स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने देश को संबोधित किया। इस दौरान अपनी सरकार के उपलब्धियां गिनाई और तीन तलाक और जम्मू-कश्मीर से धारा 370 संबंधी फैसलों को देशहित में जरुरी बताया। राष्ट्रपति ने पर्यावरण संतुलन पर विशेष बल दिया।
नई दिल्ली. स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राष्ट्र को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने तीन तलाक और जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को निष्प्रभावी करने के फैसले का भी जिक्र किया। राष्ट्रपति ने कहा कि मुझे विश्वास है कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के लिए हाल ही में किए गए बदलावों से वहां के निवासी बहुत अधिक लाभान्वित होंगे। वे भी अब समानता को बढ़ावा देने वाले प्रगतिशील कानूनों और प्रावधानों का इस्तेमाल कर सकेंगे। सूचना का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, वंचितों को शिक्षा और नौकरी में आरक्षण जैसी सुविधाएं मिल सकेंगी। तीन तलाक जैसे अभिशाप के खत्म होने से मुस्लिम बेटियों को समानता का अधिकार मिलेगा।
'पर्यापरण संरक्षण का महत्व जानते थे महात्मा गांधी
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा, ''स्वतंत्रता दिवस सभी भारतीयों के लिए खुशी का दिन। इस मौके पर हम अपने असंख्य स्वतंत्रता सेनानियों और क्रांतिकारियों को याद करते हैं, जिन्होंने हमें आजादी दिलाने के लिए महान आदर्श प्रस्तुत किए। कुछ ही सप्ताह बाद हम गांधीजी की 150वीं जयंती मनाएंगे। गांधीजी का मार्गदर्शन आज भी उतना ही प्रासंगिक है। उन्होंने हमारी चुनौतियों का अनुमान पहले ही लगा लिया था। उन्होंने पर्यावरण के साथ संतुलन पर जोर दिया। हमारे अनेक प्रयास उनके विचारों को ही यथार्थ रूप देते हैं। सौर ऊर्जा के उपयोग को बनाने पर विशेष जोर देना भी उन्हीं की सोच का हिस्सा है।''
पूरे देश के लिए आदरणीय हैं गुरु नानक देव जी
उन्होंने कहा, ''यह साल गुरुनानक जी की 550वीं जयंती का साल है। सिख पंथ के संस्थापक के रूप में लोगों के हृदय में जो आदर का भाव है, वह केवल सिखों तक ही सीमित नहीं है। करोड़ों श्रद्धालु उन पर गहरी आस्था रखते हैं। जिस महान पीढ़ी के लोगों ने हमें आजादी दिलाई, उनके लिए स्वाधीनता राजनीतिक सत्ता हासिल करने तक सीमित नहीं थी। उनके लिए लोगों का जीवन बेहतर बनाना भी मकसद था।''
भारतीयों की रुचियां अलग लेकिन सपने एक
राष्ट्रपति ने कहा, ''मैंने महसूस किया है कि भारत के लोगों की रुचि भले ही अलग-अलग हों, पर सपने एक ही हैं। 1947 से पहले आजादी का लक्ष्य था, आज लक्ष्य विकास की गति तेज होना, शासन का पारदर्शी और कुशल होना है। जनादेश में लोगों की आकांक्षाएं साफ दिख रही हैं। सरकार अपनी भूमिका निभाती है, लेकिन मेरा मानना है कि 130 करोड़ भारतीय अपने कौशल से, क्षमता से और संभावनाएं पैदा कर सकते हैं। भारत के लंबे इतिहास में हमें कई बार चुनौतियों से गुजरना पड़ा है। हमने विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ा, फिर भी आगे बढ़े। अब परिस्थितियां बदल रही हैं। अनुकूल वातावरण में देशवासी जो लक्ष्य हासिल कर सकते हैं, वह कल्पना से भी परे है।''
अपनी सरकार की उपलब्धियां बताई
उन्होंने कहा, ''हर देशवासी के घर में नल के जरिए पीने का पानी पहुंचाने, किसानों को पानी उपलब्ध कराने, कहीं बाढ़-कहीं सूखे की समस्या को खत्म करने के लिए जल शक्ति मंत्रालय के जरिए कदम उठाए जा रहे हैं। देश के सभी हिस्सों में कनेक्टिविटी बढ़ाई जा रही है। रेल यात्रा को सुरक्षित और सुविधाजनक बनाया जा रहा है। छोटे शहरों को भी हवाई यात्रा से जोड़ा जा रहा है। नए बंदरगाह बनाए जा रहे हैं।''
'जियो और जीने दो भारत का सिद्धांत'
जब हम अपने देश की समावेशी संस्कृति की बात करते हैं तो हमें यह भी देखना है कि हमारा आपसी व्यवहार कैसा है। भारत का समाज हमेशा से सहज और सरल रहा है। वह जियो और जीने दो के सिद्धांत पर चलता रहा है। भाषा-पंथ से ऊपर उठकर हमने एक-दूसरे का सम्मान किया है। हजारों सालों में शायद ही भारतीय समाज ने कभी भी पूर्वाग्रह को व्यक्त किया हो। सबके साथ चलना हमारी विरासत का हिस्सा रहा है। दूसरे देशों के साथ संबंधों में भी सहयोगी की भावना का हम परिचय देते हैं।
सांस्कृतिक मूल्य बेहद भारतीयों के लिए बेहद अहम
भारत के सांस्कृतिक मूल्यों को हमें हमेशा बनाए रखना है। समाज का स्वरूप तय करने में युवाओं की भागीदारी निरंतर बढ़ रही है। ये बहुत खुशी की बात है कि युवा ऊर्जा की धारा को सही दिशा देने के लिए विद्यालयों में जिज्ञासा की संस्कृति को बढ़ावा दिया जा रहा है। उनकी आशाओं और आकांक्षाओं पर विशेष ध्यान देना है। समाज के अंतिम व्यक्ति के लिए भारत अपनी संवेदनशीलता बनाए रखेगा। आदर्शों पर अटल रहेगा, जीवनमूल्यों को संजो कर रखेगा और साहस की परंपरा को आगे बढ़ाएगा। हम भारतीय ज्ञान और विज्ञान के दम पर चांद और मंगल पर पहुंचने की योग्यता रखते हैं। हमारी संस्कृति यह है कि हम प्रकृति और जीवों के लिए संवेदना रखते हैं।