कभी सहपाठी कहते थे 'चायवाला', पिता की डेली कमाई 400 रुपये, कैसे IAS बने हिमांशु गुप्ता?

By Rajkumar Upadhyaya  |  First Published May 17, 2024, 6:23 PM IST

UPSC Success Story: यूपीएससी प्रीलिम्स एग्जाम जुलाई 2024 में होगा। ऐसे में हम आपको ऐसे सफल कैंडिडेट्स की कहानी बता रहे हैं, जो कठिन परिस्थितियों से निकलकर मंजिल तक पहुंचे। एस्पिरेंट्स के लिए इनकी कहानी प्रेरणादायक है।

UPSC Success Story: मौजूदा दौर में माना जाता है कि अच्छे संस्थानों से पढ़े हुए लोग ही यूपीएससी में सक्सेस होते हैं। इनके बीच IAS हिमांशु गुप्ता की कहानी दूसरों को राह दिखाने का काम करती है। मजदूर के बेटे हिमांशु गुप्ता ने एक समय चाय तक बेची। परिवार चलाने में पिता की मदद करते थे। डेली 400 रुपये कमाई होती थी। ऐसी परिस्थिति से निकलकर उन्होंने यूपीएससी क्लियर किया। आइए जानते हैं उनकी इंस्पिरेशनल स्टोरी।

9वीं से इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ाई

'Humans of Bombay' के सोशल मीडिया एकाउंट पर हिमांशु गुप्ता अपनी कहानी बताते हुए कहते हैं कि 14 साल की उम्र तक उत्तराखंड रहा। तब पिता डेली बेसिस पर जॉब करते थे। उस समय घर चलाना मुश्किल था। इनकम काफी कम थी। फिर भी पिता ने मेरी दो बहनों और मेरी पढ़ाई से कोई समझौता नहीं किया। 14 साल की उम्र में परिवार बरेली शिफ्ट हो गया। यहां जनरल स्टोर खोला। जब पिता को लगा कि थोड़ा अफोर्ड कर सकते हैं तो मेरा एडमिशन एक इंग्लिश मीडियम स्कूल में 9वीं क्लास में कराया। 12वीं तक वहीं से पढ़ाई की।

ऐसे हुआ दिल्ली विवि में एडमिशन

हिमांशु कहते हैं कि छोटे कस्बों के बच्चों को ज्यादा जानकारी नहीं होती है। पर मुझे छोटे कस्बे से निकलकर आगे जाना था। पापा के पास नोकिया फोन था। उसी से कॉलेज और एजूकेशन के बारे में सर्च करना शुरू किया तो मुझे पता चला कि दिल्ली यूनि​वर्सिटी में मार्क्स के आधार पर प्रवेश मिलता है। संयोग से वह ऐसा एकमात्र साल था। जब विवि ने एडमिशन के लिए कोई फॉर्म फ्लोट नहीं किया था। कॉलेज ने डायरेक्ट कटआफ रिलीज किए थे कि उसके आधार पर सीधे एडमिशन ले सकते हैं और इस तरह मैंने दिल्ली यूनिवर्सिटी में एडमिशन लिया। तब एहसास था कि तीन साल का मौका मिला है। इसमे मैं वह सारी चीजें सीख सकता हूॅं, जो चाहता हूॅं। ग्रेजुएशन के बाद कंफ्यूज था।

'चायवाला' कहने लगे सहपाठी

अपनी कहानी बताते हुए वह कहते हैं कि अपने सहपाठियों के साथ वैन से स्कूल आते-जाते थे। पिता चाय का ठेला लगाते थे। मैं पिता की मदद के लिए मौजूद रहता था। जब मेरे सहपाठी चाय के ठेले के पास से गुजरते थे तो छिप जाता था। ताकि वह मुझे देख न सके। पर किसी सहपाठी ने मुझे देख लिया था और फिर मेरा मजाक उड़ाना शुरू कर दिया गया, 'चायवाला' कहने लगे। पर उसके बजाए मैंने अपना पूरा ध्यान पढ़ाई पर लगाया। ठेले से कुल मिलाकर डेली 400 रुपये की कमाई हो जाती थी।

पहले IRTS फिर IPS और अब IAS

हिमांशु गुप्ता ने ग्रेजुएशन के बाद एक विदेशी स्कॉलरशिप को स्वीकार नहीं किया। वह देश में ही रहकर कुछ करना चाहते थे। यूपीएससी तैयारी पर ध्यान दिया। साल 2018 में यूपीएससी ​में सफलता मिली। भारतीय रेलवे यातायात सेवा (IRTS) कैडर मिला। 2019 में दोबारा प्रयास किया तो रैंक सुधरी। भारतीय पुलिस सेवा (IPS) में सर्विस का मौका मिला। साल 2020 के तीसरे प्रयास में आईएएस बन गए।

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