रोहतास, बिहार के शक्ति कुमार ओझा ने कोरोना महामारी के दौरान मोटर पार्ट्स का बिजनेस बंद होने पर कुल्हड़ बनाने का नया आइडिया अपनाया। आज वह हर महीने 4-5 लाख रुपये की सेल करते हैं और 10 लोगों को रोजगार दे रहे हैं।
नई दिल्ली। मुश्किल हालात में अपने कदम न रोकने वाले शख्स ही अपनी तकदीर बदलते हैं। बिहार के रोहतास जिले के डेहरी-ऑन-सोन के ईदगाह मोहल्ले के रहने वाले शक्ति कुमार ओझा ने ऐसा ही कुछ कर दिखाया। कोरोना महामारी के दौरान उनके मोटर पार्ट्स के बिजनेस पर ताले लग गए, लेकिन वह हार मानने के बजाए बिजनेस के नये रास्तों की तलाश में थे। उसी दरम्यान कुल्हड़ बनाने का आइडिया आया। आज उनका यह बिजनेस न केवल उन्हें फाइनेंशियली स्ट्रांग बना रहा है, बल्कि अन्य लोगों के लिए भी रोजगार का जरिया बना है।
कैसे आया कुल्हड़ का विचार?
महामारी के दौरान जब उनकी मोटर पार्ट्स की दुकान बंद हो गई, तो इनकम का कोई सोर्स नहीं बचा। एक दिन चाय पीते समय कुल्हड़ का विचार उनके मन में आया। देखा जाए तो यह एक सामान्य विचार है। पर शक्ति ने अपनी मेहनत से इस आइडिया को एक बड़े बिजनेस में तब्दील कर दिया। उन्होंने मिट्टी के कुल्हड़ और कसोरा बनाने का काम शुरू किया और इसे अपनी कमाई का जरिया बना लिया।
शुरुआत में आईं कठिनाइयां
शक्ति कुमार के मुताबिक, शुरुआत में कुल्हड़ के बिजनेस को लेकर डर था। वह सोच रहे थे कि यह काम कितना चलेगा और लोग इसे कितना पसंद करेंगे। लेकिन धीरे-धीरे उनके बिजनेस को मजबूती मिली। आज हर महीने 4-5 लाख रुपये की मिट्टी के आइटम की सेल होती है, जिसमें से 10-15% का मुनाफा होता है।
डेली तैयार होते हैं 6000 कुल्हड़
शक्ति कुमार के बिजनेस में 8-10 कारीगर काम करते हैं। एक कारीगर डेली लगभग 6,000 कुल्हड़ तैयार करता है। मशीनों ने काम को आसान बनाया है, लेकिन हर फेज में मेहनत और ध्यान की जरूरत होती है। इस बिजनेस में मुख्य लागत मिट्टी और जलावन (कुल्हड़ पकाने का ईंधन) की होती है। मिट्टी की उपलब्धता लोकल लेवल पर आसान है, जिससे लागत कम रहती है। शक्ति कुमार का मानना है कि यदि सरकार से उन्हें मदद मिले, तो यह बिजनेस और भी बड़ा हो सकता है। यदि उन्हें मॉर्डन मशीनें उपलब्ध कराई जाएं। बेहतर तकनीक और संसाधनों का सपोर्ट मिले और नेशनल और इंटरनेशनल मार्केट में पहुंच के लिए गाइडेंस दिया जाए तो वह बहुत अच्छा कर सकते हैं।
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