10वीं क्लास में थर्ड डिवीजन। रिश्तेदारों ने ताने मारें कि लड़के का पढ़ाई में ध्यान नहीं। पिता ने आगे पढ़ने के लिए प्रेरित किया। पहले पीपीएस और फिर आईपीएस बनें। यह है, यूपी के बलिया निवासी रिटायर आईपीएस अफसर अनिल कुमार राय की इंस्पिरेशनल स्टोरी।
नई दिल्ली। अनिल कुमार राय को फिल्मे देखने का ऐसा शौक था कि मूवी रिलीज होने के दिन वह पहला शो देखने सिनेमा हॉल पहुंच जाते। पढ़ाई में इंटरेस्ट कम था। पिता का सपना था कि बेट पढ़ लिखकर बड़ा आदमी बने। उनके दबाव की वजह से अनिल राय स्कूल जाते थे। गांव के जूनियर हाईस्कूल से 8वीं पास की। उसी समय पिता को काम—काज की वजह से बाहर का रूख करना पड़ा तो अनिल राय की ख्वाहिशों को मानो पर लग गए, क्योंकि अब उन्हें टोकने वाला घर में कोई नहीं था। 10वीं क्लास के रिजल्ट पर इसका असर भी दिखा। थर्ड डिवीजन से पास हुए।
रिलेटिव और आस-पास के लोगों ने कहा-नहीं पढ़ेगा लड़का
उनकी हालत देखकर रिलेटिव ने कहना शुरू कर दिया कि इस लड़के का आगे पढ़ पाना मुश्किल है। आस-पास के लोग भी उन पर तंज कसने लगे। पर पिता को अपने बेटे की काबिलियत पर पूरा भरोसा था और उन्होंने बेटे को अपने पास बुलाकर समझाया कि पढ़ाई के माध्यम से ही जिंदगी में बदलाव लाया जा सकता है। यही बात अनिल राय के दिल को छू गई और उन्होंने मन लगाकर 12वीं क्लास तक पढ़ाई की। सेकेंड डिवीजन से पास हुए। यही से उनकी जिंदगी का रूख बदल गया।
पोस्ट ग्रेजुएशन में टॉप की यूनिवर्सिटी, गोल्ड मेडल मिला
पिता ने कहा कि अब 12वीं तक पास कर लिए हो तो आगे और पढ़ाई करो और इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में उनका दाखिला करा दिया। जब पहले दिन उन्हें यूनिवर्सिटी तक छोड़ने आए तो भावुक होकर कहा कि खूब मेहनत करना। मेरे भरोसे को सही साबित करके दिखाना। फिर तो करिश्मा हो गया। अनिल राय ने ग्रेजुएशन में 71 प्रतिशत मार्क्स हासिल किए। गांव में जब यह बात पता चली तो लोग सरप्राइज हो गए। पोस्ट ग्रेजुएशन में युनिवर्सिटी टॉप किया। गोल्ड मेडल मिला। उनकी पीएचडी करने की इच्छा थी। पर पारिवारिक स्थिति की वजह से उनको अपने कदम पीछे खींचने पड़ें। यूजीसी स्कॉलरशिप के लिए अप्लाई किया। पर नहीं मिल सकी, क्योंकि 10वीं क्लास में उनके नंबर काफी कम थे।
2002 में बने आईपीएस
इसी बीच अनिल राय ने यूपी पीसीएस का एग्जाम दिया और डिप्टी एसपी बनें। आगे यूपीएससी का एग्जाम भी देना चाहते थे। पर उसी दौरान पिता का निधन हो जाने की वजह से परिवार की जिम्मेदारी उन्हीं के कंधों पर आ गई तो यूपीएससी क्लियर करने का उनका सपना धरा का धरा रह गया। साल 2002 में प्रमोशन मिला और आईपीएस बने। उनके शुरूआती दिनों के जीवन पर नजर डाला जाए तो कोई यह सोच भी नहीं सकता था कि पढ़ाई में कमजोर लड़का एक दिन आईपीएस अफसर बनेगा। दो बार राष्ट्रपति पुलिस मेडल से भी सम्मानित किए गए।
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