एक किडनी वाला स्प्रिंटर दिला चुका है चांदी, ऑर्गन ट्रांसप्लांट कराए लोगों में कॉन्फिडेंस भरती है इनकी कहानी

By Rajkumar Upadhyaya  |  First Published Sep 23, 2023, 5:52 PM IST

किडनी या बॉडी का कोई ऑर्गन ट्रांसप्लांट करा चुके लोगों के लिए लखनऊ, उत्तर प्रदेश के रामहरख की कहानी इंस्पिरेशनल है। ग्वारी गांव के रहने वाला यह एथलीट शुरु से ही एथलेटिक्स की दुनिया में नाम कमाना चाहता था। शरीर में सिर्फ एक किडनी है। पर 12वें नेशनल ट्रांसप्लांट गेम्स में यूपी के लिए रजत पदक जीता। 

लखनऊ। किडनी या बॉडी का कोई ऑर्गन ट्रांसप्लांट करा चुके लोगों के लिए लखनऊ, उत्तर प्रदेश के रामहरख की कहानी इंस्पिरेशनल है। ग्वारी गांव के रहने वाला यह एथलीट शुरु से ही एथलेटिक्स की दुनिया में नाम कमाना चाहता था। शरीर में सिर्फ एक किडनी है। पर 12वें नेशनल ट्रांसप्लांट गेम्स में यूपी के लिए रजत पदक जीता। माई नेशन हिंदी से उन्होंने अपना स्ट्रगल शेयर किया है। आइए जानते हैं उनके बारे में विस्तार से।

पीलिया से पीड़ित हुए तो बन गएं ऑर्गन ट्रांसप्लांट श्रेणी के एथलीट 

रामहरख पहले स्वस्थ थे। पर साल 2014 में पीलिया से पीड़ित होने के बाद उनके सपने को ग्रहण लग गया। बीमारी इतनी ज्यादा बेकाबू हुई कि दोनों किडनियों ने जवाब दे दिया। परिवार परेशान हुआ। मॉं ने अपनी किडनी देकर बेटे की जान बचाई। बीमारी से उबरे पर शरीर साथ देने को तैयार नहीं था। परिवार की खेल से किनारा करने की सलाह को दरकिनार कर दोबारा प्रैक्टिस शुरु की। प्लेयर्स की सामान्य श्रेणी के बजाए ऑर्गन ट्रांसप्लांट श्रेणी के एथलीट बन गए। 

डॉक्टर की सलाह पर दोबारा शुरु किया खेलना

पहली बार साल 2014 में जब उनकी किडनी खराब हुई तो किडनी ट्रांसप्लांट कराने में साढ़े 13 लाख रुपये खर्च हुए थे। तब, रामहरख अन्य मरीजों की तरह जिंदगी से हार से गए थे। न दौड़ना और न भारी सामान उठाना उनकी जिंदगी के रूटीन में शामिल हो गया। जिंदगी नीरस सी हो चली थी। उनके अंदर का खिलाड़ी मर रहा था। उस समय कुछ सीनियर प्लेयर्स ने राम हरख का उत्साह बढ़ाया, मदद भी की। उन्हें ऑर्गेन ट्रांसप्लांट कैटेगरी में खेलने के लिए कहा। यह जानकर वह बहुत खुश हुए कि वह दोबारा खेल सकते हैं। डॉक्टर की सलाह पर उन्होंने फिर से प्रैक्टिस शुरु की। 

चपरासी की नौकरी के साथ करते रहें प्रैक्टिस

रामहरक का बचपन से ही स्पोट्स की तरफ इंटरेस्ट था। पिता किसान थे, ज्यादा इनकम नहीं थी। इसी वजह से पढ़ाई भी पैसे के अभाव में जल्दी छूट गई। साल 2010 में लखनऊ के गोमतीनगर स्थि​त एक मिनी स्टेडियम में चपरासी की नौकरी मिल गई। घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी तो 5 हजार रुपये महीने पर नौकरी कर ली। मिनी स्टेडियम में काम के साथ प्रैक्टिस करते रहें। 

कोरोना महामारी की वजह से नहीं खेल पाएं एशिया लेबल का टूर्नामेंट

साल 2020 में कोराना महामारी आने से पहले मुंबई में हुए 12वें नेशनल ट्रांसप्लांट गेम्स में 100 मीटर की रेस में रजत पदक जीतकर रामहरख ने प्रदेश का नाम रोशन किया था। इस कैटेगरी में रजत पदक जीतने वाले वह यूपी के पहले खिलाड़ी थे। फिर उनका चयन राष्ट्रीय टीम में हो गया। थाईलैंड में एशिया स्तर का टूर्नामेंट खेलने जाने की तैयारी कर रहे थे। पर कोरोना महामारी की वजह से गेम्स टल गए। फिर भी रामहरख ने जिंदगी की जंग में हिम्मत नहीं हारी है। मौजूदा समय में भी वह डायलिसिस पर हैं। 

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