गाय भैंस है जिसके दूध से कुछ आमदनी हो जाती है। शैलेन्द्र भइया को जब नौकरी मिली तो घर के हालात बेहतर हो गए। वो गेम टीचर है और एमएनआईटी में प्राइवेट जॉब करते थे कुल मिलाकर महीने में तीस पैंतीस हज़ार कमा लेते थे। लेकिन लीवर प्रॉब्लम की वजह से वह भी बिस्तर पर आ गए। अंशिका की शादी को 2 साल हुआ है उनके पति तारसेम लाल एक मेडिकल स्टोर पर नौकरी करते हैं और एक 6 महीने की बेटी है।
लोन से हुआ भाई की बीमारी का इलाज
भाई की बीमारी के बारे में अंशिका कहते हैं भैया की नाभि बाहर आ रही थी, इलाहाबाद में पंचशील हॉस्पिटल में डॉक्टर को दिखाया तो उन्होंने बताया लीवर की प्रॉब्लम है और ट्रांसप्लांट के अलावा कोई ऑप्शन नहीं है। इलाज में तीस लाख का खर्च आएगा। पहले हम दिल्ली जाने वाले थे लेकिन फिर पता चला कि लखनऊ के अपोलो हॉस्पिटल में लिवर ट्रांसप्लांट का इलाज संभव है पीएम फंड से हमें 5 लाख रुपये मिल गया, बाकी पच्चीस लाख के लिए मेरे बहनोई ने लोन लिया है।
घर में किसी का ब्लड मैच नहीं हुआ भाई से
यह पूछने पर कि वह घर में सबसे छोटी हैं और शादी भी हो चुकी है तो घर के किसी और सदस्य ने लिवर डोनेट करने की कोशिश नहीं की, इस पर अंशिका कहती हैं दीदी का ब्लड टेस्ट हुआ था लेकिन मैच नहीं हुआ। पापा और मां 50 प्लस हैं तो डॉक्टर ने साफ मना कर दिया, बड़े भैया को डेंगू है और उन्हें भी लीवर की परेशानी है इसलिए वह डोनेट नहीं कर सकते। मेरा ब्लड मैच हो गया इसलिए मैं डोनर बन गई। मुझे ख़ुशी है मुझे ऊपर वाले ने इस काम के लिए चुना अब मेरे भैया की जान बच जाएगी । बात आगे बढ़ाते हुए अंशिका कहती हैं जब भैया के लिवर ट्रांसप्लांट की बात सामने आई तब मेरी बेटी 2 महीने की थी घरवाले इस बात को लेकर चिंतित थे लेकिन पति ने काफी मोटिवेट किया। फिर जब अस्पताल पहुंची तो डॉक्टर वलीउल्लाह सिद्दीकी ने खूब समझाया जिससे घरवालों को तसल्ली हो गई और देखिए मैं आपके सामने हूं मेरा ऑपरेशन कामयाब हो गया।
3 महीने बाद फिर खेलूंगी फुटबॉल
अंशिका कहती हैं मुझे डॉक्टर नहीं 3 महीने का रेस्ट करने को बोला है। यह 3 महीने गुजरने के बाद मैं फिर से फील्ड में जाऊंगी और फुटबॉल खेलना शुरू करूंगी, फुटबॉल मेरे लिए पैशन है मेरा जुनून है मैं फुटबॉल नहीं अपना करियर बनाना चाहती हूं
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