डेबिट-क्रेडिट कार्ड का करते हैं इस्तेमाल, तो हो जाएं सावधान!

By Shashank Shekhar  |  First Published Jun 16, 2019, 1:03 PM IST

 बैंकों की ओर से दिए जाने वाले कार्ड में चिप लगाने के बावजूद डाटा कॉपी किया जा रहा है और कार्ड के क्लोन तैयार किए जा रहे हैं। कार्ड की क्लोनिंग तब भी हो रही है, जब उसे सरकारी केंद्रों पर भी स्वाइप किया जा रहा है। 

नई दिल्ली। अगर आप बाजार में डेबिट या क्रेडिट कार्ड स्वाइप कर किसी तरह का पेमेंट करते हैं, तो इस बात की संभावना काफी बढ़ जाती है कि बाजार में जल्द ही आपके कार्ड का क्लोन आ जाए और साइबर अपराधी उसकी मदद से पैसा निकाल लें। ऐसा तब भी संभव है जब कार्ड सरकारी केंद्रों पर स्वाइप किया जा रहा हो। 

बैंक कार्ड की क्लोनिंग यानी डुप्लीकेट कार्ड रेस्तरां, पेट्रोल पंप और एटीएम पर मिली डिटेल से तैयार करना काफी आम बात है। लेकिन सरकार द्वारा मंजूर केंद्रों से भी इस तरह के मामले सामने आ रहे हैं। क्रेडिट कार्ड में चिप लगाने के बावजूद डाटा कॉपी किया जा रहा है और कार्ड के क्लोन तैयार किए जा रहे हैं। 

उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में पुलिस ने एक ऐसे गैंग को पकड़ा है जो सरकार के कॉमन सर्विस सेंटर (सीएससी) से ग्राहकों का डाटा कॉपी करते थे। यह जन्मतिथि प्रमाण पत्र, पेंशन सर्विस जैसी ई-सर्विस में मददगार होता है। इनमें से एक आरोपी के बाद सीएससी की फ्रेंचाइजी थी। वहां उसने एक कार्ड रीडर और स्कीमर लगा रखा था।  

इस गैंग का खुलासा करने वाले आजमगढ़ के एसपी त्रिवेणी सिंह ने बताया, ये गैजेट्स 30,000 रुपये में मिल जाते हैं और सभी प्रमुख शॉपिंग पोर्टल्स पर उलब्ध हैं। यह बैंकिंग कार्ड के मैग्नेटिक स्ट्रिप्स से डाटा कॉपी करने में सक्षम हैं और आगे इन्हें डाउनलोड कर कार्ड की क्लोनिंग की जा सकती है।
 
कस्टमर की कार्ड का डाटा जुटाने के बाद इन साइबर अपराधियों को पासवर्ड की जरूरत पड़ती थी। इसके लिए उन्होंने ऐसी जगहों पर स्पाई कैमरे लगा रखे थे, जहां से ग्राहकों को भुगतान के समय पिन नंबर डालते देखा जा सके। 

त्रिवेणी सिंह ने बताया कि ये गैंग इन कार्ड्स को पास के इलाकों में कभी इस्तेमाल नहीं करता था। ये लोग ब्लैंक कार्ड पर डाटा कॉपी कर लेते थे। ब्लैंक कार्ड को 15 रुपये में खरीदा जा सकता है। इसके बाद गैंग मेट्रो शहरों में अपराधियों को ये कार्ड बेच देते थे। वे लोग पैसा निकालने के लिए इन कार्ड को स्वाइप करते थे। उन्होंने बताया, एक बैच का चुराया हुआ डाटा देश भर में कई अपराधियों को बेचा जाता था। वे इस कार्ड का दुरुपयोग करते और कुल रकम का 25 प्रतिशत कमीशन के तौर पर गैंग को देते। 

ऐसे मामलों में कार्ड तो कस्टमर के पास होता लेकिन सैकड़ों किलोमीटर दूर कोई दूसरा उनके कार्ड का क्लोन की मदद से दुरुपयोग कर रहा होता। पुलिस और बैंक कर्मी भी कस्टमर पर जानकारी लीक करने का आरोप लगाते। जबकि कस्टमर ने कभी अपनी डिटेल किसी के साथ साझा ही नहीं की होती। इस घोटाले से न सिर्फ कार्ड धारकों को नुकसान पहुंच रहा था बल्कि बैंकों को भी खासा नुकसान हो रहा था। 

त्रिवेणी सिंह ने ‘माय नेशन’ से कहा, ‘यह स्थिति काफी चिंता करने वाली है। इस तरह के गैजेट्स को ऑनलाइन खरीदना बेहद आसान है। इसके बाद यू-ट्यूब पर जाकर कोई भी कार्ड क्लोनिंग स्कैम करना सीख सकता है। इस तरह के गैंग का नेटवर्क दुनियाभर में फैला हुआ है। हमने इस गैंग के पास मिले लैपटॉप से 5,000 लोगों का डाटा बरामद किया है। हम इस बात का पता लगा रहे हैं कि इन लोगों ने कितने कार्डों की क्लोनिंग की।’

उन्होंने कहा कि वह नेशनल पेमेंट कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया को ऐसे अपराधों पर नजर रखने और इनकी मैंपिग करने के लिए कह रहे हैं ताकि ऐसे अपराधी समय रहते गिरफ्तार किए जा सकें। इसके अलावा कार्डों में पुख्ता सिक्योरिटी फीचर की आवश्यकता है, ताकि वे सुरक्षित बने रहें और कोई दूसरा उनकी क्लोनिंग न कर ले।  

कार्ड स्किमिंग कैसे करती है काम

स्किमर या कार्ड रीडर एक माचिल के आकार का गैजेट होता है। इसके किसी स्वैपिंग डिवाइस अथवा एटीएम मशीन के ऊपर लगाया जा सकता है। जब कोई डेबिट अथवा क्रेडिट कार्ड ऐसी मशीन पर स्वाइप होता है, जिस पर स्किमर इंस्टाल है तो वह कार्ड की मैग्नेटिक स्ट्रिप में स्टोर सभी तरह के ब्यौरे को कॉपी और सेव कर लेती है। स्ट्रिप में कॉर्ड का नंबर, एक्सपायरी डेट और कार्ड धारक का पूरा नाम दिया होता है। चोर इस डाटा की मदद से क्लोन कार्ड तैयार कर लेते हैं। 

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