सेकेंड हैंड फोन बेचकर ये शख्स बन गया करोड़ों की कम्पनी का मालिक, कहां से सीखा ये हुनर?

By Rajkumar Upadhyaya  |  First Published Sep 6, 2023, 10:19 PM IST

कहते हैं कि जब एक रास्ता बंद होता है, तो नये अवसरों के द्वार भी खुलते हैं। दिल्ली के रहने वाले नीरज चोपड़ा (Neeraj Chopra) के साथ भी ऐसा ही हुआ। हॉन्गकॉन्ग में बिजनेस कर रहे थे। अचानक उनके चाचा का देहांत हो गया तो वह अपना कारोबार समेट कर भारत आ गए। चीन के मार्केट की समझ उनके काम आई।

नई दिल्ली। कहते हैं कि जब एक रास्ता बंद होता है, तो नये अवसरों के द्वार भी खुलते हैं। दिल्ली के रहने वाले नीरज चोपड़ा (Neeraj Chopra) के साथ भी ऐसा ही हुआ। हॉन्गकॉन्ग में बिजनेस कर रहे थे। अचानक उनके चाचा का देहांत हो गया तो वह अपना कारोबार समेट कर भारत आ गए। चीन के मार्केट की समझ उनके काम आई। पॉवर बैंक को इम्पोर्ट कर देश में सेल करना शुरु कर दिया और फिर पुराने मोबाइल पर काम करना शुरु कर दिया। Zobox नाम से स्टार्टअप शुरु किया और सेकेंड हैंड फोन बेचकर 50 करोड़ का बिजनेस खड़ा कर दिया। आइए डिटेल में जानते हैं नीरज चोपड़ा की सक्सेस स्टोरी।

सब्जी बेचने से लेकर एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट कारोबार तक पहुंचे पिता

नीरज चोपड़ा के दादा देश के बंटवारे के समय अपना सब कुछ पाकिस्तान में छोड़कर भारत आए थे। दिल्ली उनका नया ठिकाना बना। 5 साल की उम्र में ही नीरज चोपड़ा के पापा सब्जी बेचने लगे और साथ में पढ़ाई भी करते थे। समय के साथ आगे बढ़ते रहें और अपनी मेहनत के दम पर एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट के बिजनेस में आ गए। हॉन्गकॉन्ग में अपना बिजनेस चलाने लगे। 18 साल की उम्र में नीरज चोपड़ा को भी हॉन्गकॉन्ग बुला लिया। नीरज ने हॉन्गकॉन्ग में ही आगे की पढ़ाई की और अपने पिता के बिजनेस में हाथ बंटाने लगें।

12 साल तक एक्सपोर्ट के काम के बाद लौटे भारत

उस दरम्यान नीरज को नई-नई टेक्नोलॉजी को समझने का मौका मिला। चीन मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में तेजी से आगे बढ़ रहा था। लगभग 12 साल तक एक्सपोर्ट के बिजनेस से जुड़े रहें। नीरज के पापा भी भारत वापस आ गए। ज्वाइंंट फैमिली थी, अचानक एक दिन उन्हें पता चला कि चाचा का देहांत हो गया तो वह अपना कारोबार समेट कर भारत आ गए। अब उन्हें जीविका चलाने के लिए भारत में कुछ नया करने की जरुरत थी।

शुरु किया मोबाइल रिपेयर कर सेल करने का काम

नीरज चोपड़ा ने पावर बैंक इम्पोर्ट कर सेल करना शुरु कर दिया। इस दौरान उन्होंने भारतीय मोबाइल यूजर्स और मोबाइल इंडस्ट्री की जरुरत समझी। उनका काम चल ही रहा था कि नोटबंदी हो गई। जिसमें उनका काफी पैसा फंसा। साल 2020 में कोरोना महामारी आ गई। फिर नीरज ने पुराने मोबाइल फोन को रिपेयर कर सेल करने का काम शुरु किया। 

हर महीने बेचते हैं 20 से 25 हजार मोबाइल

अब वह एक एप्लिकेशन के जरिए मोबाइल सेल करते हैं। वेंडर्स उनकी कम्पनी से मोबाइल खरीदते हैं और उन्हें ग्रामीण इलाकों में सेल करते हैं। चूंकि वह मोबाइल पर वारंटी भी देते हैं। इसलिए ग्रामीण इलाकों में उनका काम चल पड़ा। वह मोबाइल कम्पनियों, ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स और इंश्योरेंस कंपनियों से पुराने मोबाइल खरीदते हैं। दिल्ली के करोलबाग में उनकी रिफर्बिशमेंट यूनिट हैं, जहां पुराने मोबाइल रिपेयर कर नये जैसे बनाए जाते हैं। अब, 100 मोबाइल की जगह हर महीने 20 से 25 हजार मोबाइल बेचते हैं। पुराने मोबाइल की रिपेयरिंग से लेकर उसकी कीमत तय करने तक का सिस्टम बना रखा है। 

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