जानें कैसे सुनील वशिष्ठ ने 15 साल की उम्र में संघर्ष की शुरुआत की और छोटी-मोटी नौकरियों से करोड़ों का साम्राज्य खड़ा किया। उनकी प्रेरणादायक कहानी आपको मेहनत और समर्पण का सही अर्थ सिखाएगी।
नयी दिल्ली। दसवीं पास करने के बाद से ही 15 साल की उम्र में स्ट्रगल शुरू हुआ। छोटी-मोटी पार्ट-टाइम जॉब्स से लेकर फार्महाउसों में बैटरी, साड़ियों के शोरूम में सेल्समैन का काम किया। एक समय ऐसा आया, जब तय किया कि अब चाय का खोखा लगा लूंगा पर नौकरी नहीं करूंगा। फिर खुद का बिजनेस शुरू किया। कॉल सेंटरों के बाहर कार्ड बांटे। अब करोड़ों की कम्पनी के मालिक हैं। देश भर में 15 आउटलेट्स रन कर रहे हैं। हम बात कर रहे हैं Flying Cakes के फाउंडर सुनील वशिष्ठ की।
साधारण परिवार से असाधारण सफर
सुनील वशिष्ठ दिल्ली के चिराग गाँव से आते हैं। एक साधारण, फाइनेंशियली एवरेज परिवार से ताल्लुक रखने वाले सुनील ने अपनी पढ़ाई सरकारी स्कूल से पूरी की। 10वीं पास करने के बाद जब वह खुश होकर अपने माता-पिता के पास पहुंचे, तो उन्हें उम्मीद थी कि उन्हें शाबाशी या कोई गिफ्ट मिलेगा। लेकिन उनके पिता ने उनसे एक ज़रूरी बात कही, जो उनकी जिंदगी का अहम मोड़ बन गई।
जब पढ़ाई का खर्च उठाने के लिए खुद करना पड़ा काम
पिता ने साफ कहा कि अगर अपनी पढ़ाई जारी रखनी है या अपने शौक पूरे करने हैं, तो उन्हें खुद काम करना होगा। यह बात सुनकर सुनील पहले तो सरप्राइज हुए, लेकिन फिर उन्होंने इसे चुनौती की तरह लिया। पार्ट-टाइम जॉब की तलाश शुरू कर दी। हालांकि, उस समय कोई भी जॉब इतनी आसानी से नहीं मिल रही थी, क्योंकि सुनील की उम्र काफी कम थी।
दूध बांटने से लेकर सेल्समैन तक
जहां भी वह काम मांगने जाते थे। उन्हें यह कहकर चलता कर दिया जाता था कि उनकी उम्र काफी कम है। एक दोस्त की सलाह पर उन्होंने एक दूध कम्पनी में इंटरव्यू दिया। वहां 200 रुपये महीने पर दूध बांटने का काम मिल गया। फिर साड़ियों के शोरूम में सेल्समैन की नौकरी की, फार्म हाउसों में बैटरी का काम किया, और भी कई छोटी-मोटी पार्ट-टाइम जॉब कीं।
पढ़ाई छोड़कर जॉब का रास्ता
काम करते हुए सुनील ने 12वीं क्लास पास की और कॉलेज में एडमिशन लिया। हालांकि, खर्चे बढ़ने की वजह से उन्हें फिर पार्ट-टाइम जॉब करनी पड़ी। फिर एक कूरियर कम्पनी में फुल टाइम जॉब शुरू कर दिया। उसकी वजह से उन्हें B.A. सेकंड ईयर में पढ़ाई छोड़नी पड़ी, क्योंकि जॉब और पढ़ाई साथ में नहीं चल पा रही थी।
डोमिनोस में जॉब और प्रमोशन
कुरियर कंपनी में दो साल काम करने के बाद जब सुनील को महसूस हुआ कि वहां प्रमोशन या सैलेरी इंक्रीमेंट की कोई गुंजाइश नहीं है, तो उन्होंने डोमिनोस पिज्ज़ा कंपनी जॉइन की। यहां उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से सिर्फ दो साल में असिस्टेंट मैनेजर की पोस्ट हासिल कर ली। हालांकि, किस्मत ने एक बार फिर करवट ली जब प्रेग्नेंसी के दौरान उनकी पत्नी को हॉस्पिटल में एडमिट कराना था। पर कम्पनी के सीनियर ने उन्हें छुट्टी देने से इंकार कर दिया। अपने जूनियर को चार्ज देकर उन्होंने वाइफ को अस्पताल में एडमिट कराया। इसके चलते दूसरे दिन ही उन्हें जॉब छोड़नी पड़ी।
जॉब खोने के बाद किया बड़ा फैसला
नौकरी छूटने के दिन सुनील ने ठान लिया कि अब वह कभी किसी के लिए नौकरी नहीं करेंगे, चाहे कुछ भी हो जाए। चाय का ठेला ही क्यों न लगाना पड़े। इसके बाद उन्होंने जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के सामने खुद का फूड स्टॉल शुरू किया। यह स्टॉल काफी अच्छा चलने लगा, लेकिन डेढ़ से दो महीने बाद किसी के कंप्लेन के बाद MCD ने उसे तोड़ दिया।
असफलताओं से हिम्मत नहीं हारी
फूड स्टॉल बंद होने के बावजूद सुनील ने हार नहीं मानी। उन्होंने एक केक शॉप खोलने का फैसला किया। हालांकि, शुरुआत में यह शॉप ज्यादा अच्छा नहीं चली, दोस्त अक्सर कहते थे कि दुकान नहीं चल रही है तो बंद कर दो, लेकिन सुनील ने अपने जुनून को कभी कमजोर नहीं होने दिया।
ऐसे मिला पहला बड़ा ब्रेक
सुनील अपनी शॉप को चलाने के लिए कॉल सेंटर्स के सामने विजिटिंग कार्ड दिया करते थे। एक दिन एक महिला ने उनकी शॉप से केक आर्डर किया। अगले दिन उनके पास बल्क आर्डर के लिए कॉल आया। एग्रीमेंट साइन करने के लिए बुलाया गया। जब वह उस जगह पहुंचे तो चौंक गए। वह आर्डर एचसीएल कम्पनी से आया था और उसी महिला ने उन्हें बुलाया था। जिसने एक दिन पहले उनकी शॉप से केक आर्डर किया था।
एचसीएल से पहला बड़ा आर्डर
उस महिला कस्टमर ने सुनील की कंपनी को सभी कर्मचारियों के बर्थडे केक सप्लाई करने के लिए एक बड़ा ऑर्डर दिया। इस ऑर्डर ने सुनील की कंपनी को एक नई दिशा दी। अब उनके केक बड़ी बड़ी कम्पनियों में जाने लगे। इसके बाद उन्होंने एक के बाद एक कई आउटलेट खोले और आज उनके पास 15 आउटलेट्स हैं। कम्पनी का सालाना टर्नओवर करोड़ो में है। वह कहते हैं कि अगर आप में सच्चा जोश और जुनून है, तो आप भी वही कर सकते हैं जो उन्होंने किया।