युवावस्था में विधवा हुईं,घर चलाने के लिए टिफिन सर्विस किया, ये हैं देश की प्रथम महिला उबर ड्राइवर

By Kavish AzizFirst Published Jul 21, 2023, 6:56 PM IST
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ज़िंदगी नित नए इम्तेहान लेती है, जो इस इम्तेहान में पास हो जाता है वही समाज में लकीर खींचता है, जयपुर की गुलेश चौहान से ज़िंदगी ने सख्त इम्तेहान लिए, तीस साल की उम्र से पहले ही वो विधवा हो गयीं, घर चलाने के लिए टिफिन सर्विस किया, घरों में खाना बनाया, गाडी चलाई और और बन गयीं देश की पहली ऊबर ड्राइवर। 

दिल्ली. गुलेश चौहान, देश की पहली महिला कैब ड्राइवर जिसने एक साधारण गृहस्थी से इंडिपेंडेंट महिला का सफर तय करने में बेतहाशा ठोकरें खाईं, समाज के ताने सुने लेकिन वही किया जो उनके दिल ने कहा ।

17 साल की उम्र में हो गयी शादी 
जयपुर की रहने वाली गुलेश चार बहन एक भाई  थे,उनके पिता एक छोटी सी नौकरी करते थे, जिससे 7 लोगों का परिवार चलना मुश्किल था, पिता की मृत्यु जब हुई तो गुलेश की उम्र महज़ 17 साल थी, पांच बच्चों की परवरिश करना उनकी माँ के लिए मुश्किल था, तभी हरियाणा से गुलेश का रिश्ता आया, लड़का अच्छा था इसलिए माँ ने शादी कर दी। 

सब ठीक था तभी पति की मौत हो गयी 
गुलेश पूरे समर्पण से घर गृहस्थी संभाल रही थीं, तभी 2003 में उनके पति का एक्सीडेंट हुआ,कुछ समय  बाद मृत्यु हो गयी, जिसके बाद ससुराल वालों ने भी साथ छोड़ दिया, सहारे के नाम पर उनका 10 साल का बेटा और माँ बचे थे, गुलेश की माँ ने उन्हें आत्म निर्भर होने के लिए प्रेरित किया, चूँकि गुलेश सिर्फ नाइंथ क्लास तक पढ़ी थीं इसलिए नौकरी तो मिलना नामुमकिन था लिहाज़ा लोगों के घरो में खाना बनाना,सड़क किनारे स्टाल पर पकोड़े बनाने का काम शुरू किया, लेकिन इससे घर नहीं चल पा रहा था।

टिफिन सर्विस का काम चल निकला  
गुलेश अच्छा खाना बनाती थी तो उनकी  माँ ने टिफिन सर्विस के लिए कार्ड बनवाए और जगह जगह बाँट दिए, धीरे धीरे पचास टिफिन के आर्डर मिल गए, ज़िंदगी पटरी पर आ रही थी तभी एक दिन उनकी स्कूटी का एक्सीडेंट हुआ और पूरे शरीर में जगह जगह फ्रैक्चर और टांके लग गए, डॉक्टर ने चार  महीने का रेस्ट बता दिया।  

जब बेटे को मार दिया थप्पड़ 
गुलेश की माँ ने उन्हें ड्राइविंग सिखाई थी, और इस काम के ज़रिये रोज़ी रोटी कमानें के लिए उनके बेटे ने प्रेरित किया। उनका बेटा हर रोज़ एक पर्ची बनाता और शहर की बड़ी बड़ी कोठियों में जाकर गार्ड को पर्ची देता जिस पर लिखा होता था की 'किसी को भी ड्राइवर चाहिए तो नीचे दिए नंबर से सम्पर्क करे ' डेढ़ दो महीने इंतज़ार के बाद भी कहीं से कोई काल नहीं आया तभी बेटे को किसी ने ओला ऊबर के बारे में बताया।  बेटे ने जब गुलेश से टैक्सी चलाने की बात कही तो उन्होंने बेटे को थप्पड़ मार दिया की अब मुझसे तू टैक्सी चलवाएगा, बेटे का जवाब था मुझे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता की आप टैक्सी चलाएं या जेट प्लेन, मैं इतना जानता हूँ की मेरी माँ कुछ भी कर सकती है।  

इंजर्ड कंडीशन में सीखा ऊबर की ट्रेनिंग 
कुछ दिन बाद अनिल नाम के शख्स से गुलेश की मुलाकात हुई जिसे एक महिला ड्राइवर की तलाश थी,उस वक़्त गुलेश एक्सीडेंट की वजह से पूरी तरह इंजर्ड थीं लेकिन अनिल ने उन्हें प्रोत्साहित किया की गाड़ी लेकर चलाओ, गुलेश ने गाड़ी चलाई जिसके बाद अनिल ने उनकी गाडी ऊबर ऑफिस में अटैच कराइ, और उन्हें एक मोबाइल दिया, टैक्सी चलाने का तरीका सिखाया, कैसे बुकिंग होती है, कैसी राइड कैंसिल होती है इन सब की ट्रेनिंग अनिल ने गुलेश को दिया, दोनों में भाई बहन का रिश्ता बन गया। गुलेश के पास खुद की कार है लेकिन उसके पैसे भी उन्हें अनिल ने ही दिए ।

 

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