गोरखपुर के रत्नेश तिवारी जहां भी रहते हैं गरीब बच्चों के लिए मसीहा बन जाते हैं। रत्नेश पेशे से इंजीनियर हैं लेकिन संवेदनशील दिल के मालिक हैं। प्रधानमंत्री के न्यू इंडिया से प्रेरणा लेकर रत्नेश युवा इंडिया पर फोकस कर रहे हैं और इसकी नर्सरी तैयार करने में जुटे हैं। उनका एक ही लक्ष्य है गरीब बच्चे ,झुग्गी झोपडी और  फुटपाथ पर रहने वाले बच्चो को शिक्षा और अच्छा जीवन यापन देना। माय नेशन हिंदी से रत्नेश ने अपने विचार साझा किये। 

कौन है रत्नेश तिवारी
कुशीनगर जिले के रत्नेश तिवारी ने गोरखपुर से एमसीए किया और उसके बाद हैदराबाद और दिल्ली नौकरी करने चले गए। मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब किया जिसमें 10 लाख के करीब सालाना पैकेज था। लेकिन रत्नेश का दिल नौकरी में नहीं लगा । गरीबों के लिए काम करने की सोच उन्हें कुशीनगर वापस आ गए। रत्नेश ने जहां कहीं भी नौकरी किया, वहां किसी न किसी सामाजिक संस्था से जुड़ कर गरीब बच्चों के लिए काम किया। हैदराबाद में नौकरी के दौरान रत्नेश ने सड़क पर रहने वाले बच्चों के लिए काम किया।कुशीनगर वापस आकर उन्होंने साल 2016 में युवा इंडिया मंच की शुरुआत किया जिसके तहत वो स्लम एरिया में जाकर बच्चों को पढ़ाने लगे। 

 

रत्नेश लगाते हैं बच्चों की पाठशाला
रत्नेश ने अक्षर मुहिम पाठशाला नाम से एक स्कूल शुरू किया था जिसमें शुरुआत में सिर्फ 6, 7 बच्चे पढ़ने आते थे लेकिन धीरे-धीरे बच्चों की तादाद बढ़ती चली गयी  और रत्नेश ने अलग-अलग इलाकों में यह पाठशाला लगाना शुरू कर दिया। इस पाठशाला के साथ-साथ रत्नेश कोशिश करते थे की बच्चों को किसी भी तरह से स्कूल में एडमिशन दिलाया जाए। साथ ही  बच्चों की बुनियादी ज़रूरतों का भी रत्नेश पूरा खयाल रखते थे। धीरे-धीरे रत्नेश की पाठशाला के चर्चे चारों तरफ होने लगे और बच्चों की संख्या हजार का आंकड़ा पार कर गई।

गरीबों के सर्वांगीण विकास के लिए रत्नेश कर रहे हैं काम
रत्नेश गरीब बच्चों को मुफ्त में भोजन कपड़ा कॉपी किताब देते हैं। उनकी एक टीम है जिसमें 200 के करीब लोग हैं जो इन बच्चों को पढ़ाने  का काम करते हैं। कुशीनगर के अलावा गोरखपुर के लाल डिग्गी  पार्क और सूर्य विहार पार्क के पास कक्षाएं चलवा चुके हैं।  रत्नेश बच्चों के परिवार की स्थिति को सुधारने का काम कर रहे हैं और इसके लिए वह महिलाओं के लिए लाइवलीहुड प्रोग्राम चलाते हैं।  उनकी इस टीम में इंजीनियर और डॉक्टर भी जुड़ चुके हैं। फिलहाल रत्नेश की कोशिश रहती है कि उनकी पाठशाला के बच्चे किसी भी तरह से प्राइवेट या सरकारी स्कूल में एडमिशन ले सके ताकि उनकी पढ़ाई आगे तक जारी रह सके। रत्नेश ने अबसे 8 साल पहले गरीब बच्चों को पढ़ाने का जो सपना देखा था वो अब बदलाव का रूप ले चुका  है। 


ये भी पढ़ें 

फेरी वाले के बेटे ने कम्प्यूटर साइंस के लिए छोड़ी आईआईटी दिल्ली की सीट ...