प्रज्ञा शर्मा उत्तर प्रदेश की पहली दास्तानगो हैं, जो देश विदेश में अब तक सैकड़ो दास्तान के शो कर चुकी हैं। जब वह बोलती है तो उनके लहजे में लखनऊ बोलता है। जुबान और तलफ़्फ़ुज़ ने प्रज्ञा को स्टेज पर बेइंतेहा इज्जत और शोहरत से नवाज़ा। हालांकि दास्तान गोई का सफर इतना आसान नहीं था। इसके लिए प्रज्ञा ने अपनी जमी जमाई नौकरी छोड़ दी जिसे लेकर उनके परिवार में उनका विरोध हुआ। लेकिन प्रज्ञा ने अपने दिल की सुनी। मां-बाप को समझाया और आज वह पूरी दुनिया में अपनी दास्तान के जरिए लखनऊ का नाम रोशन कर रही हैं।
लखनऊ। मेरी जुबान सुनकर अक्सर लोग मुझसे कहते हैं आप लखनऊ की हैं क्या? यकीन जानिये ये वह लम्हा होता है जब मुझे खुद पर थोड़ा सा नाज़ होता है कि मैं लखनऊ की जुबान के साथ इंसाफ कर पा रही हूं। मेरे लहजे में लखनऊ बोलता है मुझे बताना नहीं पड़ता कि मैं तहजीब के शहर से ताल्लुक रखती हूं। बल्कि जब मैं बोलती हूं तो लोग खुद ही इस बात को महसूस कर लेते हैं कि मेरी वाबस्तगी लखनऊ से है। यह कहना है यूपी की पहली फीमेल दास्तान गो प्रज्ञा शर्मा का ।तलफ़्फ़ुज़ को लेकर प्रज्ञा काफी सेंसिटिव रहती हैं ठीक उसी तरह जैसे उनके घर के बड़े बुजुर्ग उनकी जुबान को लेकर रहते थे। आज माय नेशन हिंदी में हम रूबरू कराएंगे लखनऊ की दास्तानगो प्रज्ञा शर्मा से। प्रज्ञा लोगों को कहानियां सुनाती हैं और अपनी कहानी सुनाने के लिए वह सिर्फ हिंदुस्तान तक ही महदूद नहीं है बल्कि तमाम बाहरी मुल्कों का सफर करती रहती हैं।
कौन है प्रज्ञा शर्मा
लखनऊ के पुराने हैदराबाद की रहने वाली प्रज्ञा ने माउंट कार्मल से 8th क्लास तक की पढ़ाई की फिर जयपुरिया में एडमिशन ले लिया। जयपुरिया से 12th करने के बाद प्रज्ञा का एडमिशन आईटी कॉलेज में हो गया जहां से उन्होंने इकोनॉमिक्स में मास्टर्स किया। प्रज्ञा के फादर डॉ वी पी शर्मा एक साइंटिस्ट है और मां सौरभ शर्मा साइकोलॉजिस्ट हैं। प्रज्ञा ने अंबेडकर यूनिवर्सिटी से एनवायरनमेंट इकोनॉमिक्स में पीएचडी किया और 4 साल ग्राउंडवाटर पर रिसर्च किया।
नौकरी के साथ शुरू हुआ दास्तान गोई का सफर
साल 2019 में प्रज्ञा ने अपनी थीसिस सबमिट किया और 2020 में उनकी जॉब नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल लखनऊ में लग गई। अच्छे पैकेज पर प्रज्ञा काम कर रही थी तभी कोविड का दौर आया और वर्क फ्रॉम होम की वजह से प्रज्ञा को माइग्रेन की प्रॉब्लम शुरू हो गई। माइग्रेन की वजह से प्रज्ञा स्ट्रेस में रहने लगी। इसी दौरान दास्तानगो हिमांशु वाजपेई ने प्रज्ञा को झांसी की रानी दास्तान पर रिसर्च के लिए कुछ किताबें दी। दोनों ने मिल कर रिसर्च किया और स्क्रिप्ट तैयार किया। हिमांशु को प्रज्ञा का काम पसंद आया और प्रज्ञा हिमांशु के शो के लिए रिसर्च का काम करने लगी। प्रज्ञा के लहजे और जुबान को देखते हुए हिमांशु ने प्रज्ञा को झांसी की रानी दास्तान पर परफॉर्म करने के लिए कहा। हिमांशु को पूरा यकीन था की प्रज्ञा बेहतर तरीके से परफॉर्म कर लेंगी हालांकि उसके पहले हिमांशु ने प्रज्ञा को 3 महीने की ट्रेनिंग दी।
भाई ने दास्तानगोई से तार्रुफ़ कराया था प्रज्ञा का
दास्तान गोई के बारे में प्रज्ञा कहती हैं काफी पहले उन्होंने हिमांशु वाजपेई और अंकित सक्सेना की मजाज़ पर दास्तान गोई सुना था जिससे वह काफी मुतास्सिर हुई थी। प्रज्ञा के भाई अमित शर्मा जो कि इस वक्त यूएस में सेटेल्ड है, उन्होंने प्रज्ञा का तार्रुफ़ दास्तान गोई से कराया था। अमित हिमांशु के बहुत अच्छे दोस्त थे और प्रज्ञा को दास्तान गोई के बारे में अमित ने ही तफसील से बताया था। हालांकि उस वक्त प्रज्ञा को नहीं पता था कि दास्तानगोई उनका करियर भी बन सकती है।
सही तलफ़्फ़ुज़ ने करियर को एक नई दिशा दी
चूंकि दास्तान गोई में अल्फाज उर्दू के इस्तेमाल होते हैं, इसके बारे में प्रज्ञा रहती हैं कि मैं लखनऊ की हूं और लखनऊ की जुबान में तलफ़्फ़ुज़ का गलत होना शहर का नाम खराब करने जैसा है। वह कहती हैं मेरी परवरिश एक मिले-जुले माहौल में हुई है जहां हिंदू मुसलमान सब मिलकर रहते हैं। गलती से भी अगर नुक्ते का कहीं गलत इस्तेमाल करती थी तो घर के बड़े बुजुर्ग हो या पड़ोस के लोग सब टोक देते थे। उनके टोकने का यह फायदा हुआ कि आज अल्फ़ाज़ की दुरुस्तगी मेरे लिए करियर भी बन गई ज़हनी सुकून भी। आवाज के उतार-चढ़ाव को मैंने सीखा अल्फाज पर थोड़ा और मश्क किया। और साल 2021 में पहली बार झांसी की रानी को लेकर अपना पहला परफॉर्मेंस दिया।
परिवार का विरोध भी सहना पड़ा
झांसी की रानी से शुरू हो गया प्रज्ञा का दास्तान गोई का सफर और उन्होंने देश-विदेश में हिमांशु के साथ दास्तान सुनाना शुरू कर दिया। दास्तान गोई में करियर बनाने के लिए प्रज्ञा को अपने घर में संघर्ष करना पड़ा। क्योंकि वह एक ऐसे घराने से आती है जहां पिता साइंटिस्ट है मां साइकोलॉजिस्ट है और प्रज्ञा खुद भी नौकरी कर रही थीं। ऐसे में उस नौकरी को छोड़कर कहानी सुनाना मां-बाप को कहीं ना कहीं संशय में डाल रहा था। प्रज्ञा ने अपने मां-बाप को कन्विंस किया साथ ही उनके दोस्त हिमांशु ने भी प्रज्ञा के मां-बाप को ज़हनी तौर पर कन्विंस किया । इसके बाद उनके पैरेंट्स प्रज्ञा के फैसले पर सहमत हुए। 2022 में प्रज्ञा ने दास्तानगोई के लिए अपनी नौकरी छोड़ दिया। अब वह फुल टाइम दास्तानगो बन चुकी हैं। देश विदेश में करीब 100 दास्तान के शो कर चुकी हैं।
प्रधानमंत्री के प्रोग्राम के लिए मिला निमंत्रण
प्रज्ञा कहती हैं दास्तान गोई का सफर महज़ 2 साल पुराना है लेकिन इन दो सालों ने मुझे बहुत कुछ दिया है। उन्होंने बताया कि नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्सव शुरू किया था जिसके लिए हिमांशु और प्रज्ञा को ओपनिंग इवेंट का निमंत्रण मिला। मन की बात में भी प्रधानमंत्री ने हिमांशु और प्रज्ञा को बधाई दिया था जिसे प्रज्ञा बड़ी उपलब्धि मानती हैं। फिलहाल प्रज्ञा अपने इस सफ़र से बहुत खुश हैं क्योंकि उनका मानना है की दास्तान एक ऐसी आर्ट है जिसके जरिए आप बड़े से बड़े मुद्दे को बहुत ही खूबसूरती से लोगों तक पहुंचा देते हैं।
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