असल में पिछले दिनों भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष अमित शाह ने तय कर दिया था कि बिहार में चुनाव नीतीश कुमार की अगुवाई में लड़े जाएंगे और उसके बाद भाजपा नेताओं ने नीतीश कुमार के खिलाफ आग उगलाना बंद कर दिया था।
नई दिल्ली। प्रशांत किशोर को जनता दल यूनाइटेड से बाहर निकालने के बाद तरह की चर्चाएं शुरू हो गई हैं। बिहार में जनता दल यूनाइटेड और भाजपा के गठबंधन के लिए क्या प्रशांत किशोर किसी के लिए भेदिए की तरह काम कर रहे थे। जिसके कारण नीतीश कुमार ने पीके को दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल कर बाहर फेंक दिया है। वहीं ये भी कहा जा रहा है कि प्रशांत किशोर किसी के इशारे पर भाजपा और जदयू के बीच बने गठबंधन को तोड़ना चाहते थे। जिसके लिए वह लगातार बयानबाजी कर रहे थे। ताकि विधानसभा चुनाव से पहले दोनों में दरार पड़ जाए।
असल में पिछले दिनों भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष अमित शाह ने तय कर दिया था कि बिहार में चुनाव नीतीश कुमार की अगुवाई में लड़े जाएंगे और उसके बाद भाजपा नेताओं ने नीतीश कुमार के खिलाफ आग उगलाना बंद कर दिया था। लेकिन पीके बीच बीच में दोनों दलों के बीच खाई पैदा करने के लिए बयान बाजी कर रहे थे। पिछले दिनों ही उन्होंने बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी का एक वीडियो सोशल मीडिया में शेयर किया था। जिसमें मोदी नीतीश कुमार के खिलाफ बयान दे रहे हैं।
हालांकि इन सब मामलों का पहले ही पटाक्षेप हो चुका है। तो पुराने मामलों को मुद्दा फिर क्यों बनाया जा रहा है। मोदी को नीतीश कुमार का करीबी माना जाता है। इसलिए उन्होंने इस मामले की शिकायत नीतीश कुमार से की। पार्टी के नेता अबब खुलकर बोलने लगे हैं कि पीके पार्टी को ही नुकसान पहुंचा रहे थे और भाजपा और जदयू में दूरियां बनाने की कोशिश कर रहे थे।
जबकि पीके की हैसियत पार्टी में डिजाइनर नेता की है। वह न तो जनाधार वाले नेता हैं और न ही उनकी कोई जमीन है। इससे पहले लोकसभा चुनाव में दोनों दलों के बीच खाई पैदा करना चाहते थे। ताकि गठबंधन टूट जाए। लेकिन गठबंधन ने राज्य में विपक्षी दलों का सूपड़ा साफ कर दिया था। राज्य में विपक्षी दलों में कांग्रेस ही एक सीट जीतने में सफल रही थी।
हालांकि पीके के जदयू में आने के बाद पार्टी में दो गुट बन गए थे। जिसमें से एक गुट जिसमें आरसीपी सिंह, संजय झा, ललन सिंह जैसे पुराने और नीतीश कुमार करीबी नेता हैं। वहीं दूसरे गुट में पीके गुट। क्योंकि पीके को नीतीश कुमार ने जिस तरह के पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया। उस दबदबे को देखते हुए कुछ नेताओं ने पीके का दामन थाम लिया था। जदयू के एक नेता का कहना है कि लोकसभा चुनाव के समय से ही प्रशांत किशोर ने गड़बड़ियां करना शुरू कर दिया था।
जहां भाजपा के साथ गठबंधन था वहीं पीके भाजपा की बुराई करने में पीछे नहीं रहते थे। जबकि लोकसभा चुनाव में पीके के बगैर मदद के गठबंधन ने राज्य की 39 सीटों पर जीत हासिल की। हालांकि पीके को भी इस बात का अहसास हो रहा था कि लोकसभा चुनाव में मिली जीत में उनकी कोई भूमिका नहीं है।
बयान बने धातक
हालांकि जनता दल यूनाइटेड में अपना अस्तित्व बचाने के लिए पीके बयान भी दे रहे थे। जिनका पार्टी से कोई सरोकार नहीं थी। प्रियंका गांधी के कांग्रेस महासचिव बनने पर उन्होंने उन्हें बधाई दी। वहीं सीएए को लेकर उन्होंने कांग्रेस को नेतृत्व संभालने की सलाह दे डाली। जबकि कांग्रेस ने उनकी एक नहीं सुनी। वहीं दिल्ली के विधानसभा चुनाव में केजरीवाल के लिए काम करने का फैसला भी आलाकमान को नहीं भाया।यही नही इसके जरिए नीतीश कुमार को पीके की नासमझी भी दिखने लगी।