फसलों को कीड़ों से बचाने के पेस्टिसाइड्स (महंगे केमिकल) पर हर साल लाखो रुपये खर्च करते थे। कर्ज के बोझ से दबे थे। अपना मुनाफा बढ़ाने के लिए कर्नाटक के 10वीं पास किसान करिबसप्पा एमजी ने कमाल का इनोवेशन किया। जुगाड़ से ‘सोलर इंसेक्ट ट्रैप’ बनाई। अब उनका इनोवेशन दुनिया भर के 16000 से ज्यादा किसानों के काम आ रहा है।
बेंगलुरु। कर्नाटक के दावणगेरे जिले के एक छोटे से गांव जिगाली के किसान करिबसप्पा एमजी ने कमाल का इनोवेशन किया है। फसलों को कीड़ों से बचाने के लिए ‘सोलर इंसेक्ट ट्रैप’ बनाई। माय नेशन हिंदी से बात करते हुए कहते हैं कि साल 2014 में 5 एकड़ खेत में अनार उगाएं। पर कीड़ों की वजह से पैदावार पर असर पड़ा। वह फ्रूट में छेद कर देते थे। पेस्टिसाइड्स के छिड़काव का सुझाव दिया गया। उसमें करीबन 4.5 लाख रुपये का खर्च आया। उन खर्चों को अफोड कर पाना मेरे लिए मुश्किल था। कर्ज लेना पड़ा। फिर एक आइडिया आया और काफी प्रयोगों के बाद ‘सोलर इंसेक्ट ट्रैप’ बनाई। 6 देशों में सप्लाई है। कम्पनी का टर्नओवर 2 करोड़ से ज्यादा है।
पेस्टीसाइड्स के खर्च के साथ कर्ज बढ़ा
करिबसप्पा एमजी ने साल 1980 में 10वीं पास की। उनका आगे पढ़ाई करने का मन था। पर परिवार की माली हालत ठीक नहीं थी तो खेती-किसानी के काम में जुट गए। तब आमतौर पर गन्ने की खेती होती थी। प्रॉफिट बढ़ाने के लिए उन्होंने हॉर्टिकल्चर क्राप्स पर ध्यान दिया। साल 2012 में अनार की खेती करने का निर्णय लिया। अच्छी फसल हुई पर कीड़ों की वजह से फायदे पर असर पड़ा। कीड़े फ्रूट को नुकसान पहुंचाते थे। उन्होंने लोगों से सलाह ली तो पेस्टीसाइड्स यूज करने का सुझाव दिया गया। करिबसप्पा कहते हैं कि 4 से 5 लाख रुपये पेस्टीसाइड्स का खर्च आया। पैसे नहीं थे। लोन लेना पड़ा। इससे वह इतने परेशान कि कई दिनों तक सो नहीं सके। यही विचार दिन रात उनके दिमाग में चलता रहता था।
कैसे आया ‘सोलर इंसेक्ट ट्रैप’ बनाने का आइडिया?
करिबसप्पा कहते हैं कि उनके फॉर्म पर एक छोटी से झोपड़ी थी। बिजली नहीं थी तो रोशनी के लिए एक सोलर बल्ब लगाया था। एक दिन देखा कि शाम के समय बल्ब के चारो तरफ कीड़े घूम रहे थे। उसके नीचे एक बकेट में पानी भरकर रख दिया। सुबह 50 से 100 कीड़े बकेट में पड़े मिले। कीड़े लाइट की तरफ अट्रैक्ट हो रहे थे। फिर वह आईसीएआर-तरलाबालु कृषि विज्ञान केंद्र, दावणगेरे (ICAR-Taralabalu Krishi Vigyan Kendra, davanagere) गए और साइंटिस्ट से बात की तो उन्होंने कहा कि अलग-अलग रंगों के बल्ब अलग-अलग ऊंचाई पर लगाकर लगातार एक्सपेरिमेंट करिए।
‘सोलर इंसेक्ट ट्रैप’ का पहला मॉडल बनाने में लगें 1 साल
इस तरह करिबसप्पा को ‘सोलर इंसेक्ट ट्रैप’ का पहला मॉडल बनाने में करीबन एक साल का समय लगा। पहले मॉडल में 10 वॉट का सोलर पैनल और 12 वोल्ट की बैटरी लगाई थी। मॉडल खर्चीला था। हर साल बैटरी चेंज करने की जरूरत पड़ती। किसानों के लिए भी इस इंस्ट्रूमेंट की कॉस्ट ज्यादा थी। फिर उन्होंने 5 वॉट का सोलर पैनल और लिथियम बैटरी लगाई। उपकरण का कॉस्ट कम हुआ। इंस्ट्रूमेंट में एक अल्ट्रा-वायलेट एलईडी लाइट सोलर पैनल से जुड़ी है।
ऑटोमेटिक On-Off होता है ‘सोलर इंसेक्ट ट्रैप’
करिबसप्पा कहते हैं कि ‘सोलर इंसेक्ट ट्रैप’ में टाइमर लगा है। यह आटोमेटिकली शाम होते ही जल जाती है और रात 10 बजे बंद हो जाती है। चूंकि रात में फ्रेंडली इंसेक्ट आते हैं। उस समय लाइट बंद होने से उनका नुकसान नहीं होता है। एक एकड़ खेत में महीने भर में एक यूनिट बिजली खर्च होती है। 2019 में इस इनोवेशन के लिए इंफोसिस फाउंडेशन ने आरोहण अवार्ड दिया। 5 लाख रूपये कैश मिले। यह नेचुरल इंसेक्ट किलर है। इसके इस्तेमाल से खेती में यूज होने वाले पेस्टीसाइड्स का खर्च 70 से 80 फीसदी तक कम किया जा सकता है। कर्नाटक का एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट भी उन्हें कृषि पंडिता पुरस्कार से सम्मानित कर चुका है।
6 देशों में सप्लाई
करिबसप्पा एमजी कहते हैं कि वह नेपाल, यूके और आस्ट्रेलिया समेत 6 देशों में इसकी सप्लाई कर रहे हैं। यूके और आस्ट्रेलिया में रहने वाले भारतीय फॉर्मर्स इसे खरीद रहे हैं। हमने इंटरनेशनल स्टैंडर्ड भी मेंटेन किया है। अब उनकी खुद की कंपनी सोलर इंसेक्ट ट्रैप बनाती है। कंपनी का टर्नओवर 2 करोड़ से ज्यादा है।