ईंट-भट्ठों की सूरत बदलने जा रहा है यह किसान, सोलर पॉवर से कर दिखाया चमत्कार

By Rajkumar Upadhyaya  |  First Published Oct 19, 2023, 7:08 PM IST

यूपी के मिर्जापुर जिले के फतेहपुर गांंव के रहने वाले किसान सुभाष चंद्र सिंह ने बिजली से ईंटे पका कर करिश्मा कर दिया है, उनकी डिजाइन देखने वाला हर शख्स सरप्राइज है। आइए जानते हैं उनके काम के बारे में।  

मिर्जापुर। यूपी के मिर्जापुर जिले के फतेहपुर गांंव के रहने वाले किसान सुभाष चंद्र सिंह ने बिजली से ईंटे पका कर करिश्मा कर दिया है, उनकी डिजाइन देखने वाला हर शख्स सरप्राइज है। ईंटे पकाने के लिए बिजली का यूज करते हैं। डिजाइन ऐसी है कि पूरे उपक्रम को सोलर पॉवर से भी संचालित किया जा सकता है। माई नेशन हिंदी से बात करते हुए सुभाष चंद्र सिंह कहते हैं कि हिंडाल्को में जॉब करते वक्त ही साल 2011 में यह आइडिया आया था। वहीं से टेम्प्रेचर को बैलेंस करना सीखा। साल 2015 से इस पर काम शुरु कर दिया। ईंटे बनाने की नई टेक्नोलॉजी से ईंधन की बचत होती है। साथ ही प्रदूषण भी कम होता है। 

हिंडाल्को की जॉब से रिजाइन, जमीन पर उतारा आइडिया

सुभाष चंद्र सिंह 10वीं पास करने के बाद हिंडाल्को रेनूकूट में जॉब करने लगे। उसी दौरान ईंट-भट्ठों से होने वाले प्रदूषण से बचाव का विचार आया। साल 2015 में जॉब से रिजाइन करने के बाद अपने आइडिया को जमीन पर उतारने में जुट गए। उसी दरम्‍यान उन्होंने उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को पत्र लिखा कि उनकी तकनीक ईंट-भट्ठों से होने वाले प्रदूषण को कम कर सकती है। बोर्ड के अधिकारियों ने उनसे इस बारे में जानकारी ली। वहीं पहली बार सुभाष के मन में अपने डिजाइन को पेटेंट कराने का विचार आया तो उन्हें आईआईटी-बीएचयू भेजा गया। 

 

आईआईटी-बीएचयू के सहयोग से पेटेंट

आईआईटी-बीएचयू में भी उन्हें सफलता नहीं मिली तो थक-हार कर घर बैठ गए। उसी समय गांव के एक ईंट-भट्ठे पर अपना पैसा खर्च कर डेमो किया तो देखा कि उनका डिजाइन बढ़िया काम कर रहा है। उनका उत्‍साह बढा और फिर पेटेंट के लिए इफको में सम्पर्क किया और उनकी सलाह पर साल 2017 में मिर्जापुर के डीएम से मिले तो एक बार फिर उनकी फाइल पेटेंट के लिए आईआईटी-बीएचयू पहुंची। वहां अपने डिजाइन का डेमो दिया, जिसमें ईंटे पकाने में 42 फीसदी कम ईंधन खर्च हुआ। फिर बीएचयू के सहयोग से फरवरी 2022 में पेटेंट मिला।

ईंटे पकाने में 40 फीसदी तक ईंधन की बचत

सुभाष चंद्र सिंह कहते हैं कि ईंट भट्ठो में 12 फीट ऊपर तक आग जलाकर ईंटे पकाई जाती हैं।  ईंधन जलने से जेनरेट हो रहा टेम्प्रेचर बड़े पैमाने पर जमीन के अंदर और वायुमंडल में भी जाता है। ईंधन यानी कोयला ज्यादा लगता है। उससे पॉल्यूशन बढ़ रहा है। अपनी डिजाइन की खासियत बताते हुए सुभाष कहते हैं कि यदि किसी ईंट-भट्ठे में डेली एक टन कोयले की खपत है। हमारे डिजाइन के यूज के बाद 600 किलोग्राम ईंधन से ही काम चल जाएगा। शेष 400 किग्रा ईंधन बचेगा। पॉल्यूशन से भी राहत मिलेगी। 

2-3 बिस्वा जमीन बेचकर लगाया प्लांट, बिजली से पका रहें ईंट

सुभाष चंद्र​ सिंह ने इसी साल अपनी 2-3 बिस्वा जमीन बेचकर प्लांट लगाया है और बिजली से ईंट पका रहे हैं। हालिया डॉ. अब्दुल कलाम टेक्निकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ में आयोजित स्टार्टअप संवाद 2.0 में उन्हें 25 हजार रुपये का पुरस्कार भी मिला है। उन्होंने चार हीटर की मदद से 4 घंटे में करीबन 100 ईंटे पकाई। उनकी डिजाइन की खासियत यह है कि यह सोलर पॉवर से भी संचालित किया जा सकता है। 2017 में इफको की 85वीं वर्षगांठ पर बेस्ट आईडिया के रूप में सुभाष चंद्र सिंह का मॉडल चुना गया था। तब, एक लाख रुपये का ईनाम मिला था। 

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