गोरखपुर की यशी उन तमाम स्टूडेंट्स के लिए मिसाल है जो विफलता पर बहाने बनाते हैं। यशी सेरेब्रल पाल्सी नाम की बीमारी से जूझ रही थी। सात साल की उमर तक उसके हाथ-पांव काम नहीं करते थे और वह पूरे वक्त बिस्तर पर ही पड़ी रहती थी, लेकिन आज यशी ना सिर्फ अपने पैरों पर खड़ी हुई है, बल्कि उसका सेलेक्शन देश के सबसे पुराने कोलकाता के मेडिकल कॉलेज में भी हो गया है।
गोरखपुर. दिल में अगर कुछ करने का जज्बा हो तो शारीरिक और मानसिक दिव्यांगता कभी रुकावट नहीं बन सकती। गोरखपुर की यशी कुमारी ने अपने दृढ़ निश्चय से वह कर दिखाया जो एक सामान्य स्टूडेंट भी मुश्किल से कर पाता है। यशी ने शारीरिक दिव्यांगता को हराकर नीट एग्जाम क्वालीफाई किया और दिव्यांग और सामान्य बच्चों के लिए प्रेरणा बन चुकी है। माय नेशन हिंदी से यशी के पिता मनोज कुमार सिंह ने अपने विचार साझा किया।
पहले ही अटेम्प्ट में क्वालीफाई किया नीट
यूपी के गोरखपुर की रहने वाली यशी कुमारी के पिता मनोज कुमार सिंह एक ऑटो ड्राइवर है। गोरखपुर के लिटिल फ्लावर स्कूल से हाई स्कूल 94% मार्क्स और रिलायंस अकादमी से यशी ने इंटर पास किया। हाई स्कूल पास करने के बाद यशी के पिता ने नीट की कोचिंग के लिए यशी को राजस्थान के कोटा भेज दिया। साल 2022 में पहली कोशिश में यशी मेरिट में जगह बनाने में कामयाब हो गई और उसे एमबीबीएस में दाखिला मिल गया। उसका सिलेक्शन देश के सबसे पुराने मेडिकल कॉलेज कोलकाता में हुआ। मनोज कहते हैं यशी बचपन से ही पढ़ने में बहुत तेज़ थी. उसने हर परीक्षा फर्स्ट डिवीजन में पास की. हालांकि स्कूल के टीचर शारीरिक अक्षमता के चलते उसे कभी किसी एक्टिविटी में शामिल नहीं होने देते थे. बस बिस्तर पर हर वक़्त पड़े पड़े कभी कभी झल्ला जाती थी।
सेरेब्रल पाल्सी से ग्रस्त है यशी
यशी बचपन से सेरेब्रल पाल्सी जैसी बीमारी से ग्रस्त थे यह बीमारी एक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर होता है जो बच्चों की शारीरिक गति चलने फिरने की क्षमता को प्रभावित करता है। यशी दाएं हाथ और पैर से ना तो ठीक से चल सकती है ना कोई काम कर सकती है। यशी ने अपने बाएं हाथ से लिखने की प्रेक्टिस किया क्योंकि वह बचपन से डॉक्टर बनना चाहती थी। घर की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी इसके बावजूद यशी के पिता ने अपने बच्चों को पढ़ाने में और यशी के इलाज में कोई कसर नहीं छोड़ी । यशी दो भाई और एक बहन है।
थर्ड क्लास में पता चला यशी की बीमारी के बारे में
यशी जब थर्ड क्लास में थी तब उनके माता-पिता को उनकी इस बीमारी के बारे में पता चला। मनोज कहते हैं थोड़ा निराश हम उस वक़्त हुए थे जब हमे ये पता चला की ये बीमारी ला इलाज है , लेकिन हमने अपनी बेटी को ठीक होते हुए देखा। पहले उसके शरीर में हरकत नहीं होती थी , आज वो अपने पैरों पर खड़ी हो चुकी है। प्रयागराज में डॉक्टर जितेंद्र कुमार जैन ने यशी का इलाज करना शुरू किया। मनोज कहते हैं डॉक्टर जितेंद्र के पास ऐसे बहुत से बच्चे आते थे जिनका वह इलाज करते थे लेकिन यशी के बारे में वह कहते थे कि उसने अपनी इच्छाशक्ति से अपने शरीर पर नियंत्रण करना सीख लिया है। यहां तक कि यशी को नीट के लिए डॉक्टर जैन ने प्रोत्साहित किया था। आप यह कह सकते हैं कि डॉक्टर जैन एक उम्मीद की किरण बनकर हमारी जिंदगी में आए थे। उन्होंने यशी को मोटिवेट किया और आज यशी की सफलता से वह बहुत खुश है।
लोगों ने दिया ताना
मनोज कहते हैं मेरी बच्ची 6 साल की थी जब उसकी बीमारी के बारे में हमें समझ में आया उसके अपाहिज होने के कारण अक्सर लोग उसका मजाक उड़ाते थे, उसको ताना देते थे, कुछ पल के लिए वह भावुक होती थी उसकी आंखों में आंसू आते थे लेकिन बचपन से उसने पढ़ाई पर बहुत फोकस किया । उसका हाथ पैर बेशक अपाहिज था लेकिन उसका दिमाग अपाहिज नहीं था उसके दिमाग पर उसका पूरा नियंत्रण था और आज यशी आप लोगों के सामने हैं। कुछ सालों में वो डॉक्टर बन जाएगी।
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