केंद्रीय विद्यालय में प्रार्थना के जरिए खास धर्म को बढ़ावा देने के खिलाफ दाखिल जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के संवैधानिक पीठ सुनवाई करेगा। इस मामले को जस्टिस रोहिंग्टन की पीठ ने मामले को संवैधानिक पीठ के पास भेज दिया है।
केन्द्र सरकार की तरफ से एएसजी तुषार मेहता ने कहा कि "तमसो मा ज्योतिर्गमय" जैसे संस्कृत मंत्रों का पाठ करना सांप्रदायिक और गैर धर्मनिरपेक्ष नहीं है। हालांकि याचिका दायर करने वाले विनायक शाह ने कहा था कि सरकारी विद्यालयों में ऐसी प्रार्थना नही होनी चाहिए, जिससे किसी विशेष धर्म को बढ़ावा मिलता हो।
शाह ने आरोप लगाते हुए कोर्ट से कहा कि केंद्रीय विद्यालयों में हिंदुत्व का प्रोपगेंडा किया जा रहा है। चूंकि स्कूल सरकारी है, इस नाते इसकी अनुमति नही दी जा सकती।
वहीं वकील ने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 25 और 28 के तरह सरकारी वित्तपोषित स्कूलों में धर्म विशेष को बढ़ावा देने वाले कोई आयोजन नही हो सकता।
पिछ्ली सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि यह संवैधानिक मामला है। इस पर संवैधानिक पीठ को विचार करना चाहिए कि क्या इस देश के सभी केंद्रीय विद्यालयों में हकीकत में हिंदी की प्रार्थना धर्म विशेष को बढ़ावा दे रही है। क्या हिंदी की संबंधित प्रार्थना संविधान के मूल्यों के खिलाफ है।
याचिकाकर्ता की यह भी दलील है कि हर सुबह 1100 केंद्रीय विद्यालयों में होने वाली प्रार्थना हिंदी में होती है, और इसमें कई संस्कृत के शब्द होते है। याचिकाकर्ता ने यह भी कहा है कि हर हाथ जोड़कर आंख बंद करके होने वाली प्रार्थना धर्म विशेष का प्रचार जैसा लगती है।
याचिका में कहा गया है कि नया कोड़ बनाया गया है, जिसके तहत संस्कृत श्लोक के बाद हिंदी प्रार्थना गानी होती है। हिंदी और संस्कृत की प्रार्थना धर्म विशेष हिंदू का प्रचार करती है, जो अनुच्छेद 28 और 19 का उल्लंघन है।