मंदिर के बेकार फूलों से अगरबत्ती बनाकर इस महिला ने दे डाला 20 हजार लोगों को रोज़गार

By Kavish AzizFirst Published Jul 13, 2023, 12:48 PM IST
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वंदना ने अपने माता-पिता के लिए शादी नहीं की, समाज के प्रति संवेदनशील थी तो सामाजिक कार्यों में रूचि देना शुरू कर दिया, साल 2006 से शहर और गांव की महिलाओं का समूह बनाती हैं उनको बैंक से जोड़ती हैं उनको आत्मनिर्भर बनाने के लिए ट्रेनिंग देती हैं, इस ट्रेनिंग में विभिन्न प्रकार के कार्य होते हैं जिसके जरिए महिलाएं रोजगार से जुड़ जाती हैं।

लखनऊ की वंदना चार बहन दो भाई  है, सभी की शादी हो चुकी है,  पिता को साल 2009 में ब्रेन हेमरेज हुआ था और उसके बाद तीन बार ब्रेन हेमरेज हुआ साल 2017 में पिता की डेथ हो गई, माता पिता के लिए वंदना ने शादी नहीं किया। हिंदी और एमएसडब्ल्यू में वंदना ने मास्टर्स किया है और सामाजिक कार्य से जुड़ी हुई है।

मंदिर के फूलों से अगरबत्ती बनाने की ट्रेनिंग

हर रोज रात के ग्यारह बजे वंदना अपनी टीम के साथ मंदिर जाती हैं वहां पर बेकार फूलों को इकट्ठा करती हैं, उनकी पंखुड़ी अलग करती हैं फिर पंखुड़ियों को पीसती हैं और उनसे अगरबत्ती बनाने का काम करती हैं इस काम को सीखने के लिए उन्होंने लखनऊ के सीमैप से ट्रेनिंग लिया, वही चारकोल से अगरबत्ती बनाने का काम भी वंदना करती हैं और अपने साथ जुड़ी महिलाओं को सिखाती हैं।

चिकनकारी, ज़रदोज़ी,  स्वच्छता किट बनाने की ट्रेनिंग

गांव की महिलाओं को जनेऊ बनाने का,  गन्ने का सिरका, स्वच्छता किट फिनायल टॉयलेट क्लीनर, हैंड वॉश, बनाने का काम सिखाने के लिए ब्लॉक स्तर पर टाई अप करा दिया जाता है, साथ ही लखनऊ और उन्नाव की महिलाओं को चिकनकारी और जरदोजी के काम की ट्रेनिंग दिला रही है।

जेल के कैदियों को आत्मनिर्भर बनाने का कार्य

ट्रांसजेंडर के लिए वंदना लंबे समय से सक्रिय हैं, जेल में महिला कैदियों को रोजगार देने की मुहिम भी उन्होंने शुरू कर दिया है, इसके लिए वो जेल के अधिकारियों से संपर्क करती हैं और फिर नाबार्ड से फंड लेकर इन महिलाओं उनकी रुचि अनुसार काम को ट्रेनिंग देती हैं।

अब तक बीस हज़ार लोगों को रोजगार दिला चुकी हैं

सामाजिक कार्य करके सिलसिला कैसे शुरू हुआ इस बारे में मन कहती हैं जब मैं ट्वेल्थ क्लास में थी तो भूमि सुधार निगम की तरफ से पहली बार संडीला गई थी वहां गांव की औरतों से मिलने का मौका मिला लेकिन दिशाहीन थी समझ में नहीं आ रहा था क्या किया जाए चार महीना इस प्रोजेक्ट से जुड़ी रहीं, 4 महीनों में मुझे समझ में आ गया कि गांव के लोगों से कैसे जुड़ना चाहिए, सामाजिक कार्यों के बारे में तफसील से जानने समझने के लिए वंदना ने 2006 में सोशल वर्क में मास्टर्स किया , अब तक हो 20000 महिलाओं से जुड़ चुकी है और 11000 महिलाओं को ट्रेनिंग दे चुकी हैं , ऐसे तमाम कार्यों के लिए उन्हें फंड नाबार्ड करता है साथ ही प्रशासन पूरी मदद करता है।

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