Journalist की नौकरी छोड़ी, दोस्त खोया, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति भी हुए हिमांशु की दास्तानगोई के क़ायल

लखनऊ के हिमांशु बाजपेयी जर्नलिस्ट थे। देश के तमाम बड़े छोटे मीडिया संस्थानों में काम किया। लखनऊ पर किताब लिखी किस्सा किस्सा लखनउव्वा, जिसे साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। आज हिमांशु का शुमार मुल्क के बड़े दास्तानगो मे होता है। अब तक वह 400 से ज्यादा कहानियां लोगों को सुना  चुके हैं।

Lucknow story teller  Himanshu Vajpayee left journalism, now earning lacs in a month  ZKAMN

लखनऊ.जब वह दास्तान सुनाते हैं तो दास्तान के किरदार खुद बहुत सामने नजर आने लगते हैं। जुबान ऐसी की अंधा भी बता दे कि वो पुश्तैनी लखनऊ वाले हैं। तलफ़्फ़ुज़ पर ऐसी महारत की बड़े बड़े उर्दू दां भी रश्क कर उठते हैं। जर्नलिज्म में पीएचडी किया है, लेकिन फुल टाइम दास्तान गो बन गए। बात हो रही है हिमांशु बाजपेयी की जिन्होंने अपनी दास्तान गोई से तमाम लोगों के न सिर्फ दिल जीते हैं बल्कि उनके दिलों पर गहरा असर डाला है। माय नेशन हिंदी से हिमांशु ने अपनी पर्सनल और प्रोफेशनल जर्नी शेयर किया ।

कौन है हिमांशु बाजपेयी
हिमांशु लखनऊ के राजा बाजार के रहने वाले हैं। उनके पिता गवर्नमेंट टीचर थे जो पिछले साल रिटायर हुए हैं। हिमांशु की मां हाउसवाइफ हैं और हिमांशु तीन भाई हैं। हिमांशु ने वर्धा के महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय से लखनऊ के ऐतिहासिक नवल किशोर प्रेस पर पीएचडी की है। इसके पहले तमाम बड़े मीडिया संस्थानों में काम किया लेकिन दिल बेकरार था, एक बेचैनी थी जो इस काम से संतुष्ट नहीं थी, और फिर एक दिन उनकी मुलाकात हो गई मुल्क के जाने-माने दास्तान गो अंकित चड्ढा से। अंकित ने हिमांशु को दास्तान गोई के लिए  इंसिस्ट किया, हिमांशु के लिए यह फैसला बड़े कश्मकश वाला था। एक तरफ प्रोफेशनल एजुकेशन की डिग्री और दूसरी तरफ कहानियां सुनने का हुनर लेकिन अंकित ने हिमांशु को दास्तान गोई के लिए तैयार कर लिया।

 

मोहल्ले की महफिल और लखनवी ज़ुबान
हिमांशु की जुबान में लखनऊ का मुकम्मल अक्स दिखाई देता है। इसके बारे में हिमांशु कहते हैं कि "लखनऊ हमें विरासत में मिला है राजा बाजार की गलियों में हम पले बढे हैं, जहां शाम में तमाम लोग लतीफे बाजी, फ़िकरे बाज़ी और शायरी की महफिले सजाते थे। बस वह कहते हैं न जुबान माहौल का असर होती है,जुबान सीखी नहीं जाती। मोहल्ले की महफिलों में बैठते बैठते, चौक अमीनाबाद बाजार की गलियों में घूमते घूमते लखनऊ शख्सियत में उतरता चला गया और मैं हर जगह इस लखनऊ को उकेरना चाहता था, और देखिए जर्नलिज्म करते-करते आज मैं मंच से लोगों को अपनी जुबान के जरिए लखनऊ का दीदार कराता हूं, उनके सामने लखनऊ की मंजर कशी करता हूं।

जब हिमांशु ने खो  दिया अपना अजीज दोस्त
दास्तान गोई में जुबान के उतार चढ़ाव मंजर कशी और माहौल का ख़ाका खींचने में अंकित ने हिमांशु को मुकम्मल तरीके से प्रीपेयर कर दिया। स्टेज पर दोनो की जोड़ी धमाल मचाने लगी, लेकिन तभी कुछ ऐसा हुआ जो हिमांशु ने शायद ख्वाब में भी नहीं सोचा था। उनका दोस्त, उनका स्टेज पार्टनर अंकित हमेशा के लिए उनसे जुदा हो गया। 9 मई 2018 हिमांशु की रिसर्च कंपलीट हुई थी, पीएचडी की डिग्री उनके हाथ में आई और उन्हें खबर मिली की अंकित की  झील में पैर फिसलने से मौत हो गयी । ये सदमा हिमांशु के लिए ना काबिले बर्दाश्त था। हिमांशु कहते हैं अंकित सचिन तेंदुलकर था वह जब स्टेज पर रहता था तो मुझे टेंशन नहीं होती थी क्योंकि मुझे यह पता होता था कि मैं थोड़ा सा भी फिसलूंगा तो अंकित संभाल लेगा। अब हिमांशु को अंकित के जाने के गम से निकलना भी था और अकेले दास्तान गोई में मैदान भी संभालना था।लेकिन कहते हैं ना वक्त सबसे बड़ा मरहम होता है। 2018 के बाद दास्तान गोई हिमांशु के लिए फुल टाइम जॉब हो गई।

 

राष्ट्रपति ने दिया हिमांशु को निमंत्रण
अदब की दुनिया में हिमांशु एक इंकलाब हैं।देश विदेश में हिमांशु अब तक 400 से ज्यादा दास्तान सुना चुके हैं। कहानी सुनाने के लिए उन्हें देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा आयोजित हार्वर्ड वर्ल्ड वाइड वीक में निमंत्रण दिया। हिमांशु नेटफ्लिक्स के शो "सेक्रेड गेम्स सीजन 2" का हिस्सा रह चुके हैं। उनकी किताब “क़िस्सा क़िस्सा लखनउव्वा छपते ही बेस्ट सेलर हो गई। इस किताब ने साहित्य अकादमी पुरस्कार जीता।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी हिमांशु की दास्तानगोई भा गई
नवंबर 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात में हिमांशु और उनकी सहयोगी प्रज्ञा शर्मा द्वारा रानी दुर्गावती पर की गई दास्तान का जिक्र किया जिसे रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ट्वीट करके बताया कि ये  प्रस्तुति लखनऊ के रहने वाले हिमांशु बाजपेयी और प्रज्ञा शर्मा ने की है। उन्होंने इसी तरह की एक दास्तानगोई रानी लक्ष्मीबाई के बारे में भी की है।'

एक दास्तान में लगती है 6 महीने के रिसर्च
हिमांशु कहते हैं जर्नलिज्म मेरी चॉइस थी मैंने तमाम मीडिया संस्थानों में काम किया और आज पूरी दुनिया में घूम घूम कर कहानी सुना रहा हूं। हिमांशु कहते हैं एक दास्तान पर रिसर्च करने में लगभग 6 महीना लग जाता है। आज हिमांशु कहानी सुना कर  उन तमाम अल्फाज को रिवाइव कर रहे हैं जो नई जनरेशन पीछे छोड़ती जा रही है।

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