गांव में भैंस चराने वाला कैसे बना 300 करोड़ की कम्पनी का मालिक?

By Rajkumar Upadhyaya  |  First Published Nov 12, 2024, 7:38 AM IST

पांचवीं क्लास में शादी हो गई। 14 की उम्र में नशे की लग गई लत। एक दुकान में 2 वक्त के खाने लिए काम शुरू किया। 1500 रुपये मिलते थे। अब 300 करोड़ की कम्पनी है।

Success Story: गांव में गाय-भैंस चराने वाले रमेश चौधरी ने 300 करोड़ का ऑर्गेनाइजेशन खड़ा कर दिया। सूर्या इलेक्ट्रॉनिक्स के फाउंडर और सीईओ हैं। जब इनकी मॉम 45 साल और फॉदर 55 साल के थे, तब उनका जन्म पुणे के एक छोटे से गांव में हुआ था, अधिक उम्र में बेटे की जन्म की वजह से पैरेंट्स खुद को नर्वस फील कर रहे थे। बचपन में रमेश 5 किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल जाते थे। एवरेज स्टूडेंट थे। 10 साल की उम्र में शादी हो गई, तब वह पांचवीं क्लास में थे। मैरिज के बाद छठीं क्लास से पढ़ाई शुरू की। हालांकि उनकी पहली पत्नी का जल्दी ही निधन हो गया। 

परिवार ने निकम्मा समझकर भेजा हॉस्टल

रमेश चौधरी कहते हैं कि गांव के लड़के पढ़ी लिखी लड़की से शादी की उम्मीद करते थे। पर खुद पढ़े लिखे नहीं थे तो भला कोई एजूकेटेड लड़की उनसे शादी क्यों करेगी? 2 साल की उम्र में बीड़ी-सिगरेट के बारे में नहीं पता था। पर जब कोई इसके टुकड़े पीकर डाल देता था तो वह हम उठाकर पीना शुरू कर देते थे। 14 की उम्र तक मुझे बीड़ी, सिगरेट, तंबाकू, गुटका, दारू की लत लग गई। परिवार वाले मुझे निकम्मा समझने लगे।​ पिता ने परेशान होकर मुझे एक ऐसे हॉस्टल भेजा, ताकि मेरे जीवन में कुछ बदलाव आए।

पढ़ाई में इंटरेस्ट नहीं, बिजनेस खड़ा करनी थी प्रायोरिटी

रमेश चौधरी को शुरुआत से पढ़ाई में इंटरेस्ट नहीं था। पर हॉस्टल जाकर उनका थॉट प्रोसेस बदला, एक बदलाव आया और फिर उन्होंने नशा करना छोड़ दिया। 10वीं और 12वीं क्लास में इंग्लिश सब्जेक्ट में ग्रेस मार्क्स से पास हुए। उनकी एक ही प्रायोरिटी थी कि वह किसी तरीके से अपना बिजनेस खड़ा करें। कम उम्र में एक छोटी सी दुकान में काम की शुरूआत की। उन्हें दो वक्त का खाना मिलता था, लेकिन सैलरी नहीं। इलेक्ट्रॉनिक्स रिपेयरिंग का काम सीखना शुरू किया और धीरे-धीरे अपने काम में महारत हासिल की। हर दिन साइकिल पर 50 किलोमीटर का सफर तय कर वे इलेक्ट्रिकल सामान बेचते थे। दिन में कई बार उन्हें अपने हालात पर रोना आता था। एक दिन परिस्थितियों से थक हार कर गावं जाने का निर्णय लिया और पास ही रहने वाले अपने दामाद के पास गए। 

एक दुकान पर 1500 रुपये में हेल्पर का काम

रमेश को उनके दामाद ने समझाया। यही उनके जीवन का टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ। अपने दामाद की सलाह पर ‘पवन इलेक्ट्रॉनिक्स’ नाम की दुकान में 1500 रुपये वेतन पर हेल्पर के रूप में काम करना शुरू किया। काम में खुद को झोंक दिया। दुकान की सेल दो-तीन यूनिट से बढ़ाकर 150-200 यूनिट प्रति माह तक पहुंचा दिया। उनकी मेहनत को देखकर रमेश के ससुर ने उन्हें बिजनेस करने के लिए शुरूआती पूंजी के रूप में कुछ पैसे उधार दिए। उन्होंने यह पूंजी ईमानदारी से लौटाई और ‘सूर्या इलेक्ट्रॉनिक्स’ नाम की दुकान की शुरुआत की। 200 स्क्वायर फीट की छोटी सी दुकान से शुरू हुए इस सफर ने धीरे-धीरे एक बड़े बिजनेस की नींव रखी।

2001 में रखी सूर्या इलेक्ट्रॉनिक्स की नींव, पहले साल टर्नओवर एक करोड़

2001 में सूर्या इलेक्ट्रॉनिक्स की स्थापना के बाद रमेश ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उनके पहले साल का टर्नओवर 1 करोड़ रुपये था, लेकिन उन्होंने इसे बढ़ाकर 2024 तक 300 करोड़ रुपये तक पहुंचा दिया। कस्टमर्स को प्राथमिकता दी। क्वालिटी और सर्विस पर विशेष ध्यान दिया। उनके हार्ड वर्क ने सूर्या इलेक्ट्रॉनिक्स को एक बड़ा ब्रांड बना दिया, अब जिसके महाराष्ट्र में 13 से ज्यादा ब्रांच हैं। रमेश के बिजनेस में कई बार संकट आए। 2008 में फाइनेंशियल क्राइसिस के दौरान इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री पर बुरा असर पड़ा। तब उन्होंने बजाज फाइनेंस के साथ मिलकर एक ज्वाइंट वेंचर किया, ताकि कस्टमर्स को फाइनेंशियल हेल्प मिल सके। रमेश खुद ज्यादा पढ़ाई नहीं कर पाए, लेकिन उन्होंने अपनी पत्नी को उच्च शिक्षा दिलाया। उनकी पत्नी ने आईआईएम अहमदाबाद से एग्जीक्यूटिव एमबीए किया है। 

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