अफसर बना किसान: असिस्टेंट कमांडेंट की नौकरी छोड़ शुरु की खेती, गांव में मोटी कमाई को दिखा रहे कमाल की राह

पढ़ाई में मेहनत कर असिस्टेंट कमांडेंट बने। 5 साल बाद नौकरी छोड़ी। गांव में पैतृक जमीन पर चंदन की खेती शुरु कर दी। अब रूरल इकोनॉमी बूस्ट करने की राह दिखा रहे हैं। हम बात कर रहे हैं यूपी के एक छोटे से गांव के रहने वाले उत्कृष्ट पांडेय की।

inspirational story of former Assistant Commandant Utkrisht Pandey cultivating white sandalwood and black turmeric zrua

लखनऊ। पढ़ाई में मेहनत कर ज्यादातर लोग सरकारी नौकरी पाना चाहते हैं। उसके उलट यूपी के प्रतापगढ़ के रहने वाले भदौना गांव के उत्कृष्ट पांडेय ने सशस्त्र सीमा बल में बतौर असिस्टेंट कमांडेंट की नौकरी तो शुरू की, पर 5 साल बाद नौकरी छोड़ दी और गांव की पैतृक जमीन पर खेती शुरु कर दी। माय नेशन हिंदी से बात करते हुए वह कहते हैं कि शुरू से मन में था कि कुछ ऐसा काम किया जाए, जो रूरल इकोनॉमी को बूस्ट करे। इनवायरमेंटल प्रोटेक्शन के साथ सस्टेनेबल इकोनॉमी को बढ़ावा मिले। गांव से लोगों को पलायन रूके। महिलाओं को रोजगार मिले। 

इंटरनेट से मिला चंदन की खेती का आइडिया

सीएपीएफ की नौकरी उत्कृष्ट पांडेय की ड्रीम जॉब थी। शुरुआती दिनों से ही वह खेती-किसानी की बेहतरी के लिए भी सोचा करते थे। पढ़ाई के बाद साल 2011 में असिस्टेंट कमांडेंट के पद पर सेलेक्शन हुआ। 5 साल से ज्यादा समय तक देश के कई राज्यों में पोस्टिंग हुई। नौकरी के दौरान भी यह ख्याल उनके दिमाग में बना रहा कि रूरल इकोनॉमी को कैसे बढ़ावा दिया जा सकता है। इस बारे में इंटरनेट पर उन्होंने काफी खोजबीन की तो चंदन के पेड़ लगाने का​ आइडिया आया। 

 

वोकल फॉर लोकल कंसेप्ट के तहत आगे बढ़ाया काम

चंदन के पौधे लगाने के पीछे की वजह बताते हुए उत्कृष्ट पांडेय कहते हैं कि यह बहुत महंगा पौधा है। जिसकी इकोनॉमिकली खेती की जा सकती है। ज्यादातर लोग इस बारे में नहीं जानते हैं। यह सोचकर चंदन की खेती करने का फैसला लिया कि कैसे इस खेती को ग्रामीण रोजगार से जोड़ सकते हैं। भविष्य में जब यह पौधा तैयार हो जाएगा तो उससे साबुन, तेल वगैरह आदि प्रोडक्ट भी बनेंगे। चिकित्सीय और कॉस्मेटिक गुणों की वजह से मार्केट में सफेद चंदन महंगा बिकता है। वोकल फॉर लोकल कंसेप्ट के तहत काम को आगे बढ़ाने का लक्ष्य बनाया। 

IWT से ट्रेनिंग लेकर शुरु किया काम

आम धारणा है कि सिर्फ साउथ इंडिया में ही चंदन के पौधे तैयार हो सकते हैं। उन्होंने जब इस बारे में जानकारी इकट्ठा की तो पता चला कि नॉर्थ इंडिया में भी इसकी खेती की जा सकती है। साल 2016 में नौकरी छोड़ी और बेंगलुरु स्थित चंदन पर रिसर्च करने वाले सबसे बड़े संस्थान, इंस्टीट्यूट ऑफ वुड सांइस एंड टेक्नोलॉजी (Institute of Wood Science & Technology) से ट्रेनिंग ली। शुरुआती दिनों में परिवार के मन में तमाम सवाल थे। बाद में परिवार ने काम की गंभीरता को समझा। उनकी पत्नी तूलिका पांडेय ने भी उन्हें सपोर्ट किया।

 

किसान कैसे उठा सकते हैं फायदा?

उत्कर्ष पांडेय कहते हैं ​कि लगभग 5 से 7 एकड़ में पूरा सेटअप है। चंदन के लगभग 2000 पौधे लगाए हैं। उनके बीच में कस्तूरी हल्दी, काली हल्दी, लोकडोंग हल्दी, काला नमक जैसे फसलों की भी खेती की। चंदन की खेती के किसानों को होने वाले फायदे बताते हुए वह कहते हैं कि यह पौधा 14 से 15 साल में तैयार होता है। हर किसान के पास इतनी जमीन होती है कि वह 2 से 4 पौधे लगा सकते हैं। उसमें ज्यादा देखभाल की जरूरत नहीं होती है। जब बच्चों को हॉयर एजूकेशन की जरूरत हो या विवाह व अन्य चीजों में पैसों की तब इससे एक मुश्त पैसा मिल सकता है। 

चंदन की खेती की देते हैं फ्री ट्रेनिंग

अपने मार्सेलोन एग्रोफार्म्स (Marcelone  Agrofarms) में पांडेय लोगों को चंदन की खेती की फ्री ट्रेनिंग भी देते हैं। किसानों को चंदन के पौधों के बीच में मिलेट्स, दाल, हल्दी आदि की खेती के बारे में भी बताते हैं, जिनकी उपज मार्केट में अच्छी कीमत पर बिकती है। वह कहते हैं कि किसान चंदन के पेड़ अपने खेतों की मेड़ पर भी लगा सकते हैं। जिनके पास ज्यादा खेत है। वह खेतों के बीच में भी चंदन के पौधे लगा सकते हैं। बस इतना ध्यान रखना होता है कि तब ऐसी फसल चंदन के पौधों के बीच नहीं लगानी चाहिए। जिसमे ज्यादा पानी की जरूरत होती है। उनके फॉर्मिंग मॉडल को बिहार, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, दिल्ली—एनसीआर, हरियाणा के कई किसानों ने अपनाया है। उत्कृष्ण पांडेय ने स्थानीय किसानों को भी काम से जोड़ा है। उन्‍हें देवभूमि भगवान पुरस्कार और तरुमित्र सम्मान भी मिला है।

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