शिक्षा को लेकर जोधपुर की अयोध्या कुमारी ने बहुत संघर्ष किया है । वह ऐसे परिवार से आती हैं जहां लड़कियों को शिक्षा नहीं दी जाती है । अयोध्या 15 साल की उम्र में पहली बार स्कूल गई। 31 साल की उम्र में उन्होंने हाई स्कूल किया। ससुराल में पढ़ाई को लेकर विरोध हुआ। बेटी के साथ उन्होंने B.Ed किया और आज अपना खुद का स्कूल चल रही है 80 साल की उम्र में।
राजस्थान जोधपुर की अयोध्या कुमारी गौड़ उन सभी लोगों के लिए नजीर हैं जो पढ़ाई लिखाई के लिए उम्र की बंदिश लगाना चाहते हैं। अयोध्या कुमारी ने इस बात को साबित किया की उम्र चाहे कोई भी हो ,किसी भी उम्र में तालीम हासिल किया जा सकता है। उनकी उम्र 80 साल है 15 साल की उम्र में उन्होंने पढ़ना लिखना शुरू किया था लेकिन आज भी उनकी पहली प्रायोरिटी यह होती है की हर व्यक्ति तक शिक्षा पहुंचनी चाहिए। माय नेशन हिंदी से बात करते हुए अयोध्या कुमारी ने अपनी जिंदगी के सफर को साझा किया
कौन है अयोध्या कुमारी
अयोध्या कुमारी जयपुर के एक ऐसे परिवार से आती हैं जहां लड़कियों को स्कूल भेजने के बारे में सपने में भी नहीं सोचा जाता था। अयोध्या क हती हैं मेरे पिता जगदीश नारायण शर्मा मंदिर में पुजारी थे उसी से पूरे परिवार का भरण पोषण हो रहा था। अपनी और बहनों के साथ मैं भी घर के काम में हाथ बटाती थी। जब 15 साल की हुई तो मेरे लिए लड़के की तलाश शुरू हो गई। लेकिन कहते हैं ना कब कहां कौन किसको क्या समझा दे यह सिर्फ भगवान जानता है। पिताजी के एक दोस्त की पत्नी जो की एक स्कूल चलाती थी उन्होंने समझाया की बेटियों को इस लायक तो बना ही दीजिए कि वह ससुराल में अगर परेशान की जाए तो अपना दर्द पोस्टकार्ड पर लिखकर मायके तक भेज सके। यह बात पिताजी के दिल में घर कर गई, और पिताजी ने मेरी पढ़ाई शुरू करवाई। 1957 में जब मैं 15 या 16 साल की थी तब पहली बार स्कूल की शक्ल अंदर से देखी। मजे की बात यह है कि मैं साड़ी पहन कर स्कूल जाती थी लेकिन साड़ी पहनना कोई समस्या नहीं थी, समस्या थी शिक्षा जिसको मुझे हर हाल में सीखना था। मैंने हिंदी पढ़ना सीखा, मैथमेटिक्स के नंबर भी गिनने आ गए , विज्ञान भी थोड़ी बहुत समझ में आ गई लेकिन अंग्रेजी के लिए बहुत मशक्कत करनी पड़ी और इसी मशक्कत के दरमियान 1962 में एक ऐसे परिवार में मेरी शादी कर दी गई जहां मेरी पढ़ाई लिखाई बंद करवा दी गई।
31 साल में किया हाई स्कूल
अयोध्या कुमारी कहती हैं शादी के बाद दो बच्चे हो गए, ससुराल के तजुर्बे भी बड़े सख्त थे ऊपर से मेरे दिल में आगे पढ़ने की ख्वाहिश हिलोरे मार रही थी। और फिर एक दिन मेरे मकान मालिक के बेटे ने मदद किया और मुझे बताया कि घर बैठकर प्राइवेट स्टूडेंट की हैसियत से भी पढ़ाई की जा सकती है। मैंने पढ़ाई शुरू कर दी। अपनी कॉपी किताबों को छुपा कर रखती थी जब सब सो जाते थे तब पढ़ाई करती थी और आखिरकार 1976 में जब मैं 31 साल की थी तब हाई स्कूल पास किया। इस वक्त मेरे बच्चे भी स्कूल जाने लायक हो चुके थे।
ससुराल में शुरू हुआ विरोध
अयोध्या कुमारी कहती हैं कि मेरी पढ़ाई और एग्जाम के बारे में जब ससुराल वालों को पता चला तो जबरदस्त विरोध हुआ। हालात यहां तक पहुंच जाते थे कि मैं जिन मांगी हुई किताबों से पढाई कर रही थी उसको भी गुस्से में वो लोग फाड़ देते थे लेकिन एक प्लस पॉइंट था मेरे पति राम प्रसाद गौड़ का सहयोग। मेरे पति नायब तहसीलदार थे और बीकानेर में पोस्टेड थे जोधपुर से 70 किलोमीटर दूर ओसियां गांव में हाई स्कूल का फॉर्म भरा था। एग्जाम टाइम में 15 दिन बच्चों से दूर रही और फिर 1979 में 12वीं भी पास कर लिया। 1983 में मैं ग्रेजुएट हो गई। 1990 में कोटा ओपन यूनिवर्सिटी से B.Ed कर लिया, मजे की बात यह है कि उसे वक्त मेरी बेटी भी किसी अन्य जगह से B.Ed कर रही थी।
टीचर बन गई अयोध्या
B.Ed की डिग्री के बाद अयोध्या शिव बालिका माध्यमिक विद्यालय में टीचर बन गईं और बच्चों को पढ़ाने लगी। इस स्कूल में वह बच्चे आते थे जिनकी आर्थिक स्थिति कमजोर होती थी। वो कहती हैं 2001 में मैंने घर में महर्षि पब्लिक स्कूल शुरू किया जहां आज भी ढाई सौ से ₹500 की फीस के दरमियान सारी सहूलतों के साथ बच्चे एजुकेशन हासिल कर रहे हैं। क योध्या रहती हैं अब तो मैं दादी नानी वाली उम्र में हूं लेकिन फिर भी घूम घूम कर बच्चों को स्कूल भेजने के लिए हर किसी से कहती रहती हूं।
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