अर्पण कम उम्र में खुद भी 4 से 5 साल आश्रम में ही रहें। बचपन में उन्हें एक आश्रम में भर्ती कराया गया था। उस समय उनकी उम्र 11-12 साल रही होगी। वहां की जिंदगी को नजदीक से देखा। वहीं से उन्हें अनाथालय और वृद्वाश्रम के लोगों की मदद करने की प्रेरणा मिली।
कोलकाता। कहते हैं कि दूसरों के चेहरों पर मुस्कान आने की वजह बनना खुद को सुकून पहुंचाता है। पश्चिम बंगाल के करीमनगर के रहने वाले अर्पण बनर्जी यही कर रहे हैं। लगभग 20 वर्षों से प्रदेश के अनाथालय और वृद्धाश्रम में रहने वाले बेसहारा लोगों की मदद करना उनकी आदत में शुमार है। समय-समय पर कपड़े, मिठाइयां और जरुरत के सामान पहुंचाते हैं। वह भी खुद की कमाई और अपने दोस्तों की मदद से। माई नेशन हिंदी से बात करते हुए अर्पण कहते हैं कि सड़क पर यदि कोई बच्चा या बड़ी उम्र का व्यक्ति हो और आप उसे चाकलेट या प्यार देंगे तो उसके चेहरे पर जो मुस्कान आती है। उसी के लिए मैं यह काम कर रहा हूॅं। यह मुझे अच्छा लगता है।
कम उम्र में आश्रम में रहें, वहीं से मिली लोगों की हेल्प करने की प्रेरणा
अर्पण कम उम्र में खुद भी 4 से 5 साल आश्रम में ही रहें। बचपन में उन्हें एक आश्रम में भर्ती कराया गया था। उस समय उनकी उम्र 11-12 साल रही होगी। वहां की जिंदगी को नजदीक से देखा। वहीं से उन्हें अनाथालय और वृद्वाश्रम के लोगों की मदद करने की प्रेरणा मिली। तब उनकी उम्र कम थी। कमाई का भी कोई साधन नहीं था। परिवार की स्थिति भी ठीक नहीं थी कि वह कुछ कर सकें। आप समझ सकते हैं कि ऐसी स्थिति में लोगों की मदद करना आसान नहीं था।
अपनी कमाई और दोस्तों की मदद से करते हैं हेल्प
शुरुआती दिनों में वह ब्लड डोनेट कर लोगों की मदद करते थे। फिर प्रापर्टी एजेंट का काम शुरु किया तो अपनी कमाई से। अर्पण कहते हैं कि यह काम करते हुए 20 साल हो गए हैं। अर्पण पश्चिम बंगाल के 6 से 7 अनाथालय और 4 से 5 वृद्धाश्रमों तक जाने की कोशिश करते हैं। आश्रमों या अनाथालयों में लोगों को जरुरत की चीजें पहुंचाते हैं। वहां खाने की चीजें, कपड़े-कम्बल वगैरह देकर आते हैं। यदि कोई वहां जाना चाहता है तो उसे एड्रेस देते हैं। उन लोगों के लिए त्यौहारों पर जरुरी चीजें भी ले जाते हैं। शुरु में लोगों ने उनके काम पर ध्यान नहीं दिया। पर अब दोस्त भी उनका साथ देते हैं। वह करीमनगर में सड़कों पर रहने वाले लोगों की भी नियमित मदद करते हैं।
वृद्धाश्रम खोलने की है योजना
अर्पण कहते हैं कि उनकी योजना एक वृद्धाश्रम खोलने की है। जहां बेसहारा लोगों को आसरा दिया जा सके। रास्तें में पड़े बेघर लोगों का इलाज कर उन्हें रखा जा सके। उनको दो वक्त का खाना और रहने का ठिकाना मिले। जब कोई उनसे पूछे कि वह कहां रहते हैं तो वह भी गर्व से अपना पता बता सकें कि वह उनका घर है।