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किसी परिवार का चिराग न बुझे...इसलिए 'सड़क सुरक्षा' बनाया जीवन मिशन, हादसे में खो चुके हैं इकलौता बेटा

Rajkumar Upadhyaya |  
Published : Jan 06, 2024, 11:24 PM ISTUpdated : Jan 06, 2024, 11:28 PM IST
किसी परिवार का चिराग न बुझे...इसलिए 'सड़क सुरक्षा' बनाया जीवन मिशन, हादसे में खो चुके हैं इकलौता बेटा

सार

शुभम सोती फाउंडेशन पिछले 12 साल से सड़क सुरक्षा से जुड़े जागरुकता कार्यक्रम आयोजित करता है। संस्था के अध्यक्ष आशुतोष सोती लोगों को ट्रैफिक नियमों के प्रति जागरुक करते हैं। 

लखनऊ। सड़क हादसे में 12 साल पहले अपने बेटे को खो चुके आशुतोष सोती ने सड़क सुरक्षा को अपने जीवन का मिशन बनाया। साल 2010 से हर साल 5 जनवरी को सड़क जागरुकता से जुड़े कार्यक्रम करते हैं। माई नेशन हिंदी से बातचीत में आशुतोष कहते हैं कि 15 जुलाई 2010 को मेरे पुत्र शुभम सोती की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। उस सदमे से उबरने के बाद शुभम सोती फाउंडेशन का गठन किया ताकि मेरे साथ जो घटना घटी। वैसा औरों के साथ न हो। इसी मकसद के साथ हर साल नियमित रूप से प्रतिमाह ओर प्रतिवर्ष लोगों को ट्रैफिक नियमों के प्रति जागरुक करने का काम करता चला आ रहा हूॅं।

एक सप्ताह तक वाहनों पर लगाएंगे बैक लाइट

आशुतोष कहते हैं कि 5 जनवरी का दिन इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसी दिन बेटे शुभम का जन्मदिन है। इस वर्ष हम एक सप्ताह के लिए साइकिल, ई-रिक्शा, ट्रॉली और ऐसे वाहन जिनकी बैक लाइट टूटी या नहीं होती है। उन पर रेट्रो रिफ्लेक्टर की पट्टियां लगाने का काम कर रहे हैं, ताकि घने कोहरे में भी पट्टियों की चमक सड़क पर ऐसे वाहनों की उपस्थिति दर्ज कराए और हादसों से बचाव हो सके।

वीडियो बनाने के बजाए पीड़ित को पहुंचाए अस्पताल

वेलसन मेडिसिटी के निदेशक आशुतोष सोती कहते हैं कि सड़क हादसों के बाद मौके पर मौजूद लोग पीड़ित को हॉस्पिटल पहुंचाने के बजाए वीडियो बनाने लगते हैं। एक हादसे का जिक्र करते हुए वह कहते हैं कि रिषभ नाम के एक लड़के की गलत दिशा से आ रहे एक वाहन से टक्कर हो गई। एक्सीडेंट के बाद एक लड़की ने हिम्मत करके उसे हॉस्पिटल तक पहुंचाया। पर उसकी जान नहीं बचाई जा सकी, जबकि काफी लोग खड़े होकर वीडियो बना रहे थे। ऐसा अक्सर देखने को मिलता है। यदि घायलों को गोल्डेन आवर में इलाज मिल जाए तो उनकी जान बचाई जा सकती है। 

पहले लोग नहीं समझते थे, अब दिखता है थोड़ा बदलाव

आशुतोष सोती अपना एक्सपीरियंस शेयर करते हुए कहते हैं कि साल 2010 में जब उन्होंने सड़क सुरक्षा से जुड़े जागरुकता कार्यक्रम शुरु किए तो लोग समझते नहीं थे कि हम क्या कर रहे हैं? सड़क सुरक्षा जागरुकता के प्रति लोगों का रूझान नहीं था। कुछ साल बाद बदलाव देखने को मिला। सरकारी विभाग और निजी संस्थाएं जागरुक हुईं। वह कहते हैं कि विदेशों की रोड सेफ्टी संस्थाओं से भी जुड़ा हूॅं। पर एक्सीडेंट में कमी नहीं आ रही है।  

स्कूलों के आसपास हुईं 550 मौतें

आशुतोष कहते हैं कि साल 2022 में लखनऊ, प्रयागराज, वाराणसी और कानपुर में स्कूलों के आसपास करीबन 550 मौते हुई हैं। ये मामले रोड क्रास करने और बच्चों की रश ड्राइविंग से जुड़े हैं। स्कूलों के पास हो रहे एक्सीडेंट्स को रोकने के लिए सेफ स्कूल जोन बनाने पर काम करना चाहिए। इस तरह की बहुत सी चीजे हैं। जिन पर काम की आवश्यकता है। बहरहाल, व्यक्तिगत स्तर पर जो चीजें कर सकता हूॅं, वह करता हूॅं।

रोड सेफ्टी के लिए 24 घंटे करना होगा काम 

आशुतोष कहते हैं कि रोड सेफ्टी के लिए 24 घंटे काम करना होगा। तमाम सरकारी विभागों (जैसे-ट्रांसपोर्ट, पुलिस, एनएचएआई, लोक निर्माण विभाग) में सड़क सुरक्षा उनके काम का एक हिस्सा है। विभागों के मुख्य काम कुछ और है। उनकी सरकार से अपील है कि रोड सेफ्टी के लिए एक ऐसी कमेटी बनाई जाए, जो विशेष तौर पर रोड एक्सीडेंट पर काम करे। हर एक्सीडेंट की वजहों को देखा जाए, उनका प्रॉपर फॉलोअप हो।

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