Exclusive: क्यों कर रही ये काम, पागल हो...ऐसे-ऐसे सवाल, अब महिलाओं को बना रहीं आत्मनिर्भर-बच्चों को एजूकेशन

By Rajkumar UpadhyayaFirst Published Mar 9, 2024, 4:28 PM IST
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गरीब तबके के बच्चों को एजूकेशन, महिलाओं को राशन दिलाया। सोचा कि कब तक लोगों की जरूरतें पूरी करते रहेंगे। ऐसे लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए शुरू की 'जीविका साथी'। आइए जातने हैं कि कैसे महिलाओं को कमाना सिखा रही हैं लखनऊ की खुशी पांडे।

लखनऊ। लखनऊ की रहने वाली खुशी पांडेय ने जब सोशल वर्क शुरू किया तो लोग कहते थे कि ये क्या काम कर रही हो, पागल हो क्या? क्यों ऐसा काम कर रही हो? माय नेशन हिंदी से बात करते हुए वह कहती हैं कि आज लोग उन्हें सपोर्ट कर रहे हैं। रात के अंधेरे में साइकिल चलाने वालों का सफर सुरक्षित हो, इसलिए उनकी साइकिल पर फ्री में रेड लाइट लगाते हैं। इस काम का नाम रखा है 'प्रोजेक्ट उजाला'। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (8 मार्च) के मौके पर आंबेडकर पार्क, गोमतीनगर के पास स्थित शीरोज कैफे पर एसिड अटैक सर्वाइवर्स के लिए सिलाई-कढ़ाई सेंटर की शुरुआत की है। नाम है 'जीविका साथी'। 

2016 से सोशल वर्क, 2 साल पहले 'सपनों की उड़ान'

वैसे, खुशी पांडेय साल 2016 से सोशल वर्क कर रही हैं। सामाजिक कार्यों में उनकी रूचि थी। पहले एक एनजीओ में काम किया। फिर दो साल पहले 'सपनों की उड़ान' एनजीओ रजिस्टर्ड कराई। वह कहती हैं कि महिलाओं को पीरियड्स के प्रति जागरूक करने के लिए 'प्रोजेक्ट दाग' चला रही हैं। 'प्रोजेक्ट अन्नपूर्णा' के तहत अस्पताल के बाहर हर बुधवार को 500 लोगों को फ्री भोजन कराते हैं। 'प्रोजेक्ट स्वच्छ' के जरिए अपनी टीम के साथ गवर्नमेंट पार्क की सफाई करते हैं। 'सपनों की पाठशाला' में गरीब तबके के 82 बच्चे पढ़ रहे हैं। शहर के ट्रांसपोर्टनगर में विधवा महिलाओं को सिलाई सिखा रहे हैं। गरीब तबके की महिलाओं को राशन भी दिलाते हैं।

 

महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का कैसे आया ख्याल?

वह कहती हैं कि यह सब करते हुए ख्याल आया कि ऐसे लोगों की समस्याओं का परमानेंट सॉल्यूशन निकालना चाहिए। कब तक हम लोगों को राशन दिला पाएंगे या फिर ये सारी चीजें कर पाएंगे तो तय किया कि औरतों को काम सिखाकर उन्हें काम दिलाया जाए। उनके लिए जीविका के अवसर क्रिएट किए जाएं। यदि वह कमाना सीख गईं तो उन्हें किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ेगा।

'जीविका सा​थी' में एसिड अटैक सर्वाइवर्स को ट्रेनिंग

वह कहती हैं कि 'जीविका सा​थी' ट्रेनिंग सेंटर में एसिड अटैक सर्वाइवर्स को चिकनकारी, सिलाई-कढ़ाई की ट्रेनिंग दी जाएगी। हर एसिड अटैक सर्वाइवर्स को खुद की शॉप खोल कर देंगे। उनके प्रोडक्ट की मार्केटिंग भी करेंगे। ताकि उन्हें किसी कैफै में जॉब न करना पड़े। वह खुद का रोजगार शुरू कर आत्मनिर्भर बन सकें। ऐसा नहीं की यहां सिर्फ एसिड अटैक सर्वाइवर्स को ही ट्रेनिंग दी जाएगी। जरूरतमंद महिलाओं को भी प्रशिक्षित किया जाएगा। ऐसी 30 महिलाओं का चयन किया जाएगा। इस काम में खुशी पांडेय की 'सपनों की उड़ान' फाउंडेशन को कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (CSR) के तहत स्वेज फाउंडेशन ने सपोर्ट किया है।

 

ऐसे इकट्ठा करती हैं फंड

सोशल वर्क के लिए वह क्राउड फंडिंग से पैसे इकट्ठा करती हैं। नियमित दान देने वाले कुछ डोनर हैं। वह खुद सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर हैं, जो भी कमाती हैं। उसका 80 फीसदी एनजीओ में लगाती हैं। 250 से ज्यादा वालंटियर हैं, जो सामाजिक कार्यों में मदद करते हैं। श्रीरामस्वरूप मेमोरियल यूनिवर्सिटी से बीए-एलएलबी किया है।

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