देशभर के जेलों में बंद कैदियों के मताधिकार की मांग को लेकर दायर याचिका पर दिल्ली हाइकोर्ट ने केंद्र सरकार, चुनाव आयोग और तिहाड़ जेल के निदेशक से जवाब मांगा है। यह याचिका गलगोटिया विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले तीन कानून के छात्रों प्रवीण चौधरी, प्रेरणा सिंह और अतुल कुमार दुबे ने दायर की है।
इन छात्रों की याचिका पर दिल्ली हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश राजेन्द्र मेमन व न्यायमूर्ति वीके राव की बेंच सुनवाई कर रही है। कोर्ट इस मामले में 9 मई को अगली सुनवाई करेगा।
याचिका में कहा गया है कि कैदियों को वोट देने से वंचित करना, मूल संविधान के खिलाफ है। याचिका में संविधान के अनुच्छेद 62 (5) को चुनौती दी गई है, जिसमें जेलों में बंद कैदियों के अलावा एक जगह से दूसरी जगह ले जाए का रहे सजा प्राप्त दोषियों को उनके वोटिंग अधिकार से वंचित रखने का प्रावधान है।
याचिकाकर्ता की मानें तो एनसीआरबी के डाटा के अनुसार देशभर में कुल 1401 जेल है, और चुनाव आयोग को उन जेलों में अपनी सुविधानुसार ईवीएम या बैलेट पेपर से चुनाव कराना चाहिए।
गौरतलब है कि 25 अक्टूबर 1951 में एक चार साल के बच्चे ने पहली बार मताधिकार का प्रयोग किया गया था। 68 साल हो गए है। काफी कुछ बदल चुका है। 16 वीं लोकसभा और सैकड़ो विधानसभा चुनाव हो गए। 18 साल की आयु से ऊपर लोगों को अपने मताधिकार के प्रयोग की इजाजत है।
जल्दी ही देशभर में आम चुनाव होने जा रहा है। जिसमें करोड़ो युवा पहली बार मताधिकार का प्रयोग करने जा रहे है।