अटल बिहारी वाजपेयी, एक सुधारक और मां भारती के महान सपूत

By Rajeev Chandrasekhar  |  First Published Aug 17, 2018, 7:18 PM IST

कठिन मुद्दों पर आमराय बनाने के लिए प्रयास करने की उनकी क्षमता और भारत के लिए क्या सही है, यह तय करने की उनकी प्रतिबद्धता एवं नजरिये का मैं खुद गवाह रहा हूं। इन सबका परिणाम विभिन्न सुधारों के रूप में सामने आया।

16 अगस्त, स्वतंत्रता दिवस के उत्सव के अगले ही दिन देश ने अपने महान सपूतों में से एक अटल बिहारी वाजपेयी को खो दिया। 

अटलजी ने कई लोगों को प्रेरित किया। इनमें से मैं भी एक हूं। मेरे लिए वह इतने वर्षों तक भाजपा का समर्थन करने और फिर देश सेवा के लिए राजनीति में आने का सबसे बड़ा कारण रहे। अटलजी की आडवाणीजी के साथ लगभग सात दशक लंबी साझेदारी और मित्रता ही आज की भाजपा के निर्माण का आधार बनी। उनसे भाजपा के मौजूदा नेतृत्व को मार्गदर्शन मिलता रहा।

अटलजी ने आदर्शवाद और राष्ट्र सेवा की उस परंपरा का प्रतिनिधित्व किया जो मौजूदा राजनीति में मुश्किल से ही देखने को मिलती है। जब वह भाजपा के अध्यक्ष बने, तो उन्होंने कहा था, 'ये पद नहीं दायित्व है, प्रतिष्ठा नहीं है, परीक्षा है; ये सम्मान नहीं है, चुनौती है।'

अटलजी अपनी कविताओं समेत कई अन्य चीजों के लिए जाने जाते थे। लेकिन वह भारत के सबसे बड़े आर्थिक सुधारकों में से एक रहे। 1998 में जब वह सत्ता में आए तो अर्थव्यवस्था चरमरा रही थी। ब्याज दरें काफी ऊंची थीं, अर्थव्यवस्था अपने घुटनों पर आ गई थी। उनके नेतृत्व में भारत की अर्थव्यवस्था में व्यापक सुधार और विस्तार हुआ। अर्थव्यवस्था में ढांचागत सुधारों ने भविष्य की आर्थिक प्रगति के लिए जरूरी बुनियाद तैयार की। 

2004 में जब अटल जी ने ऑफिस छोड़ा तो पीछे एक उभरती मजबूत अर्थव्यवस्था की विरासत थी। इस तथ्य को उनके बाद आई सरकार ने भी स्वीकारा। वाजपेयी जी के नेतृत्व में आधारभूत ढांचे, टेलीकॉम एवं आईटी जैसे तकनीक के क्षेत्रों, कर सूचना प्रणाली और सरकारी क्षेत्र की कंपनियों के विनिवेश जैसे सुधार हुए। उनके बाद कोई भी प्रधानमंत्री ऐसे कठिन उपायों को दोहरा नहीं पाया। 

तब मैं एक युवा उद्यमी हुआ करता था और मुझे कई बार उनसे मिलने का अवसर प्राप्त हुआ। 1999 और 2003 के बीच मैंने अटल जी की व्यापार एवं उद्योग परिषद के सदस्य के तौर पर काम किया। मैं उस छोटे से समूह का हिस्सा था, जो विनिवेश रणनीति को तैयार करने के उनके निर्देशों पर काम करता था। कारगिल युद्ध के दौरान मेरा उनसे कई बार मिलना हुआ। तब मैं हमारे सैनिकों के लिए फंड और सामग्री जुटा रहा था। इसमें सैटेलाइट फोन भी शामिल थे, जिनसे जवान अपने प्रियजनों से बात कर सकें। कठिन मुद्दों पर आमराय बनाने के लिए प्रयास करने की उनकी क्षमता और भारत के लिए क्या सही है, यह तय करने की उनकी प्रतिबद्धता एवं नजरिये का मैं खुद गवाह रहा हूं। इन सबका परिणाम विभिन्न सुधारों के रूप में सामने आया। उन्होंने पाकिस्तान के साथ विवादित संबंधों को बदलने की चुनौती भी स्वीकार की। 

अटलजी एक वास्तविक सुधारक थे और इतिहास तथा देश उन्हें हमेशा इसके लिए याद करेगा। हम पोखरण-2 और कारगिल समेत उनकी कई उपलब्धियों को याद कर सकते हैं। उन्होंने दुनिया को दिखाया भारत क्या है। विशेषकर कारगिल ने आत्मरक्षा को लेकर भारत की क्षमता पर लोगों के भ्रम को दूर कर दिया था। 

मैं हमेशा उस अवसर और समय को महत्व देता हूं, जो मुझे अटलजी से मिला। मुझे यह मौका मिला, यह मेरे बड़े सौभाग्य की बात है। अटलजी भारत के महान सपूत और योद्धा थे। उन्हीं के शब्दों में,  'छोटे मन से कोई भी बड़ा नहीं होता, टूटे मन से कोई भी खड़ा नहीं होता, विश्वास और हिम्मत को थामे रखना, हिम्मत के बिना कोई संघर्ष पूरा नहीं होता।'

अलविदा अटलजी! आपकी कमी खलेगी लेकिन आपको हमेशा याद किया जाएगा। आपको भुलाया नहीं जा सकता।

जय हिंद!
 

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