झारखंड के देवघर स्थित नंदन पर्वत की 5 साल तक सफाई करने में जुटे रहें। वजह सिर्फ इतनी सी थी कि पहाड़ पर घूमते वक्त उनके बेटे के पैर में शीशा चुभ गया था। आज मिलिए पहाड़ पर बिखरा शीशा चुनने वाले जीतेंद्र महतो से।
रांची। 'माउण्टेन मैन' और करिश्माई शख्स दशरथ मांझी ने अपनी पत्नी की खातिर बड़े पहाड़ का सीना अकेले चीर डाला था। झारखंड के देवघर के रहने वाले जीतेंद्र महतो भी दशरथ मांझी से कम नही हैं। अपने घर से दो किमी की दूरी पर मौजूद नंदन पर्वत की सफाई में 5 साल तक जुटे रहें। वजह सिर्फ इतनी थी कि पहाड़ पर घूमते वक्त उनके बेटे के पैर में शीशा चुभ गया था। माई नेशन हिंदी से बात करते हुए जीतेंद्र महतो कहते हैं कि अक्टूबर 2015 से पहाड़ साफ करने का काम शुरु किया था, जो साल 2020 में आए कोरोना महामारी तक अनवरत चला। उसी दरम्यान हाथ में चोट लग गई। अब बारिश के मौसम के बाद फिर सफाई का काम शुरु करेंगे।
एक्सीडेंटली शुरु हुई नंदन पर्वत को शीश फ्री करने की मुहिम
जीतेंद्र महतो झारखंड सरकार में फोर्थ क्लास एम्पलाई हैं। उन्होंने पहाड़ को साफ करने की ऐसी जिद ठानी की, फिर लोगों के टोकने पर भी नहीं रूकें। उनकी नंदन पर्वत को शीशा फ्री करने की मुहिम भी एक्सीडेंटली शुरु हुई। वह सुबह पर्वत पर टहलने जाते थे। एक दिन बेटा संजय कुमार भी उनके साथ गया और पहाड़ से नीचे उतरते वक्त पैर में शीशा चुभने की वजह से जख्मी हो गया। बेटे ने उनसे पूछा भी कि पापा ये शीशा कहां से आता है। तब जीतेंद्र ने अपने बेटे को घर चलने के लिए कहा। फिर एक झाड़ू लेकर पहाड़ पर आए और सफाई की। 2-4 दिन गुजरे थे कि नंदन पर्वत पर स्थित पार्क के एक जिम्मेदार ने उन्हें अंदर भी सफाई करने को कहा तो उनका उत्साह बढ़ा और वह पार्क की सफाई में जुट गए।
शीशे में सीमेंट और बालू मिलाकर बनाए 20 डस्टबिन
जीतेंद्र महतो पहाड़ पर बिखरे शीशे को चुनते रहें और उसी शीशे में बालू और सीमेंट मिलाकर 20 डस्टबिन बनाएं। उनमें से 10 डस्टबिन नंदन पर्वत के पार्क के अंदर और 10 डस्टबिन पार्क के बाहर लगाएं। उन्होंने तब जिम्मेदारों से अपील भी की थी कि पहाड़ पर घूमने आने वाले लोगों को शीशे की बोतल में पेय पदार्थ उपलब्ध कराने के बजाए अन्य विकल्पों पर विचार किया जाए, पर किसी ने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया।
नंदन पर्वत की सफाई की मुहिम में आया रोड़ा
जीतेंद्र कहते हैं कि तब जब भी समय मिलता था, पार्क की सफाई करने चला जाता था। शीशे के छोटे-छोटे टुकड़ों को इकट्ठा करके डस्टबिन बनाया, बचे हुए शीशों को उसी डस्टबिन में डाल दिया। सफाई करते वक्त लोग उन्हें टोकते भी थे। पर वह अनवरत अपने काम में लगे रहें। ऐसा नहीं है कि नंदन पर्वत को साफ करने की उनकी मुहिम की राह में रोड़ा नहीं आया। तमाम बाधाएं भी आईं।
मैनेजर से अपमाानित होने के बाद पौधारोपण
नंदन पर्वत पर स्थित पार्क की गार्डेनिंग करने की जिम्मेदारी जिन कर्मचारियों के कंधों पर है। वह उस पर ध्यान नहीं देते हैं। शुरुआत दौर में जीतेंद्र महतो ने कर्मचारियों से कहा कि यदि आप लोग हेल्प करेंगे तो यह पहाड़ जल्दी साफ हो जाएगा तो कर्मचारी उन्हें न समझाने और अपना काम करने की नसीहत देते थे। फिर भी वह अपने काम में लगे रहें। पार्क के मैनेजर से अपमानित होने के बाद जीतेंद्र महतो खाली समय में पौधारोपण करने लगें।
बड़े अफसर की परमिशन के बाद शुरु की सफाई
पार्क के मैनेजर ने एक दिन उन्हें काम करने से मना कर दिया। उनकी इंस्लट करते हुए कहा कि यदि सफाई करनी है तो बड़े अफसरों की परमिशन लेकर आओ। अपमानित होने के बाद वह संबंधित अफसरों के पास गए पर वह भी जीतेंद्र महतो को छह महीने तक टरकाते रहें। एक दिन जिला स्तर के एक बड़े अधिकारी से अपनी बात कही, तब उन्होंने सफाई का परमिशन दिया तो फिर महतो नंदन पर्वत की सफाई में जुट गए।
बारिश के बाद फिर शुरु करेंगे सफाई
जीतेंद्र महतो कहते हैं कि छुट्टी के दिन यह काम करते हैं। सुना है कि एक पौधा लगाना एक बेटी की शादी करने के बराबर होता है। आदमी खुद के लिए तो बहुत जीता है। सोचा कि समाज के लिए कुछ किया जाए। कोरोना काल के सेकेंड फेज में हाथ में चोट लग गई तो प्लास्टर बंधा था। डॉक्टर की सलाह पर पर्वत की सफाई करने नहीं गए। बारिश का मौसम खत्म होने के बाद फिर पहाड़ की सफाई शुरु करेंगे।
कचरा छोड़कर चले जाते हैं घूमने आने वाले लोग
करीबन 2 किमी में फैले नंदन पर्वत पर लोग घूमने आते हैं। मौज-मस्ती करते हैं। खाद्य और पेय पदार्थों को यूज करने के बाद कचरा फैला कर चले जाते हैं। जीतेंद्र महतो ने सफाई का काम शुरु किया तो कुछ लोग उनके साथ भी जुड़ें। वह इतने लगन से सफाई के काम में जुटे रहते थे कि पहले वहां आने वाले लोग जीतेंद्र महतो को स्टॉफ समझते थे। जीतेंद्र ने नंदन पर्वत के पास स्थित तालाब के किनारे की सफाई भी की, जहां लोग पार्टी करने के लिए जाते थे और कचरा छोड़कर निकल जाते थे।
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