माया के बाद अब ‘रिवर फ्रंट’ पर अखिलेश की मुश्किलें बढ़ाएंगे योगी

Published : Jun 04, 2019, 09:20 AM ISTUpdated : Jun 04, 2019, 09:45 AM IST
माया के बाद अब ‘रिवर फ्रंट’ पर अखिलेश की मुश्किलें बढ़ाएंगे योगी

सार

लखनऊ में गोमती नदी के किनारे पूर्व की अखिलेश यादव सरकार ने रिवर फ्रंट का निर्माण कराया था। जिसमें निर्धारित बजट से दो गुना पैसा खर्च किया गया। राज्य में अखिलेश यादव की सरकार जाने के बाद योगी आदित्यनाथ सरकार ने आते ही इसकी जांच बैठा दी थी। हालांकि इस बीच ये मामला काफी शांत रहा। लेकिन लोकसभा चुनाव समाप्त होते ही एक बार फिर रिवर फ्रंट घोटाले को लेकर यूपी सरकार ने जांच में तेजी कर दी है। 

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद समाजवादी पार्टीं के अध्यक्ष अखिलेश यादव की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। प्रदेश में गठबंधन की सहयोगी बीएसपी के एसपी के साथ गठबंधन तोड़ने की अटकलें तेजी से चल रही हैं।

वहीं प्रदेश की योगी सरकार ने अखिलेश की मुश्किलें रिवर फ्रंट घोटाले पर बढ़ा दी हैं। सीबीआई के बाद इस मामले में अब प्रवर्तन निदेशालय ने अपनी जांच को तेज कर दिया है। इस प्रोजेक्ट को अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री रहते हुए मंजूर किया था। लखनऊ में गोमती नदी के किनारे पूर्व की अखिलेश यादव सरकार ने रिवर फ्रंट का निर्माण कराया था।

जिसमें निर्धारित बजट से दो गुना पैसा खर्च किया गया। राज्य में अखिलेश यादव की सरकार जाने के बाद योगी आदित्यनाथ सरकार ने आते ही इसकी जांच बैठा दी थी। हालांकि इस बीच ये मामला काफी शांत रहा। लेकिन लोकसभा चुनाव समाप्त होते ही एक बार फिर रिवर फ्रंट घोटाले को लेकर यूपी सरकार ने जांच में तेजी शुरू कर दी है।

अब इस घोटाले में ईडी ने एक बार फिर आरोपित अफसरों से पूछताछ की कवायद शुरू कर दी है। ईडी ने उस दौरान सिंचाई विभाग में कार्यरत आला अफसरों को फिर से नोटिस भेजा है। इस प्रोजेक्ट का प्रस्ताव अखिलेश यादव की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में ही मंजूर किया गया था। जाहिर है जांच का दायरा आने वाले दिनों में बढ़ेगा।

हालांकि इस मामले में पहले से ही सीबीआई भी कर रही है। इस मामले में ईडी ने इस साल 24 जनवरी को लखनऊ के गोमतीनगर समेत कई स्थानों पर छापेमारी की थी, जिसमें कई आपत्तिजनक कागजात मिले थे। गौरतलब है कि गोमती रिवर फ्रंट का काम अखिलेश सरकार में 2015 में शुरू हुआ था।

हालांकि इस प्रोजेक्ट का बजट 550 करोड़ रुपये था और बाद इसकी लागत बढ़ाकर 1467 करोड़ रुपये कर दी गयी। हालांकि 2017 में प्रदेश में योगी सरकार आने तक इस प्रोजेक्ट पर 1427 करोड़ रुपये खर्च भी हो चुके थे। योगी सरकार के आदेश के बाद हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज की अगुवाई में बनाई गयी कमेटी ने भी इस प्रोजेक्ट की जांच की है। 

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