अपनों के ठुकराए 486 बुजुर्गों का सहारा बने कोलकाता के देब कुमार मलिक, डेली खिलाते हैं खाना-देते हैं दवाई-कपड़ा

By Rajkumar Upadhyaya  |  First Published Sep 14, 2023, 7:20 PM IST

486 बेसहारा बुजुर्गों के लिए कोलकाता के देब कुमार मलिक किसी मसीहा से कम नहीं है। चाहे प्रचंड गर्मी हो या कंपकंपाती ठंड या​ फिर मूसलाधार बारिश। बुजुर्गों को यह भरोसा रहता है कि उनको खाना मिलेगा। आइए जानते हैं अपनों के ठुकराए बुजुर्गों का सहारा बने देब कुमार मलिक की कहानी।

कोलकाता। कोलकाता के बरनगर के रहने वाले देब कुमार मलिक के पिता 5 साल की उम्र में ही अपाहिज हो गए। बचपन में ही अपनी नाना-नानी की तकलीफ देखी। चाचा उन्हें बहुत तंग करते थे। यह उन्हें चुभता था। उम्र बढ़ी तो सड़कों पर बेसहारा बुजुर्गों को देखा तो रहा नहीं गया और 8 साल पहले बुजुर्गों को खाना खिलाने की मुहीम शुरु कर दी। पहले ऐसे 300 बुजुर्गों को डेली खाना खिलाते थे। अब उनकी संख्या बढ़कर 486 हो गई है। माई नेशन हिंदी से बात करते हुए देब कुमार मलिक कहते हैं कि मॉं-पिता बच्चों के घर लौटने में देरी पर देर रात तक नहीं सोते हैं। उन्हीं बच्चों को अपने पैरेंट्स की कोई फ्रिक नहीं है। उन्हें ओल्ड एज होम या सड़क पर छोड़ देते हैं। यह बताते हुए देब कुमार भावुक हो जाते हैं।

लोगों की नाराजगी झेली, हमले भी हुएं

देब कुमार मलिक 'जय राम सेवा आश्रम' के नाम से एक संस्था चलाते हैं। उसी संस्था के बैनर तले बुजुर्गों की सेवा कर रहे हैं। जय राम उनके गुरु का नाम था। उन्हीं के नाम पर संस्था खोली। वह कहते हैं कि बुजुर्गों को खाना खिलाने के काम में मेरे ऊपर अटैक भी हुआ, गालियां भी सुननी पड़ीं, क्योंकि मेरे काम से उन लोगों की कलई खुल रही थी, जो अपने मॉं-पिता को खाना नहीं देते हैं। ऐसे लोगों के घर में घुसकर बुजुर्गों को खाना देता हूॅं।

अपने खर्चे से बुजुर्गों को खिलाते हैं खाना

देब कुमार मलिक कहते हैं कि बुजुर्गों को खाना खिलाने के लिए मैं किसी से चंदा के रूप में पैसा नहीं लेता हूॅं। अपने खर्चे से चलाता हूॅं। जब अपने परिवार के लिए कपड़ा खरीदता हूॅं तो बुजुर्गों के लिए भी कपड़ा खरीदता हूॅं। यदि वे लोग बीमार पड़ते हैं तो उन्हें फ्री दवाई देता हूॅं। भविष्य में एक वृद्धाश्रम खोलने की योजना है, जिसमें बुजुर्गों की फ्री सेवा होगी। 

बुजुर्गों को घर तक खाना पहुंचाने पर होती है ये दिक्क्त

देब कुमार कहते हैं कि जब मैं बुजुर्गों को उनके घर में खाना पहुंचाता हूॅं तो लोग काउन्सलर को बोलते हैं कि वह हमारे मॉं-पिता को खाना क्यों दे रहे हैं, उनको बोलिए कि वह हमारे पैरेंट्स को खाना मत दें। काउन्सलर हमें फोन करके बताते हैं तो हम कहते हैं कि हमें क्यों बोलते हैं। उन लोगों को बोलिए कि वह अपने पैरेंट्स को खाना दें। 

लोगों से करते हैं ये अपील 

देब कुमार मलिक कहते हैं कि जिनके पास पैसा रहता है तो ओल्ड ऐज होम को डिपाजिट मनी देते हैं ताकि उनके मम्मी-पापा वृद्धाश्रम में रहें और महीने में कभी फोन पर अपने पैरेंट्स की खबर ले लेते हैं। जिसके पास पैसा नहीं है, तो वह अपने पैरेंट्स को बस स्टैंड, फुटपाथ या रेलवे प्लेटफार्म पर बैठाकर कहते हैं कि मैं आ रहा हूॅं और फिर नहीं लौटते। ऐसे बुजुर्ग फुटपाथ पर किसी बालकनी के नीचे अपना गुजारा करते हैं। वह ऐसे बच्चों से अपील करते हुए कहते हैं कि मॉं बाप को इस तरह फेंको मत। उनका सम्मान करो। वही तुम्हारे भगवान हैं। 

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