कौशलेंद्र सिंह पिता के साथ बचपन से दुधवा (अब दुधवा नेशनल पार्क) जाते थे। शौकिया शिकारी थे। पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने काम में रम गए। मशहूर पर्यावरणविद् बिली अर्जन सिंह के संपर्क में आए तो वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन में रूचि ली। अब वन्यजीवों का संरक्षण उनका जुनून है।
लखनऊ। वैसे तो कौशलेंद्र सिंह यूपी की राजधानी लखनऊ में रहते हैं। पर उनका ज्यादा समय वन्यजीवों के बीच बीता। पहले शौकिया शिकार खेलने जंगल की तरफ जाते थे। समय बदला तो जंगल के कानून भी बदले। माय नेशन हिंदी से बात करते हुए कौशलेंद्र सिंह कहते हैं कि मशहूर पर्यावरणविद् बिली अर्जन सिंह से प्रभावित हुआ और फिर धीरे-धीरे वन्यजीव संरक्षण की तरफ रूचि बढ़ने लगी। अब वह टाइगर कंजर्वेशन को पूरी तरह समर्पित हैं। कई दशकों से बागवानी और पक्षियों की देखभाल के साथ वाइल्डलाइफ फोटोग्राफी करना उनका जुनून रहा है।
तंत्र को सजग करने के लिए उठाते हैं आवाज
कौशलेंद्र सिंह पहली बार साल 1957 में अपने पिता के साथ दुधवा गए थे। बचपन से ही उन्होंने बड़ों को शिकार करते देखा था। तभी से उनका जंगल की तरफ जाने का सिलसिला जारी है। अंतर बस इतना है कि एक समय शौकिया शिकार खेलने जंगल जाते थे और अब वन्यजीवों के प्रति लगाव की वजह से। चाहे जंगलों में बड़े पैमाने पर पेड़ काटने की मामला हो या फिर वन्यजीवों की मौत का। हर मामले में उनकी आवाज तंत्र को सजग करती है। वह लोगों को जागरूक भी करते हैं। जिम्मेदारों को सुझाव भी देते हैं।
बिली अर्जन सिंह से मिली प्रेरणा
उनके अंदर यह बदलाव भी अचानक नहीं आया। कौशलेंद्र सिंह के परिवार से दुधवा नेशनल पार्क के संस्थापक, बाघ व तेन्दुओं के पुनर्वासन कार्यक्रम के जनक बिली अर्जन सिंह जुड़े थे। अक्सर उनके घर आते थे। कौशलेंद्र कहते हैं कि वन्यजीव के क्षेत्र में उनके किये गए कामों से प्रेरणा मिली। उनसे वन्यजीवों से जुड़ी तमाम समस्याओं पर बातचीत होती थी।
इन मामलों में निभाई अहम भूमिका
कौशलेंद्र सिंह कहते हैं कि उन्हीं की प्रेरणा से दुधवा के बीच से निकलने वाली ट्रेन की पटरियों को जंगल से बाहर हटाने के मामले में इंटरविन किया, क्योंकि उसकी वजह से हिरन, टाइगर, हाथी, तेंदुए और भालू आदि जंगली जानवर अक्सर मर जाते हैं। इस सिलसिले में पहले से मामला पेंडिंग था। समय के साथ जंगल के कानून बदले और सत्तर के दशक में शिकार के लिए परिमट मिलना बंद हो गया। बहरहाल, समय के साथ उनकी रूचि वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में बढ़ती गई। उन्होंने दुधवा के छंगा नाला और भावी ताल के पुनरुद्धार में भी अहम भूमिका निभाई।
गांवों की फेंशिंग से रोका जा सकता है मानव-वन्यजीवन संघर्ष
अक्सर बाघ या जंगली जानवरों के रिहायशी इलाकों में देखे जाने की खबरें सुर्खियां बनती हैं। कौशलेंद्र सिंह कहते हैं कि आए दिन वन्य जीव एवं मानव संघर्ष की घटनाएं सामने आ रही हैं। इससे बचाव के लिए गांवो को फेंशिंग से घेरने के अलावा कोई चारा नहीं रह गया है। वह वन्य जीव संरक्षण के लिए लगातार आवाज उठाते आ रहे हैं।