साल 2018 में गाजा साइक्लोन से गांव तबाह हुए। लोग रोजगार की तलाश में पलायन कर रहे थे। ऐसे समय में तमिलनाडु के रहने वाले विजय राघवन ने किसानों की समस्या दूर करने का फैसला लिया और जमीनी स्तर पर काम शुरु कर दिया।
तमिलनाडु के तंजावुर जिले के नदियाम गांव के रहने वाले निमल राघवन दुबई में नौकरी करते थे। पिता गांव में खेती-किसानी कर परिवार चला रहे थे। एक बार जब वह अपने परिवार से मिलने गांव आए थे तो उसी दरम्यान नवम्बर 2018 में गाजा साइक्लोन की वजह से तबाही आ गई। माय नेशन हिंदी से बात करते हुए वह कहते हैं कि साइक्लोन के बाद पूरा जिला खाली हो गया था।
ज्यादातर लोग रोजगार के लिए बाहर जाने का प्रयास कर रहे थे। हमारा परिवार भी जीविका के लिए खेती पर निर्भर था। मैंने सोचा कि गांव ने इतने साल हमारी मदद की। जब गांव में प्रॉब्लम आ गई है तो सभी लोग यहां से जा रहे हैं। मैं भी ऐसा कर सकता था। पूरी रात सोचता रहा और फिर इलाके की समस्या दूर करने का निर्णय लिया। अगली सुबह से ही ग्राउंड लेबल पर काम शुरु कर दिया।
वॉटर बॉडीज मेंटन न होने से वेस्ट हुआ 110 टीएमसी पानी
तमिलनाडु के तटीय जिलों में शामिल तंजावुर को राज्य के चावल के कटोरे के रूप में भी जाना जाता है। साइक्लोन ने गांव में सब कुछ तबाह कर दिया था। उन्होंने 90 प्रभावित गांवों के लिए शुरू की गई राहत और पुनर्वास कार्य की अगुवाई की। महीनों जमीन पर काम करते हुए निमल को यह बात समझ आई कि गांवों में सबसे बड़ी समस्या पानी की कमी है। इस परेशान को लोग काफी समय से झेल रहे थे। साल 2017 में उन्हें न्यूज से पता चला था कि तंजावुर ने 110 टीएमसी (thousand million cubic feet) वॉटर वेस्ट किया। यह इतना पानी था। जिससे चेन्नई और बेंगलुरु जैसे जिले की एक साल की पानी की जरूरतें पूरी हो जाए।
वॉटर क्राइसिस की वजह से किसान थे परेशान
निमल कहते हैं कि वॉटर क्राइसिस की वजह से खेती आसान नहीं थी। 110 टीएमसी पानी वेस्ट हुआ क्योंकि हमारी नदियां और नहरें मेंटेन नहीं थीं। इसलिए हम ज्यादा पानी समुद्र में वेस्ट करते हैं। इसलिए हमने सोचा कि यदि नदियों और नहरों को रिस्टोर किया जाए तो वॉटर सेव किया जा सकता है। फिर मैंने यह काम शुरु किया। शुरुआत में दिक्कतें आईं। किसी भी काम के लिए गवर्नमेंट से परमिशन लेने की जरूरत पड़ती है। इस दौरान मुझे पता चला कि यह काम कैसे करना है।
पुनर्जीवित हुई 564 एकड़ में फैली पेरावुरानी झील
राघवन 20-30 वर्षों से मृत इलाके के प्राथमिक जल स्रोत पेरावुरानी झील को पुनर्जीवित करने के काम में जुट गएं। 564 एकड़ में फैली झील को पानी से भरने में 107 दिन लगे। उसका भूजल पर अच्छा असर पड़ा। जल स्तर में सुधार हुआ। करीबन छह महीनों में ही उन्होंने स्थानीय किसानों की समस्याओं को काफी हद तक हल कर दिया था। राघवन कहते हैं कि पहले किसान साल में एक बार भी खेती नहीं कर पा रहे थे। अब साल में दो से तीन फसले उगाते हैं।
187 वॉटर बॉडी और 1016 किमी तक नदियों को पुनर्जीवन
उसके बाद निमल राघवन ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और जल स्रोतों को पुनर्जीवित करने के काम में जुट गए। अब तक देश के 10 राज्यों, तमिलनाडु के 21 जिलों और अफ्रीका, श्रीलंका तक कुल 187 नहरों और 1016 किमी रिवर चैनल पर काम कर चुके हैं। लगभग 20 लाख पौधारोपण भी किया है। मेगा फाउंडेशन एनजीओ के जरिए देसी बीजों के संरक्षण के साथ जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए काम करते हैं। केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय से उन्हें जल प्रहरी पुरस्कार भी मिल चुका है।