4500 रु. सैलरी पाने वाली उड़ीसा की मतिल्दा कैसे हुईं Forbes की सबसे ताकतवर महिलाओं में शामिल

By rohan salodkar  |  First Published Aug 7, 2023, 2:27 PM IST

ओड़िसा की मतिल्दा कुल्लू एक ऐसे गाँव से आती हैं जहां लोग बीमार पड़ने पर ओझा तांत्रिक और झाड़ फूँक का सहारा लेते हैं। मतिल्दा दसवीं पास हैं, सरकार की आशा वर्कर स्कीम के दौरान मतिल्दा ने आशा वर्कर की नौकरी कर ली जिसके उन्हें 4500 रूपये मिलते थे।

ओडिसा. फोर्ब्स इंडिया ने साल 2021 में वूमेन पावर लिस्ट 2021 जारी किया था, जिसमें सानिया मल्होत्रा, अरुंधति भट्टाचार्य के बीच एक नाम था उड़ीसा के सुंदरगढ़ जिले की मतिल्दा  कुल्लू का। इस उपलब्धि के लिए राज्य के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने भी  मतिल्दा को बधाई दी थी। माय नेशन हिंदी से मतिल्दा ने अपने विचार साझा किए।

कौन है मतिल्दा 
मतिल्दा  कुल्लू उड़ीसा के सुंदरगढ़ जिले की बारा गांव तहसील की रहने वाली हैं। दसवीं पास हैं। गर्गडबहल गांव में पिछले 17 साल से वह आशा कार्यकर्ता के रूप में काम कर रही हैं। मतिल्दा के पति खेती किसानी और पशुपालन करते हैं लेकिन उससे कमाई बहुत कम होती थी। घर का खर्चा तो किसी तरह चल जाता है लेकिन बच्चों की पढ़ाई, उनकी किताबें, उनकी फीस का इंतजाम नहीं हो पाता। उन्हें अपने बच्चों के भविष्य की चिंता सता रही थी। वह बच्चों को पढ़ाना चाहती थीं। वो नहीं चाहती थी कि आर्थिक तंगी के कारण उनके बच्चों की पढ़ाई रुके। साल 2005 में सरकार ने ग्रामीण क्षेत्र के लोगों के स्वास्थ्य के लिए हर गांव में आशा वर्कर अप्वॉइंट करने का फैसला किया। मतिल्दा को जैसे ही इसके बारे में पता चला उन्होंने तय किया कि वह भी आशा वर्कर की नौकरी करेंगी।

डॉक्टर का नाम सुनकर लोग उड़ाते थे मजाक
मतिल्दा ने आशा वर्कर की नौकरी तो कर ली लेकिन अब उनके सामने बड़ी चुनौतियां थी ।जब  मतिल्दा  ने आशा वर्कर की नौकरी ज्वाइन किया था, उस वक्त उनके गांव के लोग बीमार पड़ने पर अस्पताल नहीं जाते थे। वो  ठीक होने के लिए ओझा तांत्रिक के पास जाते थे। झाड़-फूंक का सहारा लेते थे। यही वजह है की डिलीवरी के दौरान गांव में मां या बच्चे की मृत्यु हो जाती थी, जो गांव के लोगों के लिए बड़ी आम बात थी। मतिल्दा जब डॉक्टर या अस्पताल जाने की बात कहती तो लोग उनका मजाक उड़ाते थे। मतिल्दा ने तय कर लिया कि कोई कितना भी मजाक बनाए, वह गांव में घूम-घूमकर लोगों को जागरूक करेंगी और मेडिकल साइंस की इंपॉर्टेंस लोगों को बताएंगी।



मतिल्दा की मुहिम होने लगी सफल 
मतिल्दा कहती हैं- आशा वर्कर की नौकरी मैंने पैसे के लिए किया था, क्योंकि मेरे पति की आमदनी इतनी नहीं थी कि मैं अपने बच्चों का भविष्य बना सकूं। अपने बच्चों के भविष्य के लिए मैंने आशा वर्कर की नौकरी की थी लेकिन अब यह नौकरी मेरे लिए नौकरी से बढ़कर हो गई है। यह नौकरी मेरे लिए कर्तव्य बन चुकी है। पूजा बन चुकी है। एक वक्त ऐसा भी था जब मैंने काम छोड़ने का फैसला किया था, क्योंकि जब भी गांव वालों को कुछ समझाती थी, तो वह मेरा मजाक उड़ाते थे। झाड़-फूंक के कारण तबियत बिगड़ने पर गांव में लोगों की मौत हो रही थी लेकिन मैं जब भी अस्पताल, दवा या डॉक्टर की बात करती थी तो लोग मुझे भगा देते थे। धीरे-धीरे मैंने इस बात को नजरअंदाज करना शुरू कर दिया और घर-घर जाकर गर्भवती महिलाओं को दवा दिया, अस्पताल में डिलीवरी कराने के लिए लोगों को प्रेरित किया। सरकार की तरफ से दी जाने वाली स्वास्थ्य योजनाओं के बारे में बताया ताकि  गांव के लोग इसपर अमल कर सकें। गांव की महिलाओं को मेडिकल साइंस के बारे में समझाना शुरू किया। धीरे-धीरे लोगों को मेरी बात समझ में आने लगी।

मतिल्दा ने 18 साल में 250 डिलीवरी कराई 

अपनी जानकारी बढ़ाने के लिए  मतिल्दा हर ट्रेनिंग में भाग लेने लगी। 18 साल के करियर में उन्होंने 250 डिलीवरी कराई। उनकी कोशिश का ही नतीजा था कि आज उनके गांव की हर महिला अस्पताल में डिलीवरी कराना चाहती है। कोविड में जब लोग अपने घरों में बंद थे, तब  मतिल्दा  हर रोज 50, 60 घरों में जाकर लोगों का कोविड टेस्ट करती थीं। कोविड की दूसरी वेव में  मतिल्दा भी कोरोना पॉजिटिव हो गई थीं । मतिल्दा का समर्पण भाव देखकर ही गांव वालों को उनपर विश्वास होना शुरू हुआ और गांव वाले ओझा तांत्रिक झाड़-फूंक से धीरे-धीरे मुक्त होने लगे।

गांव के अस्पतालों की हालत में हुआ सुधार 
मतिल्दा का 4 लोगों का परिवार है। उनके गांव की आबादी 964 है। वह हर रोज सुबह 5:00 बजे उठती हैं। घर का काम निपटाती हैं। जानवरों को खाना देती हैं। अपने बच्चों को स्कूल भेजती हैं, और फिर साइकिल से अपने काम पर निकल जाती हैं। गांव के 964 लोगों के लिए  मतिल्दा  ने अपना जीवन समर्पित कर दिया है। उनके गांव में ज्यादातर आदिवासी आबादी है। आज उनके गांव के अस्पतालों की स्थिति भी सुधर चुकी है, जिन चीजों की अस्पताल में जरूरत होती है मतिल्दा उसके लिए जिला लेवल तक अर्जी देती हैं। मतिल्दा कहती है- मैं पूरी कोशिश करती हूं कि अस्पताल में दवा की कोई कमी ना रहे। आधी रात में भी अगर कोई बीमार होता है और अपनी परेशानी लेकर मेरे घर आता है तो मैं फौरन उनके पास पहुंच जाती हूं। बता दें, इस समय मतिल्दा आशा वर्कर की यूनियन प्रेसिडेंट हैं। आशा वर्कर के नेशनल फेडरेशन में भी कमेटी मेंबर के तौर पर वह काफी एक्टिव हैं। वह आशा वर्कर्स को लेकर नेशनल सेमिनार में भी अक्सर भाग लेने जाती रहती हैं। उनके विभाग ने उन्हें देश की सबसे अच्छी आशा वर्कर के रूप में सम्मानित किया है। इतना ही नहीं, मतिल्दा रात में कपड़े सीने का भी काम करती हैं, दिन-रात मेहनत करके बच्चों को ग्रेजुएशन तक की शिक्षा दिलाई है।

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