लखनऊ। गवर्नमेंट ऑर्गेनाइजेशन में जॉब करते हुए डॉ. कामिनी सिंह ने खुद का काम शुरु करने के बारे में सोचा। साल 2019 में आर्गेनिक खेती शुरु की। किसानों को प्रमोट किया। पर उपज कम होने की वजह से किसान तैयार नहीं हो रहे थे। माय नेशन हिंदी से बातचीत के दौरान वह कहती हैं कि ऐसे में विचार आया कि क्यों न ऐसी फॉर्मिंग की जाए, जिसकी मार्केट वैल्यू अच्छी हो और ज्यादा फर्टिलाइजर की भी जरूरत न हो। सहजन यानी मोरिंगा की फसल सेलेक्ट की। यह फसल जानवर नहीं खाता है, मार्केट वैल्यू भी अच्छी होती है। खेतों की मेड़ों पर फसल लगाने से शुरुआत हुई। अब उनके बनाए प्रोडक्ट डॉ. मोरिंगा के नाम से जाने जाते हैं। लखनऊ में 3 आउटलेट हैं। कम्पनी का टर्नओवर 1.25 करोड़ है। 750 किसान जुड़े हैं। 10 से 12 परमानेंट कर्मचारी हैं।

घर पर लोन लेकर जुटाएं पैसे

यह काम शुरु करना इतना आसान नहीं था। हॉर्टिकल्चर से पीएचडी डॉ. कामिनी सिंह के परिवार को शुरुआती दिनों में उनका काम समझ में नहीं आ रहा था। लोगों को भी लगता था कि इतनी पढ़ाई के बाद खेती का काम कर रही हैं। जिसके बारे में ज्यादा अवेयरनेस नही हैं। जब भी वह संबंधित लोगों से काम के विषय में बात करती थी तो ताने सुनने पड़ते थे कि ये महिलाएं कैसे काम करेंगी। अभी आई हैं, कुछ दिन बाद गायब हो जाएंगी। लोग प्रमोट कम डिमोटिवेट ज्यादा करते थे। मतलब उस समय लोगों को भरोसा ही नहीं था कि यह बिजनेस सफल हो पाएगा। इसका असर यह पड़ा कि उन्हें काम में हाथ बंटाने वाले मुश्किल से मिलते थे। दूसरी तरफ फाइनेंशियल प्रॉब्लम भी मुंह खोले खड़ी थी। घर पर लोन लेकर पैसे जुटाएं। यह भी एक बड़ा रिस्क था। पर उन्होंने तय कर लिया था कि काम को आगे बढ़ाएंगे।

 

कोरोना में बिजनेस बढ़ा-पीएम मोदी ने शेयर की रेसिपी तो भरोसा

उन्होंने लखनऊ की माल तहसील के गांव पतौन के किसानों के साथ मोरिंगा की खेती शुरु की। साल 2020 में कोरोना महामारी के दरम्यान बिजनेस में उछाल आया। लोगों को सहजन यानी मोरिंगा के औषधीय गुणों के बारे में पता चला, अवेयरनेस बढ़ी। समझ आया कि यह औषधीय पौधा कोरोना से बाहर निकाल सकता है। डॉ. सिंह कहती हैं कि पतौन गांव के एक भी व्यक्ति को कोरोना नहीं हुआ। हमने लोगों को सहजन की पत्तियों का पराठा​ खिलाया। धीरे-धीरे लोगों का भरोसा बढ़ा। उधर, पीएम नरेंद्र मोदी ने साल 2022 में मोरिंगा पराठा की रेसिपी शेयर की तो लोगो का भरोसा और बढ़ा। 

CIMAP में वुमेन साइंटिस्ट रहीं

डॉ. कामिनी सिंह ने सीनियर रिसर्च फेलो के रूप में सेंट्रल इंस्टीट्यूट फॉर सबट्रॉपिकल हॉर्टिकल्‍चर (Central Institute for Subtropical Horticulture) में करीबन 8 साल काम किया। जैव ऊर्जा बोर्ड के जरिए साल 2019 में एफपीओ (फॉर्मर प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशन) की ट्रेनिंग ली थी। उसी दरम्यान उन्हें लगा कि किसानों और सोसाइटी के साथ मिलकर कुछ अच्छा कर सकते हैं और जुलाई 2019 में एफपीओ रजिस्टर्ड कराया। साल 2020 में केंद्रीय औषधि एवं सुगंध पौधा संस्थान (CIMAP) में वुमेन साइंस्टिस्ट के रूप में एक प्रोजेक्ट सबमिट किया। भारत सरकार की तरफ से 3 साल के लिए काम करने की अनुमति मिली। सीमैप में साइंटिस्ट के रूप में भी काम करती रहीं। उद्यम शुरु करने की पूरी जर्नी में कामिनी ने कई उतार-चढ़ाव का सामना किया। हर चैलेंज को स्वीकारा और अवसरों को पहचान कर आगे बढ़ती रहीं। ऐसा ही एक अवसर  उन्‍हें आईआईटी-बीएचयू से मिला। जिसके बाद उन्‍होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।   

 

2020 में शुरु कर दी मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट, 22 प्रोडक्ट

वह कहती हैं कि हमने देखा कि जब किसान अपने धान-गेहूं की फसल से साल में एक-डेढ़ लाख रुपये और मेड़ों पर सहजन के पेड़ लगाकर 30-40 हजार अतिरिक्त कमाई कर रहे हैं काम आगे बढाया। करीबन 5 जिलों में किसानों को मोरिंगा फॉर्मिंग की ट्रेनिंग दी। एक-दो किसानों से काम शुरु किया। तब प्रोडक्ट के मार्केटिंग की समस्या सामने आई, क्योंकि छोटे एरिया में खेती की वजह से मैटेरियल भी 5-10 क्विंटल मिलता था। दिल्ली, कोलकाता या बेंगलुरु के मार्केट में भेजने पर ट्रांसपोर्ट की कॉस्ट ज्यादा आती तो हमने इसमें वैल्यू एडीशन किया। मोरिंगा के बाई-प्रोडक्ट बनाना शुरु किया। उसी समय IIT-BHU में 'रफ्तार' योजना चल रही थी। उसमें अप्लाई किया, सेलेक्शन हुआ, ग्रांट मिली। उससे मशीनरी खरीदी और धीरे-धीरे काम शुरु कर दिया। साल 2020 में मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट शुरु कर दी। अब मोरिंगा के टैबलेट से लेकर पाउडर, कैप्सूल समेत 22 प्रोडक्ट बनाते हैं। 750 किसानों को एफपीओ से जोड़ा है। लखनऊ में तीन आउटलेट हैं। 

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